लखनऊ-(मानवी मीडिया)उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन में अवैध रूप से तैनात भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारीयों ने अपनी जेबें भरने के लिए टेंडर नियमों की सीवीसी गाईडलाइन की पूरी धज्जियां उड़ाई है कंपनी एक्ट और सीवीसी गाइडलाइन को तो यह कुछ समझते ही नहीं है। मध्यांचल ,पूर्वांचल, पश्चिमांचल , दक्षिणांचल यह चार अलग-अलग वितरण निगम है, इन चारों वितरण निगम में अपने-अपने प्रबंध निदेशक एवम् निदेशक मंडल होता है, वैसे इन निदेशकों का चयन उत्तर प्रदेश के राज्यपाल द्वारा किया जाता है परंतु प्रबंध निदेशक को उत्तर प्रदेश सचिवालय नियम विरुद्ध नियुक्त करता है, यह सारी बातें पाठकों को पहले से ही संज्ञान में है, अब इसमें एक कदम आगे बढ़ते हैं उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन के प्रबंध निदेशक व अध्यक्ष ने अपनी जेब भरने के लिए पूरे नियमों कानून को दरकिनार करते हुए भ्रष्टाचार का खेल खेलना शुरू किया जिसकी शुरुआत प्रबंध निदेशक, उत्तर प्रदेश पावर कॉरपोरेशन अपर्णा यू के समय से ही हो गई थी जब उन्होंने केंद्रीय सतर्कता आयोग के निर्देशों के विपरीत जाकर निविदाओं में (जॉवाइंटवेंचर) संयुक्त उद्यम पर कार्य करने पर रोक लगा दी थी जिसके वजह से छोटे ठेकेदार या नए ठेकेदार कार्य को मोहताज हो गए थे और यह रोक सिर्फ वितरण निगमो के लिए ही थी जबकि पारेषण निगम में इस तरह की कोई रोक नहीं थी। इसके पश्चात वर्तमान में बैठे बड़का बाबू इससे दो कदम आगे जाते हुए पारेषण में एकीकृत क्रय प्रणाली शुरू कर दी तो जनाब जब एकीकृत क्रय ही करना था तो फिर वितरण निगम, पारेषण निगम और उत्पादन निगम व इनमें समन्वय स्थापित करने के लिए उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन का गठन ही क्यों किया गया? एक अति महत्वपूर्ण बात आप पाठकों के संज्ञान में लानी थी की उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन में प्रबंध निदेशक नाम की कोई भी पोस्ट ही नहीं होती है क्योंकि वितरण निगम, पारेषण निगम, उत्पादन निगम सभी के अपने अपने प्रबंध निदेशक होते हैं फिर यह पोस्ट मात्र इसलिए बनाई गई थी की जो अध्यक्ष थे यानी अध्यक्ष महोदय वहीं प्रमुख सचिव हो जाते थे तो अपने काम के बोझ को कम करने के लिए उन्होंने बायोलॉजी के विपरीत जाकर एक पोस्ट बना दी और उस पर एक बड़का बाबू को तैनात कर दिया गया और अपनी ताकत उसकी लिखित रूप से दे दी जाती है लेकिन न तो पूर्व अध्यक्ष एम० देवराज ने और ना ही वर्तमान अध्यक्ष ने अपनी कोई भी पावर प्रबंध निदेशक को दी ही नहीं है तो फिर यह महोदय कैसे आदेश करते हैं और यह कौन सा विशेष अधिकार की बात करते आ रहे हैं और जिस अधिकार की बात यह जनाब कर रहे हैं वो तो इनके पास कभी था ही नहीं और बिना पोस्ट की पोस्ट पर बैठकर बिना किसी नियमावली के आप आदेश पर आदेश करें जा रहे हैं कि निविदाएं ऐसे निकालो वैसे काम करो और तो और लोगों को निलंबित भी कर देते हैं जैसे कि अपना खेत है जैसे चाहे जोतो जैसा चाहो बोओ....
उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन के प्रबंध निदेशक ने 17/6/2021 को आदेश किया कि चारो डिस्काम के मीटर रीडिंग के काम के लिए मध्यांचल विद्युत निगम को अधिकृत किया उस समय भी अध्यक्ष ने कोई अधिकार निर्गत नहीं किया था फिर भी मध्यांचल विद्युत वितरण निगम ने उस अवैध आदेश को मान कर अनाधिकृत रूप से निविदाएं आमंत्रित की थी और घोटाला हुआ था, अबकी बार फिर उसी तरीके का एक आदेश 15/3/2024 को निकाला गया है जिसमें की सभी वितरण निगम को अलग-अलग सामान खरीदने के लिए अधिकृत किया गया है अरे जब आप ही के पास कोई अधिकार नहीं है तो फिर आप किसी को कैसे आदेशित कर सकते हैं इससे पाठकों को सब स्थिति समझ में आ जाएगी कि किस तरह से भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन में भ्रष्टाचार का साम्राज्य चला रहे हैं
अब बात करते हैं सामानो की खरीदो व आपूर्ति करने के लिए जो निगम अधिकृत किया गया उनकी कि वह अन्य निगमों को वो अपनी आवश्यकता बताएंगे जो प्रबंध निदेशक पावर कॉरपोरेशन ने अपने वर्णित की है और वह निगम जो अधिकृत किया गया है आदेश में वर्णित समान के लिए वह उसे समान का निविदा निकलेगा और उनकी आपूर्ति भी करेगा अब यक्ष प्रश्न यह उठता है की सभी वितरण निगम अलग-अलग कंपनी/ निगम है कम्पनी एक्ट के अंतर्गत पंजीकृत है तो फिर एक निगम दूसरे निगम की सामानों की आपूर्ति कैसे कर सकता है या तो वह उसे बचेगा या फिर ऋण पर देगा । यदि बेचेगा तो जीएसटी कौन देगा और ऋण पर देगा तो ऋण की वसूली कौन करेगा कितने समय में होगी और उसे आपूर्तिकर्ता निगम को क्या फायदा होगा अगर बचेगा तो दो बार एक ही समान पर है जीएसटी दी जाएगी जब इस संबंध में उच्च अधिकारियों से मेरी वार्तालाप हुई तो उन्होंने मेरे प्रश्न के जवाब में कहा की निविदा हम निकलेंगे बयाने की (ईएमडी) राशि हम जमा करेंगे लेकिन सामान की आपूर्ति उससे संबंधित बैंक गारंटी और आपूर्ति से संबंधित समझौता वह निगम करेगा जिसको आपूर्ति सामान लेना है तो प्रश्न यह उठता है कि जब सामान मैंने खरीदने के लिए निविदा निकाली ही नहीं परन्तु उस पर जीएसटी और बयाना राशि एक दूसरे निगम ने जमा कराई जा चुकी है तो फिर बैंक गारंटी दूसरा वितरण निगम कैसे ले सकता है उसने तो कहीं पर कोई अधिकारी नहीं था और ना ही आपूर्तिकर्ता के पैसे दे सकता है ना ही विवाद की स्थिति में न्यायालय जा सकता है । कुल मिलाकर यह एक बहुत बड़ा घोटाला है जिसमें आपूर्ति करता को चयन करने के लिए अध्यक्ष उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन के एक समिति बनाई जाती है जिसके सर्वे सर्वे अध्यक्ष व प्रबंध निदेशक होते हैं वही समिति फैसला करती है कि कौन-कौन सी कंपनियां आपूर्ति करेगी तो इस तरीके से बड़का बाबू अपनी मनमर्जी से अपने विशेष अधिकारों को प्रयोग करते हुए भ्रष्टाचार को बढ़ावा देते हैं और कोई कुछ नहीं कर पाता अगर इसकी उच्च स्तरीय जांच की जाए तो पिछले कई सालों से उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन को इन बड़का बाबू की अनुभवहीनता की वजह से करोड़ों रुपए का हानि हुई है
और जब इस संबंध में बड़का बाबू से प्रश्न कीजिए तो कहते हैं कि यह मेरा विशेष अधिकार है कि मैं इन निगमन को कैसे चलाऊं अगर आपको ज्यादा परेशानी है तो जाइए न्यायालय की शरण में । तो इस तरीके से उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन को अनुभवहीन भ्रष्टाचारी भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी चल रहे हैं और उत्तर प्रदेश सरकार के आंखों में धूल झोंक कर अपनी जेब में भर रहे हैं माननीय मुख्यमंत्री जी के संज्ञान में लाना चाहूंगा कि एक तरफ तो यह घटिया आपूर्ति लेते हैं और उनसे दम भी काम करवाते हैं और आपूर्ति में जब दम काम कराए जाएंगे तो उसकी क्वालिटी तो खराब होगी इसका ताजा तरीन उदाहरण आरएसएस योजना के अंतर्गत टंकी प्रोजेक्ट में हुई केबल सप्लाई को देखा जा सकता है जिसमें दामों की सहमति के लिए संधि वार्ता में कंपनियों के ऊपर दबाव बनाया गया था की अपना दम कम करें तो उसका नतीजा खराब आपूर्ति के रूप में सामने आ रहा है तो इस तरीके से बड़का बाबू लोग उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन को धीरे-धीरे खोखला करके निजीकरण की धकेल है खैर
युद्ध अभी शेष है
अविजित आनन्द