लखनऊ (मानवी मीडिया) कवयित्री- कंचन सिंह सा •आ •प्रा वि जलालपुर बछरावां
रायबरेली
शरद चांदनी
सकल विमल पर बैठी,
स्वयं सुवासित,
स्वयं पल्लवित,
वेणु वादिनि ,
निरख सखी शरद चांदनी।।
धरती _ गगन है मगन,
चहुं ओर है धवल चंद्र किरण,
नभ_धरा को बांध रही रेशमी डोर,
सजल है नयनों के दो कोर ,
हृदय तरंग कर रही उन्माद्दिनी ,
निरख सखी शरद चांदनी।।
तुम चंचल,मधुर स्वप्न सी झिलमिल,
मधुमय निर्झर स्वप्निल,
श्वेत आसमान में है मृदु मुस्कान,
प्रकृति कर रही हर्षित गान,
तुम आशा प्राण हार्दिनी,
निरख सखी शरद चांदनी।।
कवयित्री- कंचन सिंह सा •आ •प्रा वि जलालपुर बछरावां
रायबरेली