नई दिल्ली(मानवी मीडिया)- उच्च न्यायालयों और सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति को लेकर ऐसी धारणा अकसर बनाई जाती रही है कि पहली पीढ़ी के वकीलों को चयन प्रक्रिया में तवज्जो नहीं दी जाती। इसकी बजाय ऐसे लोगों को जज के तौर पर प्रमोट किया जाता है, जो दूसरी पीढ़ी के वकील हों और उनके परिजन पहले से जज हों। अब इस धारणा को खत्म करने की पहल कॉलेजियम की ओर से हो सकती है। अब कहा जा रहा है कि कॉलेजियम ऐसे लोगों के नामों को आगे बढ़ाने से परहेज करेगा, जिनकी परिजन या रिश्तेदार पहले से हाई कोर्ट या फिर उससे उच्चतम न्यायालय के जज हों। यदि ऐसा हुआ तो फिर जजों का चयन करने वाली कॉलेजियम की प्रक्रिया में यह बड़ा बदलाव होगा। बता दें कि जजों में ऐसे लोगों की बड़ी संख्या है, जिनका कोई फैमिली मेंबर या फिर रिश्तेदार पहले भी लीगल प्रोफेशन से जुड़े रहे हैं।
जानकारी मिली है कि कॉलेजिमय में शामिल कुछ जजों का ही प्रस्ताव था कि ऐसे लोगों के नामों को आगे न बढ़ाया जाए, जिनके परिजन या रिश्तेदार पहले से जज हैं या फिर रह चुके हैं। इस बारे में जब मंथन हुआ तो यह बात भी उठी कि इस तरह का फैसला लेने से तो कुछ ऐसे लोग भी छंट जाएंगे, जो योग्य हैं। इस पर कॉलेजियम में ही दलील दी गई कि ये लोग एक सफल वकील के तौर पर अच्छी जिंदगी गुजार सकते हैं। इन लोगों के पास पैसे कमाने के अवसरों की भी कमी नहीं होगी। भले ही कुछ लोगों के लिए यह नुकसानदायक होगा, लेकिन व्यापक हित में यह फैसला गलत नहीं है। क़ॉलेजियम की ओर से खुद ही इस तरह का फैसला लेना मायने रखता है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की संवैधानिक बेंच ने 2015 में राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग को खारिज कर दिया था। इस संस्था के गठन से जुड़े कानून को सरकार ने संसद से सर्वसम्मति से पारित करा लिया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उस पर रोक लगा दी थी। ऐसे में अब कॉलेजियम की ओर से खुद ही जजों की नियुक्ति प्रक्रिया सुधार का प्रस्ताव लाना अहम है। दरअसल सुप्रीम कोर्ट में तब NJAC को खारिज किया गया था, तब उसका पक्ष रखते हुए एक वकील ने परिवारवाद वाली दलील दी थी। वकील का कहना था कि ऐसी भावना लोगों के मन में है कि कॉलेजियम सिस्टम में जज ही जज को चुनते हैं। यह ऐसा ही है कि आप मेरी पीठ खुजलाएं और मैं आपकी। इसके माध्यम से कई बार ऐसे लोग ही चुने जाते हैं, जिनके परिवारों के लोग पहले से ही न्यायिक व्यवस्था में बैठे हैं। एक वकील ने कहा था कि ऐसे 50 फीसदी जज हाई कोर्ट में हैं, जिनके परिजन पहले से ही अदालत में थे।
माना जा रहा है कि उस धारणा को तोड़ने के लिए कॉलेजियम में बदलाव की व्यवस्था की जा रही है। हालांकि अभी यह महज एक प्रस्ताव ही है। इस पर अमल होने में अभी वक्त लगेगा। बता दें कि कॉलेजियम सिस्टम की आलोचना भी कई बार सरकार की ओर से की जाती रही है। इसके अलावा सिविल सोसाय़टी में भी कॉलेजियम सिस्टम की खामियों पर चर्चा होती रही है। गौरतलब है कि कॉलेजियम सिस्टम में एक और सुधार हाल ही में देखने को मिला है। अब कॉलेजियम में शामिल जज नियुक्ति से पहले संबंधित लोगों से मुलाकात भी कर रहे हैं और इंटरव्यू आदि लेते हैं।