नई दिल्ली (मानवी मीडिया): मकर संक्रांति, हिंदू धर्म का एक प्रमुख त्योहार, पूरे देश में धूमधाम से मनाया जाता है। यह पर्व सूर्य के मकर राशि में प्रवेश और उत्तरायण के आरंभ का प्रतीक है। इसे नई फसल के आगमन का उत्सव भी माना जाता है और भारत के विभिन्न क्षेत्रों में इसे अलग-अलग नामों से जाना जाता है।
मकर संक्रांति नई फसल के आगमन का प्रतीक है। इस दिन किसान अच्छी फसल के लिए सूर्य देव को धन्यवाद अर्पित करते हैं। सूर्य देव की पूजा का विशेष महत्व है, जिन्हें सभी जीवों का जीवनदाता माना जाता है।
स्नान, दान और पुण्यमान्यता है कि इस दिन स्नान और दान करने से पापों का नाश होता है। पवित्र नदियों में स्नान का विशेष महत्व है और गरीबों को दान करना पुण्य का कार्य माना जाता है। इस दिन तिल के लड्डू या तिल से बने अन्य व्यंजन खाना भी शुभ माना जाता है।
शुभ मुहूर्त
द्रिक पंचांग के अनुसार, इस वर्ष मकर संक्रांति का पुण्य काल 14 जनवरी को सुबह 9 बजकर 3 मिनट पर शुरू होगा, जब सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करेंगे।
ब्रह्म मुहूर्त: सुबह 05 बजकर 27 मिनट से 06 बजकर 21 मिनट तक
पुण्यकाल: सुबह 9 बजकर 3 मिनट से शाम 05 बजकर 46 मिनट तक
महापुण्य काल: सुबह 9 बजकर 3 मिनट से सुबह 10 बजकर 48 मिनट तक
इन मुहूर्तों में स्नान, दान और पूजा करने से विशेष फल मिलता है।
मकर संक्रांति पर ऐसे करें पूजा
* मकर संक्रांति के दिन सबसे पहले सुबह उठकर स्नान करें और साफ कपड़े पहनें।
* सूर्य देव को गंगाजल से स्नान कराएं और उन्हें फूल, चंदन, रोली, सिंदूर आदि अर्पित करें।
* सूर्य देव के विभिन्न मंत्रों का जाप करें और उनकी स्तुति करें।
* सूर्य देव को भोग लगाएं. आप उन्हें फल, मिठाई, या अन्य भोग लगा सकते हैं।
* अंत में सूर्य देव की आरती करें।
* इस दिन गरीबों को दान दें।
* तिल का दान करना विशेष रूप से शुभ माना जाता है।
मकर संक्रांति पर भीष्म पितामह ने त्यागा था शरीर
मान्यता है कि महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपना शरीर त्यागने के लिए मकर संक्रांति के दिन का चयन किया था। इस के अलावा इसी दिन गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई सागर में जाकर मिली थीं। महाराज भगीरथ ने अपने पूर्वजों के लिए इस दिन तर्पण किया था।