लखनऊ (मानवी मीडिया)
इस संगोष्ठी में डा0 सूर्यकान्त (प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष, रेस्पिरेटरी मेडिसिन के0जी0एम0यू0, पूर्व अध्यक्ष, इण्यिन चेस्ट सोसाइटी, फेलो अमेरिकन कॉलेज ऑफ चेस्ट फिजीशियन) और अर्न्तराष्ट्रीय विशेशज्ञ के रूप में भारतीय मूल की डा0 अंजू त्रिपाठी पीटर्स (निदेशक, क्लीनकल रिसर्च, डिविजन ऑफ एलर्जी, इम्यूनोलोजी, नार्थ वेस्टर्न यूनिर्वसिटी, फीनवर्ग स्कूल ऑफ मेडिसिन, शिकागो, अमेरिका) ने अपने व्याख्यान दिये।
इस अवसर पर डा0 सूर्यकान्त जिन्हे अभी हाल ही में स्टेनफोर्ड यूनिवर्सिटी द्वारा जारी दुनिया की शीर्ष दो प्रतिशत वैज्ञानिकों की सूची में स्थान दिया गया है, ने बताया कि अस्थमा से पीड़ित 80 प्रतिशत मरीजों में एलर्जिक राइनाइटिस की समस्या पायी जाती है। इसी प्रकार एलर्जिक राइनाइटिस के एक तिहाई मरीजो में भविष्य में अस्थमा होने की सम्भावना बनी रहती है।
उन्होने बताया कि अस्थमा के हर मरीज को नाक, कान गला विशेशज्ञ और एलर्जिक राइनाइटिस के प्रत्येक मरीज को चेस्ट फिजीशियन द्वारा सलाह जरूर लेनी चाहिए। उन्होने बताया कि नाक घर के प्रथम तल की तरह और फेफड़ा भूतल की तरह होता है। अगर प्रथम तल पर लीकेज की समस्या हो तो यह भूतल को भी प्रभावित करता है। डा0 सूर्यकान्त ने बताया कि एलर्जन से बचाव और एन्टी एलर्जिक दवाओं के प्रयोग से इस समस्या पर काबू पाया जा सकता है। अमेरिकी विशेशज्ञ डा0 अंजू त्रिपाठी पीटर्स ने बताया कि नेजल स्प्रे, एन्टी एलर्जिक दवाओं, इम्यूनोथेरेपी और सर्जरी द्वारा इस समस्या को दूर किया जा सकता है। इस संगोष्ठी का आयोजन लखनऊ के होटल मे किया गया जिसमें अनेक चेस्ट फिजिशीयन, बाल रोग विशेशज्ञ, ई0एन0टी0 सर्जन, और एलर्जी विशेशज्ञो ने भाग लिया एवं देश के 49 शहरो से 1000 से ज्यादा डाक्टर्स वर्चुअल माध्यम से इस संगोष्ठी में जुडे। इस अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठी के आयोजन के एजुकेशनल पार्टनर के रूप में सैनेफी लिमिटेड ने सहयोग किया।