नई दिल्ली(मानवी मीडिया)- क्लाइमेट एक्सचेंज का असर पूरी दुनिया पर पड़ रहा है। ऐसे में अंटार्कटिका में बर्फ की बड़ी बड़ी परते पिघल रही है। जिस कारण नीचे की चट्टानों पर वजन भी कम हो रहा है। एक नई स्टडी में, कंप्यूटर सिमुलेशन के आधार पर यह दावा किया गया है कि बर्फ की चादर के नुकसान से अंटार्कटिका के दबे हुए ज्वालामुखी फट सकते हैं।
हाल की कई स्टडीज से पता चला है कि जलवायु परिवर्तन के कारण बर्फ की चादर के पिघलने से इन ज्वालामुखियों के फटने की संभावना बढ़ सकती है। बर्फ के पिघलने से सतह पर दबाव कम होता है, जिससे मैग्मा का विस्तार होता है और ज्वालामुखी विस्फोट की संभावना बढ़ती है। वैज्ञानिकों ने कंप्यूटर सिमुलेशन के माध्यम से यह जानना चाहा कि बर्फ की चादर के पिघलने से अंटार्कटिका के ज्वालामुखियों पर क्या प्रभाव पड़ सकता है। इन सिमुलेशनों से यह निष्कर्ष निकला कि धीरे-धीरे पिघलती बर्फ के कारण उप-बर्फीय ज्वालामुखी विस्फोटों की संख्या और तीव्रता में वृद्धि हो सकती है। मैग्मा चैंबर्स में मौजूद वाष्पशील गैसें, जो आमतौर पर मैग्मा में घुली रहती हैं, दबाव कम होने पर तेजी से बाहर निकलती हैं, जिससे मैग्मा चैंबर्स में दबाव बढ़ता है और विस्फोट की संभावना बढ़ती है। हालांकि, यह प्रक्रिया धीरे-धीरे होती है और सैकड़ों वर्षों में विकसित होती है, लेकिन यह दर्शाती है कि मानवजनित गर्मी को नियंत्रित करने के बावजूद यह प्रतिक्रिया जारी रह सकती है। ऐसे ज्वालामुखियों के विस्फोट सतह पर सीधे दिखाई नहीं देते, लेकिन इनका प्रभाव बर्फ की चादर पर पड़ता है। इन विस्फोटों से पैदा गर्मी बर्फ के नीचे पिघलन को बढ़ा सकती है, जिससे बर्फ की चादर कमजोर हो सकती है और समुद्र स्तर में वृद्धि हो सकती है। इस प्रकार, बर्फ के पिघलने और ज्वालामुखी गतिविधि के बीच एक सिस्टम पनप सकता है।Post Top Ad
Tuesday, January 7, 2025
दुनिया पर मंडरा रहा बड़ा खतरा, फट सकते है सैंकड़ों ज्वालामुखी
Tags
# ऐतिहासिक घटना
About Manvi media
ऐतिहासिक घटना
Tags
ऐतिहासिक घटना
Post Top Ad
Author Details
.