लखनऊ (मानवी मीडिया)उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा हिन्दी दिवस समारोह के शुभ अवसर पर शनिवार 14 सितम्बर, 2024 को एक दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन हिन्दी भवन के निराला सभागार लखनऊ में पूर्वाह्न 10.30 बजे से किया गया।
दीप प्रज्वलन, माँ सरस्वती की प्रतिमा पर माल्यार्पण, पुष्पार्पण के उपरान्त वाणी वंदना सर्वजीत सिंह द्वारा प्रस्तुत की गयी।
सम्माननीय अतिथि डॉ० रामकठिन सिंह, डॉ० श्रुति, डॉ० रमेश प्रताप सिंह का स्वागत स्मृति चिह्न भेंट कर आर०पी० सिंह, निदेशक, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा किया गया।
डॉ० रमेश प्रताप सिंह ने कहा- हिन्दी भाषा में विस्तार की सम्भावनाएं है। हिन्दी सभी भाषाओं की समुच्य है। भाषा अभिव्यक्ति का साधन होती है। आज की हिन्दी राजभाषा तक सीमित नही है। इसका हिन्दी भाषा से सरल कोई भाषा नही है। हिन्इदी पहले भी समृद्ध थी और आज की हिन्दी में विरासत के तत्व विद्यमान हैं।
हिन्दी राष्ट्रभाषा नही बन सकी उसमें हिन्दी ही नही बल्कि दृढ़ इच्छाशक्ति की
कमी है, हिन्दी हमारी भावना, संवेदना और संस्कृति है। क्षेत्रीय, प्रान्तीय भाषा कन्नड़,
नेपाली हिन्दी को विकसित होने में बाधा डालती है। केशवचन्द्र शेन से हिन्दी को राष्ट्रीय
स्तर पर एक पहचान बनाने में बड़ी भूमिका निभायी थी। हिन्दी भाषा कभी-कभी कमजोर
स्थिति में नही रही। देश स्वतंत्रता में हिन्दी साहित्यकारों का काफी योगदान रहा।
साहित्यकारों की कालजयी ताकत भी रही जिससे देश स्वतंत्र हो गया।
डॉ० श्रुति ने कहा आज हिन्दी भाषा के सम्मुख कई चुनौतियाँ है। हिन्दी में
बोलने की अभूतपूर्व क्षमता है। भारत बहुभाषी विविध संस्कृतियों का देश है। भाषायी संस्कृति को एक सूत्र में बांधने की क्षमता हिन्दी को ही है। हिन्दी केवल एक भाषा ही नही भारत की संस्कृति हैं हिन्दी भारत माता के माथे की बिन्दी है। महात्मा गांधी जी ने एकभाषिता पर काफी बल दिया। हिन्दी में अन्य भाषाओं को समाहित करने की क्षमता है। हिन्दी का शब्द भण्डार निरन्तर बढ़ता जा रहा है। हिन्दी में संप्रेषणीयता की अद्भुत क्षमता है। संचार माध्यम व फिल्मों ने भी हिन्दी को बढ़ावा दिया। अलग-अलग भाषाओं के शब्द को हिन्दी ने अपने में समाहित करती चली जा रही है। हिन्दी को आगे बढ़ाने में आत्मविश्वास की आवश्यकता है। हमारी हिन्दी की भावना देशवासियों में प्रचार-प्रसार करने की आज आवश्यकता है।
डॉ० रामकठिन सिंह ने कहा हिन्दी को बढ़ावा देने में विज्ञान परिषद ने 1914 सेनिरन्तर प्रकाशित होने वाली पत्रिका 'विज्ञान' ने अहम भूमिका निभायी। अहिन्दी लेखकों में
गुणाकरमुले का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। वर्तमान में नई शिक्षा नीति ने भी हिन्दी
को अग्रसर करने में प्रयासरत है। हमे अपनी मात्र भाषा में लिखने, बोलने, पढ़ने, सीखने में गर्व का अनुभव होना चाहिए। उन्होंने कहा कि हमें अनुवाद के स्थान पर मूल लेखन पर बल देना चाहिए। हिन्दी एक सक्षम भाषा है, जिसमें विज्ञान लेखन की पर्याप्त क्षमता है। उन्होंने विज्ञान विषय पर केन्द्रित अपनी कविता का पाठ किया।
डॉ० अमिता दुबे, प्रधान सम्पादक, उ०प्र० हिन्दी संस्थान द्वारा कार्यक्रम का संचालन एवं संगोष्ठी में उपस्थित समस्त साहित्यकारों, विद्वत्तजनों एवं मीडिया कर्मियों का आभार व्यक्त किया गया।