संगोष्ठी का विषय था राष्ट्रीय एकता और हिंदी।
संगोष्ठी में मुख्य वक्ता प्रोफेसर पवन अग्रवाल लखनऊ विश्वविद्यालय, डा श्याम नंदन , महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय मोतिहारी पूर्वी चंपारण बिहार,डा रमेश प्रताप सिंह, श्री जयनारायण मिश्र पी .जी .कालेज , महाविद्यालय की प्राचार्या प्रो मंजुला उपाध्याय, हिन्दी विभागाध्यक्ष प्रो मंजुला यादव,प्रो अमिता रानी सिंह, डा अपूर्वा अवस्थी, अंकिता पांडे, मेघना यादव उपस्थित रहीं।
कार्यक्रम का प्रारंभ दीप प्रज्वलन और मां सरस्वती वन्दना से हुआ।अतिथियों का स्वागत पुष्प पौध और स्मृति चिन्ह से किया गया। विशिष्ट वक्ता
डा श्याम नंदन ने अपने वक्तव्य में कहा कि जनता की चित्तवृत्ति सामाजिक राजनीतिक और धार्मिक होती है ,ये प्रवृत्तियां परिलक्षित होती हैं। भारतेंदु जी ने देश वत्सलता प्रदान की ।आवौ भारत दुर्दशा देखहु आई कहते हुए पूरे देश के दुख को लिखा। द्विवेदी युग के पूरे साहित्य में राष्ट्रीयता मुखरित हुई। निराला ने राष्ट्रीय एकता का स्वर गूंजा। माखनलाल चतुर्वेदी ने पुष्प की अभिलाषा लिखी।
डा रमेश प्रताप सिंह ने कहा कि हमें किसी भाषा से डरने की आवश्यकता नहीं है। विश्व में सबसे ज्यादा लोग हिंदी बोलते और पढ़ते हैं। आज हर व्यक्ति को काम की आवश्यकता है और आज हिंदी रोजगार की भाषा बन गई है। वैज्ञानिक क्षेत्र में भी हिंदी को बढ़ावा मिल रहा है। हिन्दी भारत की राष्ट्रभाषा बनेगी हमारी वर्तमान सरकार इस ओर प्रयासरत है।
द्विवेदी युग से लेकर आज तक सभी साहित्यकारों ने राष्ट्रीय एकता में अपनी रचनाओं द्वारा महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।हिन्दी ने सभी भाषाओं को अपनाया है। हमें प्रांतीयता, जातिवाद, भाषावाद को छोड़कर केवल हिन्दी को आगे बढ़ाना चाहिए।आज पर्यटन में भी हिंदी ने अपना स्थान बना लिया है।
मुख्य वक्ता प्रो पवन अग्रवाल ने कहा कि हिंदी 17बोलियों का समुच्चय है। नयी शिक्षा नीति में मातृभाषा पर अधिक ध्यान दिया गया है हिंदी शब्द या संज्ञा का प्रयोग नहीं हुआ है।1968मे जब त्रिभाषा फार्मूला आया था तब तीन भाषाओं को सीखने की बात कही गई थी। लेकिन सबसे बड़ा विश्वासघात हिन्दी भाषी क्षेत्र के लोगों ने किया। और अन्य भाषाएं नहीं सीखीं।
आज राजभाषा हिंदी को 75वर्ष हो गये है डा राजेन्द्र सिंह व्यवहार जी का जन्म दिन 14सितंबर को था और उन्होंने हिंदी के विकास के लिए बहुत कार्य किया तभी से हिंदी दिवस प्रतिवर्ष 14सितंबर को मनाया जाता है।भारत में लगभग 1600भाषाएं बोली जाती है लेकिन केवल 22भाषाएं ही आठवीं अनुसूची में शामिल की गयीं। आज मैथिली के अलग होने पर कवि विद्यापति हिंदी से अलग हो गए। यदि हम क्षेत्रीयता और भाषाई विवाद में पड़े तो हिंदी में क्या रह जाएगा। हिन्दी में वह क्षमता है जो देश को एकता के सूत्र में बांधती है।
प्राचार्या प्रो मंजुला उपाध्याय ने कहाकि हिंदी हमारी अभिव्यक्ति की भाषा है हमें हिन्दी दिवस को उत्सव के समान मनाना चाहिए। आज राष्ट्रीय एकता में हिंदी पर्यटन के द्वारा महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। धन्यवाद ज्ञापन हिन्दी विभागाध्यक्ष प्रो मंजुला यादव ने दिया। कार्यक्रम का सफल संचालन अंकिता पांडे ने किया। इस अवसर पर स्लोगन प्रतियोगिता, भाषण प्रतियोगिता और काव्यपाठ प्रतियोगिता में विजेता छात्राओं को पुरस्कार भी प्रदान किये गये।