नई दिल्ली : (मानवी मीडिया) सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को लेकर दायर एक याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें बॉन्ड को जरिए चुनावों में हुए कथित घोटालों की स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम (एसआईटी) से जांच कराने की मांग की गई थी. दो गैर-सरकारी संगठनों (एनजीओ) द्वारा दायर एक जनहित याचिका (पीआईएल) में राजनीतिक दलों, निगमों और जांच एजेंसियों के बीच ‘स्पष्ट रूप से बदले की भावना’ का आरोप लगाया गया है. याचिका में चुनावी बांड योजना को एक ‘घोटाला’ बताया गया है. याचिका में ये भी दावा किया गया कि कुछ शेल कंपनियां और घाटे में चल रही कंपनियों ने इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए अलग-अलग राजनीतिक दलों को चंदा दिया, जैसा कि चुनाव आयोग (ईसी) द्वारा जारी आंकड़ों से पता चला है. याचिका में इन कंपनियों को मिलने वाले धन लाभ का सोर्स पता लगाने के लिए अधिकारियों से जांच करने की मांग की गई थी.
SC ने चुनावी बॉन्ड को बताया था ‘असंवैधानिक’
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने लोकसभा चुनाव से ठीक पहले 15 फरवरी को चुनावी बांड योजना को ‘असंवैधानिक’ करार देते हुए इस स्कीम को रद्द कर दिया था. मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली शीर्ष अदालत की पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कहा था कि गुमनाम चुनावी बांड योजना ‘अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत सूचना के अधिकार का उल्लंघन है.’ अदालत ने कहा था कि राजनीतिक दल चुनावी प्रक्रिया में प्रासंगिक इकाइयां हैं और चुनावी विकल्पों के लिए राजनीतिक दलों की फंडिंग की जानकारी आवश्यक है. सुप्रीम कोर्ट में चुनावी बॉन्ड में घोटाले का दावा करने वाली याचिका में कहा गया है कि चुनावी बॉन्ड घोटाले में 2जी घोटाले या कोयला घोटाले के विपरीत धन का लेन-देन है, जहां स्पेक्ट्रम और कोयला खनन पट्टों का आवंटन मनमाने ढंग से किया गया था, लेकिन धन के लेन-देन का कोई सबूत नहीं था.
2018 में पेश किया गया था चुनावी बॉन्ड
याचिका में आगे कहा गया, ‘फिर भी इस अदालत ने अदालत को आदेश दिया- उन दोनों मामलों में जांच की निगरानी की, विशेष लोक अभियोजकों की नियुक्ति की और उन मामलों से निपटने के लिए विशेष अदालतों का गठन किया.’ आपकी जानकारी के लिए बता दें कि चुनावी बॉन्ड को 2018 में पेश किया गया था और इसे राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता लाने के प्रयासों के तहत राजनीतिक दलों को दिए जाने वाले नकद दान के विकल्प के रूप में पेश किया गया था. याचिका में आरोप लगाया गया है कि कई कंपनियां जो एजेंसियों द्वारा जांच के दायरे में थीं, उन्होंने जांच के नतीजों को संभावित रूप से प्रभावित करने के लिए सत्तारूढ़ पार्टी को बड़ी रकम का दान दिया है.