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Sunday, November 10, 2024

तीन दिवसीय अन्तर्राष्ट्रीय बुद्धिस्ट कॉन्क्लेव के अन्तर्गत ‘पालि साहित्य सम्मेलन

लखनऊ (मानवी मीडिया)अन्तर्राष्ट्रीय बौद्ध शोध संस्थान, संस्कृति विभाग, उ0प्र0 एवं पर्यटन विभाग उ0प्र0 के संयुक्त तत्त्वावधान में तीन दिवसीय अन्तर्राष्ट्रीय बुद्धिस्ट कॉन्क्लेव के अन्तर्गत ‘पालि साहित्य सम्मेलन-2024’ का आयोजन दिनांक 09 से 11 नवम्बर, 2024 की अवधि में बुद्धविहार शान्ति उपवन, आलमबाग (लखनऊ) में हो  रहा है।

सम्मेलन के दूसरे दिन  हरिगोविंद बौद्ध, कार्यकारी अध्यक्ष, अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध शोध संस्थान ने तथागत की प्रतिमा के समक्ष दीप प्रज्वलित कर अपने संक्षिप्त संबोधन से कार्यक्रम की शुरुआत की। दूसरे दिन पाँच सत्रों में लगभग 50 से अधिक शोध पत्र प्रोफेसर डॉ. टाशी छेरिंग, तिब्बती शोध संस्थान सारनाथ तथा प्रोफेसर डॉ0 उमाशंकर व्यास, नव नालंदा महाविहार, प्रो0 अवधेश कुमार चौबे, विभागाध्यक्ष बौद्ध एवं पालि विभाग, केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय त्रिपुरा, प्रो. गुरुचरण सिंह नेगी, प्रोफेसर एवं सहनिदेशक, केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, लखनऊ परिसर तथा डॉ0 वेन जुलाम्पिटिए पुन्यासार थेरो, श्रीलंका की अध्यक्षता में प्रस्तुत किए गए।

इन सत्रों में पालि भाषा एवं साहित्य तथा बौद्ध अध्ययन से सम्बन्धित विविध विषयों पर शोधपत्र एवं वक्तव्य प्रस्तुत किये गये। शोधपत्रों में भगवान् बुद्ध की थेरवादी शिक्षाओं तथा भारतीय ज्ञान परम्परा के आलोक में पालि साहित्य पर गम्भीरतापूर्वक शोधपत्र प्रस्तुत किये गये। 

वक्ताओं ने बताया कि ‘पालि साहित्य का अध्ययन विश्व के मानव को बंधुता के सूत्र में आबद्ध रखने में आज भी सक्षम है। इसमें सुशिक्षित होना, विनयशील होना, मृदुभाषी होना, माता-पिता की सेवा करना, पत्नी और संतानों का पालन पोषण करना, दान देना, पवित्र जीवन बिताना आपत्ति-विपत्ति आने पर साहसपूर्वक उसका सामना करना और विचलित न होना, क्रोध पर विजय प्राप्त करना और क्षमाशीलता को न खोना आदि प्रमुख बातें हैं।’ 

पालि साहित्य के वरिष्ठ आचार्य प्रो. उमाशंकर व्यास ने अपने विचार व्यक्त करते हुए भगवान् बुद्ध की शिक्षाओं का सूक्ष्मतापूर्वक उपस्थापन किया। आपने अपने वक्तव्य में बताया कि ‘भगवान् बुद्ध के वचन सार्वत्रिक एवं सार्वकालिक है। भारत सरकार ने पालि भाषा को क्लासिकल लैंग्वेज का दर्जा देकर एक पुनित कार्य किया है। अब आवश्यकता है कि कक्षा 6 से स्कूली शिक्षा में इसका समावेश किया जाये तथा देश के समस्त विश्वविद्यालयों में पालि विभागों एवं विशिष्ट अध्ययन केन्द्रों की स्थापना की जाये। यदि भारत सरकार पालि भाषा को संवर्धित करती है, तो विश्व में भारत की प्रतिष्ठा बढ़ेगी।’

इस सम्मेलन के अंतर्गत ही भारत, वियतनाम, म्यांमार, थाईलैंड, श्रीलंका और न्यूजीलैंड से आए बौद्ध भिक्षु-भिक्षुणी और उपासक विश्व को शांति एवं सद्भाव का संदेश देने के लिए श्रावस्ती के पवित्र स्थल पर सुत्त संगायन किया गया।

इसी तरह पालि साहित्य सम्मेलन-2024 में पालि पुस्तक मेला, पेंटिंग तथा सांयकालीन सांस्कृतिक कार्यक्रम विशेष आकर्षण के केन्द्र रहे। 

कार्यक्रम समन्वयक आचार्य राजेश चन्द्रा तथा डॉ. प्रफुल्ल गड़पाल ने इस कार्यक्रम को एक सफल कार्यक्रम बताया।

कार्यक्रम के अंत में निदेशक संस्थान डॉ. राकेश सिंह ने आए अतिथियों, गणमान्य नागरिकों, कलाकारों, पत्रकार बंधुओ को धन्यवाद व्यापित किया।

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