केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी उत्सव सम्पन्न, प्रेम से आनन्द और घृणा से महाविनाश होता है: श्रीकृष्ण का उपदेश - मानवी मीडिया

निष्पक्ष एवं निर्भीक

.

Breaking

Post Top Ad

Post Top Ad

Tuesday, August 27, 2024

केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी उत्सव सम्पन्न, प्रेम से आनन्द और घृणा से महाविनाश होता है: श्रीकृष्ण का उपदेश

लखनऊ (मानवी मीडिया) केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, लखनऊ परिसर में भगवान् श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव धूमधाम से मनाया गया। इस अवसर पर शिक्षकों, छात्रों एवं छात्राओं ने भगवान् श्रीकृष्ण का षोडशोपचार पूजन किया। पूजन के बाद परिसर में विशिष्ट व्याख्यान का आयोजन हुआ। जिसका विषय है घृणा से महाविनाश और प्रेम से परमानन्द की प्राप्ति के उपदेशक शिक्षक योगेश्वर श्रीकृष्ण। विशिष्ट वक्ता के रूप में ज्योतिषशास्त्र के वरिष्ठ आचार्य एवं डीन प्रो. सर्वनारायण झा ने कहा कि भारत भूमि देवभूमि है, यहाँ के कण-कण में आध्यात्मिक चेतना झलकती है, घर-घर में कृष्ण नाम संकीर्तन की गूंज हमेशा ही सुनाई देती रहती है। कहीं हरि बोल, कहीं श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारे, तो कहीं हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे का संकीर्तन लोगों को भक्ति रस में डुबोता रहता है। छोटे-छोटे गाँवों में पण्डित जी श्रीमद्भागवत कथा का अमृतपान लोगों को कराते रहते हैं और गांव में किसान दिन भर की थकान के बाद जब चैपाल में बैठते हैं तो या तो स्वयं कृष्ण लीला के विषय में चर्चा
करते हैं या कहीं कहीं मथुरा, वृन्दावन से आए हुए कृष्ण लीला मंडली द्वारा झांकी दिखाई जाती है। स्वर्ग से गंगा भारतभूमि पर प्रवाहित होकर भारत भूमि को पवित्र करती रहती है, लेकिन श्रीमद्भागवत कथा रूपी गंगा जो नारद जी ने सनत कुमारों से सुनी और शौनक आदि ऋषियों ने नैमिषारण्य में इकट्ठे होकर श्री सूतजी से सुनी वह श्रीमद्भागवत अमृत कथा रूपी गंगा हर एक भक्त के हृदय में प्रवाहित होकर हर समय पवित्र करती रहती है। भगवान् श्रीकृष्ण और शक्ति स्वरूपा राधा की दिव्य अमर प्रेम कहानी आज सम्पूर्ण विश्व में निःस्वार्थ प्रेम और भक्ति का प्रतीक है। इस अमर प्रेम की शिक्षा के बाद भगवान् श्रीकृष्ण प्रेम नगरी को छोड़कर दो दायाद्यों की घृणा से उत्पन्न महाविनाश का दृश्य और उससे उत्पन्न सन्देश से लोगों को अवगत कराया और श्रीमद्भागवतगीता रूपी जीवन-शैली मानव मात्र के लिए प्रदान की।

अध्यक्षता करते हुए प्रो. लोकमान्य मिश्र ने कहा कि भगवान् श्रीकृष्ण प्रादुर्भाव का उत्सव सभी के लिए सौभाग्य का सूचक है। जिस परिस्थिति में श्रीकृष्ण ने गीतोपदेश का अनुगृह किया वह अद्भुत तथा विस्मयकारी है। वर्तमान समय में जहाँ अशान्ति तथा अत्याचार की विद्यमानता है, श्रीकृष्ण का कर्म सिद्धान्त अत्यन्त प्रासङ्गिक है। आचार्य सर्वनारायण झा जी ने इस प्रसंग का सांगोपांग चित्र उपस्थित किया है। परिसर के इतिहास में एक प्रकार का आयोजन अत्यन्त सराहनीय है। श्रीकृष्ण के उपदेशों का अनुपालन आज अपरिहार्य प्रतीत होता है। हमें इसके लिए अग्रगामी होना चाहिए। परमेश्वर का आशीर्वाद सभी को प्राप्त हो, यही कामना है।

कार्यक्रम में स्वागत प्रो. गुरुचरण सिंह नेगी, संचालन प्रो. पवन कुमार एवं धन्यवाद ज्ञापन प्रो. गजाला अंसारी ने किया।

Post Top Ad