मानव वन्य जीव संघर्ष को न्यून करने की दिशा में वन विभाग द्वारा किये जा रहे प्रयास एवं भविष्य की रणनीति - मानवी मीडिया

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Saturday, August 24, 2024

मानव वन्य जीव संघर्ष को न्यून करने की दिशा में वन विभाग द्वारा किये जा रहे प्रयास एवं भविष्य की रणनीति

 

लखनऊ (मानवी मीडिया)मानव-वन्यजीव संघर्ष तब होता है जब मनुष्यों और वन्यजीवों के बीच मुठभेड़ नकारात्मक परिणामों की ओर ले जाती है। इसके फलस्वरूप सम्पत्ति, अजीबिका और कभी-कभी जीवन का नुकसान भी होता है। इन मुठभेड़ों के परिणामस्वरूप मानव-वन्यजीव दोनों को तुरंत प्रभावित होना पड़ता है। जैसे-जैसे मानव आबादी व स्थान की मांग बढ़ती जा रही है, लोगों और वन्यजीवों के बीच परस्पर क्रिया और संसाधनों के लिए प्रतिस्पर्धा बढ़ती जा रही है। इस कारण मानव-वन्यजीव संघर्ष में वृद्धि होती है।

उत्तर प्रदेश एक विशाल प्रदेश है, जिसका कुल क्षेत्रफल 2.43 लाख वर्ग कि0मी0 आबादी 25.70 करोड़ है। उत्तर प्रदेश में वन्य जीव जनित मानव वन्यजीव संघर्ष की घटनाएं, वन्य जीवों की असामयिक मृत्यु, वन्य जीवों की आबादी क्षेत्र में आवाजाही की बढ़ती घटनाएं, को न्यून करने के दृष्टिकोण से उत्तर प्रदेश वन विभाग लगातार स्थानीय लोगों के सहभागिता से सह-अस्तित्व की दिशा में प्रयास कर रहा है। 

मानव-वन्य जीव संघर्ष की समस्याः 

प्रदेश में वन क्षेत्रों से सटे ग्रामीण क्षेत्रों में बाघ, तेन्दुआ एवं भेड़िया के कारण मानव-वन्यजीव संघर्ष की घटनाएं प्रकाश में आ रही हैं। इन घटनाओं को विभाग द्वारा अत्यन्त गम्भीरता से लेते हुए तत्काल उचित कार्यवाही की जा रही है, जिसका विवरण निम्न प्रकार हैः-

संवेदनशील ग्रामों की सूची तैयार कर एवं सुभेद्य क्षेत्रों में गूगल मैपिंग के माध्यम से वन्य जीव प्रभावित क्षेत्रों का विश्लेषण कर सुनियोजित तरीके से कार्यवाही की जा रही है। 

समय-समय पर सक्षम स्तर से अनुमति प्राप्त कर आवश्यकतानुसार विशिष्ट स्थलों पर पिंजड़ा लगाकर उसमें ठंपज (बकरा) बंधवाकर संघर्षी वन्यजीव को पकड़ने का प्रयास किया जा रहा है।

कैमरा ट्रैप, ड्रोन, पी.आई.पी. आदि के माध्यम से वन्यजीवों के मूवमेंट की जानकारी प्राप्त की जा रही है। 

आवश्यकता पड़ने पर संघर्षी वन्यजीवों को ट्रैंक्‍यूलाइज कर सुरक्षित रेस्क्यू किया जाता है।

संवेदनशील ग्रामों में ग्राम प्रधान एवं ग्रामीणों से जनसंपर्क स्थापित कर जनजागरूकता कार्यक्रम/गोष्ठियां का आयोजन किया जा रहा है। 

संवेदनशील जनपदों यथा बिजनौर, मुरादाबाद, पीलीभीत, लखीमपुर-खीरी, बहराइच, गोण्डा, महराजगंज आदि में त्वरित कार्यवाही दल ¼Rapid Response Team½ का गठन किया गया है, जो किसी भी घटना की स्थिति में तत्काल मौके पर पहुंचकर सहायता प्रदान करता है।

वनकर्मियों की पेट्रोलिंग टीम गठित कर प्रभावित क्षेत्रों में रात्रि गश्त किया जा रहा है। 

डब्लू.डब्लू.एफ. एवं डब्लू.आई.आई. विषेषज्ञों, पशुचिकित्सकों की सेवायें लेते हुये गुलदार आदि के व्यवहार को समझने एवं घटनाओं पर अंकुश लगाने का प्रयास किया जा रहा है। 

इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, प्रिंट मीडिया व सोशल मीडिया के माध्यम से लोगों को मानव वन्यजीव संघर्ष से बचाव के उपायों की जानकारी प्रदान की जा रही है। 

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भारतीय किसान यूनियन के पदाधिकारियों के साथ बैठक कर मानव गुलदार संघर्ष से बचाव हेतु किसानों से अपील की जा रही है।

नियमित अंतराल पर मानव-वन्यजीव संघर्ष के दृष्टिगत हॉटस्पॉट तथा महत्वपूर्ण प्राकृतवास में तैनात वन विभाग के कर्मचारियों को रेस्क्यू ऑपरेशन, वन्यजीव सुरक्षा तथा प्राकृतवास प्रबंधन एवं मानव-वन्यजीव संघर्ष की घटनाओं से निपटने के लिए सक्षम बनाने हेतु कार्यशालाओं/प्रशिक्षण का आयोजन भी कराया जा रहा है।

पीड़ित व्यक्ति के परिवार को नियमानुसार आर्थिक सहायता/मुआवजा दिलाने की त्वरित कार्यवाही सुनिश्चित की जा रही है। दिनांक 01.01.2024 से 20.08.2024 तक हिंसक वन्यजीव तथा बाघ एवं तेन्दुआ द्वारा मारे/घायल किए गए व्यक्तियों के आश्रितों को रू0 156.00 लाख की अनुग्रह आर्थिक सहायता धनराशि स्वीकृत की गई है।

उपरोक्त प्रयासों के परिणाम स्वरूप माह जनवरी, 2024 से 23 अगस्त, 2024 तक कुल 27 तेन्दुआ, 03 बाघ एवं 03 भेड़िया (बहराइच से) रेस्क्यू किये जा चुके हैं। बिजनौर जनपद में माह जनवरी, 2024 से अब तक 14 तेन्दुए रेस्क्यू कर हटाये जा चुके हैं।

मानव-वन्य जीव संघर्ष के निवारण हेतु दीर्घकालीन प्रयासः 

प्रदेश के बिजनौर जनपद एवं आस-पास के इलाकों में पर्याप्त संख्या में गुलदार गन्ने के खेतों में रह रहे हैं, जिसके कारण ग्रामीणों द्वारा कृषि से संबंधित व अन्य दैनिक कार्यों के लिये कास्तकारी क्षेत्रों में विचरण के दौरान गुलदारों के कारण मानव-वन्य जीव संघर्ष की ज्वलंत समस्या के संबंध में समस्या का अध्ययन कर स्थाई निदान का सुझाव देने हेतु भारत सरकार से अनुरोध किया गया है। उक्त के क्रम में भारत सरकार के पत्र दिनांक 22.08.2024 द्वारा निदेशक, भारतीय वन्य जीव संस्थान, देहरादून को विशेषज्ञों की टीम गठित कर समस्या का अध्ययन कर आवश्यक सुझाव उत्तर प्रदेश सरकार को उपलब्ध कराने हेतु निर्देशित किया गया। मौके पर विशेषज्ञों की टीम ने अध्ययन प्रारम्भ कर दिया है।

   उपरोक्त विशेषज्ञ संस्था से प्राप्त सुझावों के अनुसार आवश्यक कार्यवाही सम्पादित  करायी जायेगी। 

वन क्षेत्रों से सटे ग्रामों में मानव-वन्य जीव संघर्ष की घटनाओं को न्यून करने के दृष्टिकोण से राज्य आपदा न्यूनीकरण नीति की सहायता से कतर्नियाघाट वन्य जीव प्रभाग में 75 किमी0, दुधवा टाइगर रिजर्व में 15 किमी0, बफर क्षेत्र में 31 किमी0, पीलीभीत टाइगर रिजर्व में 25 किमी0 चेनलिंक/सोलरफोन्सिंग स्थापित कराई गई है। उक्त के कारण इन क्षेत्रों में मानव-वन्य जीव की घटनाओं में कमीं आयी है। वर्ष 2024-25 में भी उक्त कार्य के अंतर्गत संवेदनशील स्थलों पर चेनलिंक/सोलरफोन्सिंग का कार्य कराया जाना प्रस्तावित है। 

प्रदेश के वन्य जीव क्षेत्रों के आस-पास संवेदनशील ग्रामों में बाघ/गुलदार मित्र चिन्हित किये गये हैं एवं इनको आवश्यक जानकारी उपलब्ध कराते हुए एवं दक्षता विकसित कराकर मानव-वन्य जीव संघर्ष की स्थिति में सहयोग प्राप्त किया जा रहा है।

स्वयंसेवी संस्थाएं यथा WWF (World Wildlife Fund) ,oa WTI (Wildlife Trust of India) का सहयोग प्राप्त करते हुए संवेदनशील ग्रामों में जन-जागरूकता कार्यक्रम के माध्यम से ग्रामीणों द्वारा अपनाई जाने वाली आवश्यक सुरक्षा एवं सतर्कता के संबंध में जानकारी उपलब्ध कराते हुए सुरक्षित जीवन व्यतीत करने हेतु प्रेरित किया जा रहा है।

CSR के माध्यम से संरक्षित क्षेत्र के आस-पास संवेदनशील ग्रामों में LED  लाईट/सोलर लाईट की व्यवस्था कराई जा रही है, जिसके तहत वर्ष 2024-25 में पीलीभीत टाइगर रिजर्व-40, दुधवा टाइगर रिजर्व-60, अमानगढ टाइगर रिजर्व-20 एवं रानीपुर टाइगर रिजर्व-20 गॉवों में कार्य कराये जाना प्रस्तावित है।

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