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Wednesday, September 11, 2024

प्रेमानंद महाराज ने PhD डिग्री को ठुकराया : कहा- 'भक्त' की उपाधि के आगे सब छोटा


कानपुर : (
मानवी मीडियासंत प्रेमानंद महाराज ने कानपुर यूनिवर्सिटी (CSJMU) की PhD मानद उपाधि के प्रस्ताव को लौटा दिया। रजिस्ट्रार डॉ. अनिल कुमार यादव शनिवार को वृंदावन में श्री हित राधा केली कुंज आश्रम पहुंचे थे। संत प्रेमानंद के सामने प्रस्ताव रखा।  कानपुर यूनिवर्सिटी में 28 सितंबर को दीक्षांत समारोह होना है। इसकी अध्यक्षता राज्यपाल और कुलाधिपति आनंदी बेन पटेल करेंगी। 

समारोह में मेधावी छात्रों को पदक और उपाधि के साथ एक विभूति को मानद उपाधि से सम्मानित किया जाना है। इसके लिए यूनिवर्सिटी प्रशासन ने संत प्रेमानंद के नाम का प्रस्ताव रखा। इसकी ठोस वजह दी गई कि प्रेमानंद ने कानपुर के नरवल में जन्म लिया था। फिलहाल, यूनिवर्सिटी के ऑफर को ठुकराने का वीडियो भजन मार्ग ने जारी किया है। इसमें दिख रहा है कि रजिस्ट्रार ने आश्रम में संत प्रेमानंद के सामने प्रस्ताव रखा।

संत प्रेमानंद ने साफ कहा- पीएचडी हमारे स्तर का मामला नहीं। हम इसका क्या करेंगे? हम तो भक्त हैं। सबसे बड़ी उपाधि सेवक की प्रेमानंद महाराज ने कहा- हम ईश्वर के दासत्व में हैं। बड़ी उपाधि के लिए छोटी उपाधियों का त्याग किया जाता है। सबसे बड़ी उपाधि है 'सेवक', जो संसार में ईश्वर के दास के रूप में है। बाहरी उपाधि से हमारा उपहास होगा, न कि सम्मान। यह लौकिक उपाधि हमारी अलौकिक उपाधि में बाधा है। आपका भाव उच्च कोटि का है। उसमें आधुनिकता छिपी है। 

हमारी भक्ति सबसे बड़ी उपाधि है। अब प्रेमानंद जी के बचपन से लेकर प्रसिद्ध कथावाचक और संत बनने की कहानी13 साल की उम्र में प्रेमानंद जी महाराज ने घर छोड़ दिया प्रेमानंद महाराज का कानपुर के अखरी गांव में जन्म और पालन-पोषण हुआ। यहीं से निकलकर वो इस देश के करोड़ों लोगों के मन में बस गए। उनके बड़े भाई गणेश दत्त पांडे बताते हैं- मेरे पिता शंभू नारायण पांडे और मां रामा देवी हैं। हम 3 भाई हैं, प्रेमानंद मंझले हैं। प्रेमानंद हमेशा से प्रेमानंद महाराज नहीं थे। बचपन में मां-पिता ने बड़े प्यार से उनका नाम अनिरुद्ध कुमार पांडे रखा था।

अपने निवास से आश्रम के लिए रात 2.20 बजे जाते प्रेमानंद महाराज। शिष्य उन्हें चारों तरफ से घेरे रहते हैं। हर पीढ़ी में कोई न कोई एक बड़ा साधु-संत निकला गणेश पांडे बताते हैं- हमारे पिताजी पुरोहित का काम करते थे। मेरे घर की हर पीढ़ी में कोई न कोई बड़ा साधु-संत होकर निकलता है। पीढ़ी दर पीढ़ी अध्यात्म की ओर झुकाव होने के चलते अनिरुद्ध भी बचपन से ही आध्यात्मिक रहे। बचपन में पूरा परिवार रोजाना एक साथ बैठकर पूजा-पाठ करता था। 

अनिरुद्ध यह सब बड़े ध्यान से सभी देखा-सुना करता था। शिव मंदिर में चबूतरा बनाने से रोका, तो घर छोड़ दिया बचपन में अनिरुद्ध ने अपनी सखा टोली के साथ शिव मंदिर के लिए एक चबूतरा बनाना चाहा। इसका निर्माण भी शुरू करवाया, लेकिन कुछ लोगों ने रोक दिया। इससे वह मायूस हो गए। उनका मन इस कदर टूटा कि घर छोड़ दिया। घरवालों ने उनकी खोजबीन शुरू की। काफी मशक्कत के बाद पता चला कि वो सरसौल में नंदेश्वर मंदिर पर रुके हैं। घरवालों ने उन्हें घर लाने का हर जतन किया, लेकिन अनिरुद्ध नहीं माने। फिर कुछ दिनों बाद बची-खुची मोह माया भी छोड़कर वह सरसौल से भी चले गए।

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