लखनऊ : (मानवी मीडिया) राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने समूह द्वारा आयोजित ’संवादी: उत्सव अभिव्यक्ति का’ कार्यक्रम का शुभारम्भ किया। उन्होंने इस मंच को समाज में संवाद, विचार और सकारात्मक बदलाव का माध्यम बताते हुए इसे अत्यंत महत्वपूर्ण आयोजन बताया। अपने उद्बोधन में राज्यपाल ने कहा कि संवाद ज्ञान का आधार है और भारतीय ज्ञान परम्परा की समृद्धि इसी संवाद की वजह से रही है।
उन्होंने कहा कि भारत की अहिंसा, योग और आध्यात्मिकता की शक्ति को वैश्विक स्वीकृति मिली है, जो हमारी ज्ञान परंपरा की गहराई और प्रासंगिकता को दर्शाता है। उन्होंने संवाद का महत्व और वर्तमान परिदृश्य पर प्रकाश डालते हुए कहा कि दुनिया तेजी से बदल रही है, और गहरे एवं सशक्त संवाद के माध्यम से ही ज्ञान की समृद्धि संभव है।
सोशल मीडिया, फोन और इंटरनेट के युग में संवाद का गहन और वैचारिक प्रभाव अक्सर नदारद रहता है। उन्होंने महाभारत में कृष्ण-अर्जुन, नचिकेता-यम जैसे संवादों का जिक्र करते हुए कहा कि ये संवाद जीवन के गहरे सत्य की खोज का प्रतीक हैं।
उन्होंने यह भी कहा कि आज के समाज में कई ऐसे मुद्दे हैं जिन पर गहन विचार और समाधान की आवश्यकता है। समाज के प्रति दायित्व बोध और संवेदनशीलता पर जोर देते हुए उन्होंने कहा कि साहित्य, कला और समाज के विभिन्न पहलुओं पर स्वस्थ संवाद और परिचर्चा समाज की प्रगति का मार्ग प्रशस्त कर सकते हैं। राज्यपाल ने मीडिया, विशेषकर समाचार पत्रों और पत्रिकाओं को समाज का अभिन्न हिस्सा बताते हुए कहा कि यह केवल सूचना का माध्यम नहीं है,
बल्कि समाज को जागरूक करने और विचारशीलता को प्रोत्साहित करने का महत्वपूर्ण साधन है। उन्होंने कहा कि महिला अधिकार, सामाजिक असमानताएं, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाएं और पर्यावरण जैसे मुद्दों पर मीडिया की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। उन्होंने दैनिक जागरण समूह के इस प्रयास की सराहना की और उम्मीद जताई कि यह आयोजन समाज के हर पहलू को उजागर करेगा।
उन्होंने भारतीय धार्मिक ग्रंथों जैसे रामायण और महाभारत में संवाद के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि इनमें छिपे ज्ञान को समाज के सामने लाने की आवश्यकता है। उन्होंने श्री कृष्ण और बर्बरीक के संवादों का उदाहरण देते हुए कहा कि इनसे जीवन के गहरे सत्य और समाजोपयोगी तथ्यों का अध्ययन किया जा सकता है।
राज्यपाल ने कहा कि हमें अपने शोध कार्यों को समाज के लिए प्रस्तुत करना चाहिए ताकि उसका लाभ व्यापक स्तर पर मिल सके। दहेज प्रथा को समाज का अभिशाप बताते हुए राज्यपाल ने कहा कि दहेज प्रथा के खिलाफ संवाद आवश्यक है। उन्होंने जेल में बंद उन महिलाओं का जिक्र किया जो दहेज प्रथा की वजह से कष्ट झेल रही हैं और कहा कि इस कुप्रथा को खत्म करने के लिए समाज को सामूहिक प्रयास करने चाहिए।
उन्होंने कहा कि इन बुराइयों को खत्म करने के लिए सभी को संकल्प करना चाहिए कि वे समाज में व्याप्त कुरीतियों को खत्म करने और सकारात्मक बदलाव लाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे क्योंकि किसी भी समस्या का समाधान संकल्प की शक्ति से शुरू होता है। सकंल्प लेने से समस्या आधी खत्म हो जाती है। राज्यपाल ने आदिवासी समाज की शिक्षा, स्वास्थ्य और पोषण से जुड़ी समस्याओं पर भी संवाद की आवश्यकता बताई। उन्होंने कहा कि आदिवासी बच्चों को शिक्षा और इलाज मिलना चाहिए तथा उनकी हर समस्या का सकारात्मक समाधान निकालने के लिए प्रयास किए जाने चाहिए।
उन्होंने कहा कि इन बुराइयों को खत्म करने के लिए सभी को संकल्प करना चाहिए कि वे समाज में व्याप्त कुरीतियों को खत्म करने और सकारात्मक बदलाव लाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे क्योंकि किसी भी समस्या का समाधान संकल्प की शक्ति से शुरू होता है। सकंल्प लेने से समस्या आधी खत्म हो जाती है। राज्यपाल ने आदिवासी समाज की शिक्षा, स्वास्थ्य और पोषण से जुड़ी समस्याओं पर भी संवाद की आवश्यकता बताई। उन्होंने कहा कि आदिवासी बच्चों को शिक्षा और इलाज मिलना चाहिए तथा उनकी हर समस्या का सकारात्मक समाधान निकालने के लिए प्रयास किए जाने चाहिए।
राज्यपाल ने विद्यार्थियों को भारतीय साहित्य की पुरानी पुस्तकों को पढ़ने के लिए प्ररित किया। उन्होंने कहा कि इनमें ज्ञान का अपार भंडार छिपा है, जिसका विश्लेषण और प्रचार-प्रसार जरूरी है। राज्यपाल ने कहा कि राज्य सरकार और केन्द्र सरकार की योजनाओं की वजह से आज हर घर में शौचालय है, महिलाएं कैंसर से मुक्त हो रही हैं, बच्चे स्कूल जा रहे हैं और समाज में भिक्षावृत्ति समाप्त हो रही है। उन्होंने कहा कि जब समाज का हर सक्षम व्यक्ति एक गरीब व्यक्ति का हाथ थामेगा, तभी देश का समग्र विकास होगा।