जब घाटे से उबर नहीं सकते बड़का बाबू ! तो दो त्यागपत्र निजीकरण क्यों ? - मानवी मीडिया

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Monday, December 23, 2024

जब घाटे से उबर नहीं सकते बड़का बाबू ! तो दो त्यागपत्र निजीकरण क्यों ?

 


लखनऊ  (मानवी मीडिया)उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन में अवैध रूप से बैठे अनुभवहीन भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी जब कॉरपोरेशन को घाटे से उभर नहीं सकते तो फिर अपनी जेब में भरने को और सरकार को गुमराह करके निजीकरण करने चले हैं ।

जब आप में काबिलियत नहीं है वितरण निगमों को घाटे से उबरने की तो फिर निजीकरण करने का क्या औचित्य क्या ?

यह सिर्फ अपनी जेब भरने के लिए निजी क्षेत्र फायदा पहुंचाने वा जन प्रिय मुख्यमंत्री की छवि को खराब करने के लिए इन निजीकरण का षड्यंत्र रच रहे हैं

 जब अवैध रूप से विराजमान अध्यक्ष पावर कॉरपोरेशन ने अपने संबोधन में राज्य विद्युत परिषद जूनियर इंजीनियर संगठन के 77वे  अधिवेशन में घाटे की बात करते हुए , कैश गैप की बात की तो इस पर विचार किया गया तो गलती निकाली इन भारतीय प्रशासनिक सेवा के अनुभवहीन अधिकारियों कि जैसे जब ओपन एक्सेस में सस्ते दामों पर ऊर्जा उपलब्ध है तो क्या जरूरत है निजी घरानों  से ऊंचे दामों पर पावर परचेज एग्रीमेंट करने की जब महंगी बिजली खरीदी जाएगी तब तो घाटा तो होगा और दूसरा  25 जून को 40 जून बना दिया बिना किसी वित्तीय अनुमोदन के जैसे कारपोरेशन के ऊपर अतिरिक्त बोझ नहीं पड़ा क्या जरूरत है शक्ति भवन में सैकड़ो आदमियों का स्टाफ रखने की जब उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन का लाइसेंस 21/ 1/ 2010 को विद्युत नियामक आयोग योग के द्वारा जब्त कर लिया गया था और सभी वितरण निगमों को स्वयत घोषित कर दिया गया तो फिर किस आधार पर उत्तर प्रदेश पावर कॉरपोरेशन वितरण निगमों से धन लेकर निजी घरानों को देता है यानी पावर परचेज के पैसे देता है जबकि उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन के पास किसी भी तरीके का कोई भी न वितरण का, ना उत्पादन का, ना परेषण का किसी तरीके कोई भी लाइसेंस नहीं है तो फिर यह पेमेंट उत्तर प्रदेश पावर कॉरपोरेशन कैसे करता है  जबकि एग्रीमेंट वितरण निगम करते हैं और पेमेंट यह करते हैं जब कि *उत्तर प्रदेश पावर कॉरपोरेशन के पास ना तो  वितरण का लाइसेंस है तो कैसे यह पावर परचेज करते हैं इसी तरीके से टेंडर में भी यह भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी  अपनी जेब भरने के लिए खेल खेलते हैं और रही बात निजीकरण की तो यह एक एक सोची समझी रणनीति है कि किस तरह से उत्तर प्रदेश के जनप्रिय मुख्यमंत्री को आगामी चुनाव में हराने के लिए अभी से जाल बिछाया जाए* ।  *जैसा कि पूर्व में भी राज्य स्तरीय चुनाव के दौरान भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों ने किसानों के ट्यूबवेल पर मीटर लगा के किसानों को  भड़काने का कार्य किया था जिससे कि सरकार बदनाम हो और चुनाव में वोट कम मिले उसके बाद जब केंद्र सरकार के लिए चुनाव हो रहे थे तब भी भारतीय प्रशासनिक  सेवा के अधिकारियों ने सत्तारूढ़ दाल को हारने के लिए लगभग 1 लाख संविदा कर्मियों की जान को दाव पर लगा दिया था जिसमें विद्युत उपकेन्द्र संचालको (एस एस ओ )को हटाकर उनकी जगह अनुभवहीन सेवानिवृत्ति फौजियों को काम पर लगा दिया ।  फौजियों और संविदाकर्मियों के वेतन में भी बड़ा अन्तर है जिसका बोझ भी वितरण निगमो को उठाना पड़ रहा है । वहीं दूसरी तरफ अनुभवहीन सेवानिवृत्ति फौजियों की वजह से क्षेत्र में काम कर रहे संविदा कर्मियों की जान पर भी संकट खड़ा कर दिया। वित्तीय घाटे की बात कर रहे हैं तो फिर निजीकरण से पहले केन्द्रीय सतर्कता आयोग से क्यों नहीं करा लेते* ! दूध का दूध पानी का पानी हो जाएगा

*इससे यह प्रतीत होता है की वर्तमान में भी जनप्रिय मुख्यमंत्री को हटाने के लिए यह निजीकरण की चाल चली जा रही है राजनीति गलियारों में यह चर्चा आम है कि भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों द्वारा पूंजीपतियों व एक मंत्री के इशारे यह खेल रचाया जा रहा है क्योंकि राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि उसे मंत्री का माननीय मुख्यमंत्री से 36 का आंकड़ा रहा है वैसे माननीय मुख्यमंत्री खुद एक बहुत पिछड़े क्षेत्र से आते हैं उनको मालूम है कि उसे क्षेत्र में किस हद तक गरीबी है जिन 42 जिलों का निजीकरण के लिए कर रहे हैं उनमें से एक में तो रोटी बैंक भी बना हुआ है जहां ज्यादा रोटी बन जाने पर उसमें जमा कर दिया जाता है और गरीब लोग उसे रोटी को वहां से लेकर नमक के पानी में भिगोकर खाकर अपना पेट भरते हैं इनमें से अधिकतर जिले गरीबों की रेखा के नीचे है जिनके  विकास के लिए मुख्यमंत्री प्रयासरत है जिसका परिणाम यह है कि अब यह क्षेत्र धीरे-धीरे ऊपर उठने की कोशिश कर रहे हैं*

इस दौरान निजीकरण का झटका उनको फिर वहीं पर ले जाकर खड़ा कर देगा जिसका असर आने वाले 2027 के चुनाव में सत्तारूढ़ दाल को भुगतना पड़ सकता है जब आप किसी समस्या का हल नहीं निकाल पाते हैं तो उसकी जड़ में जाते हैं और गलतियां ढूंढते हैं और उनको दूर करने का प्रयास करते हैं *लेकिन यह भारतीय प्रशासनिक सेवा के अनुभवहीन अवैध रूप से नियुक्त अध्यक्ष पावर कॉरपोरेशन वह प्रबंध निदेशक पावर कॉरपोरेशन और  सभी वितरण निगमो में अवैध रूप से विराजमान यह अनुभवहीन भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी उसे समस्या यानी घाटे का हल ढूंढने की जगह निजीकरण करके अपनी जेब में भरने का प्रयास कर रहे हैं जिससे कि उनके दोनों हित सध जाएंगे जब कि इन्हीं अनुभवहीन भारतीय प्रशासनिक* *अधिकारियों की वजह से ही उत्तर प्रदेश पावर कॉरपोरेशन घाटे में जा रहा है क्योंकि दर्जी का काम मोची से तो होगा नहीं जब यह अधिकारी वितरण निगमों को घाटे से नहीं उबार सकते तो फिर इनको इस पद पर बने रहना के अभी कोई अधिकार नहीं है इस्तीफा देकर पद को खाली करे और अनुभवी व्यक्तियों को मेमोरेंडम का आर्टिकल के हिसाब से चुनकर उसे पद पर बैठाइए जो जनता की बात को समझ सके और जनता के हित में प्रदेश के हित में व निगम हित में कार्य कर सके* । खैर

युद्ध अभी शेष है

*अविजित आनन्

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