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Saturday, August 3, 2024

पुरानी पेंशन को लेकर सरकार का नकारात्मक रवैया कायम::जे एन तिवारी


लखनऊ ( मानवी मीडिया)पुरानी पेंशन को लेकर सरकार का नकारात्मक रवैया कायम है। सरकारी आंकड़े बताते हैं कि सरकार का आधा से ज्यादा बजट कर्मचारियों के पेंशन एवं वेतन पर खर्च हो रहा है। भारत सरकार के वित्त सचिव  टीवी सोमनाथं की अध्यक्षता में नई पेंशन  में सुधार के लिए एक कमेटी बनाई गई थी, हालांकि उस कमेटी की रिपोर्ट ना तो सार्वजनिक हुई है और ना ही अभी तक लागू हुई है। टीवी सोमनाथं का कहना है कि पुरानी पेंशन की बहाली देश के लिए हानिकारक है। वित्त सचिव कहते हैं कि पुरानी पेंशन बहाली आर्थिक रूप से व्यावहारिक नहीं है, उससे उन नागरिकों पर अधिक भार पड़ेगा जो सरकारी नौकरी में नहीं है।

 हम यह जानना चाहते हैं कि सरकारी कर्मचारियों की पेंशन को लेकर ही इतनी संजीदगी के साथ नकारात्मक रुख  क्यों??  सरकारी कर्मचारी 60 साल नौकरी करने के बाद पेंशन का हकदार होता है। पेंशन , सरकारी कर्मचारियों की 60 वर्ष की सेवाओं के बदले उनके बुढ़ापे में आर्थिक स्थिरता लाने के लिए दी जाती है।सरकार देश के सभी बुजुर्गों को आर्थिक रूप से आत्म निर्भर करना चाहती है लेकिन कर्मचारियों के प्रति कोई सहानुभूति नहीं रखती है। देश में  अन्य वर्ग भी है जिनको पेंशन मिल  रही है।पेंशन पाने वालों में सबसे चर्चित वर्ग  सांसद एवं विधायकों का है। देश में  सांसदों के पेंशन पर लगभग 500 करोड रुपए खर्च होता है और यह खर्च प्रतिवर्ष बढ़ता ही चला जाता है।

सरकार ने कभी सार्वजनिक नहीं किया कि पीढ़ी दर पीढ़ी सांसदों विधायकों को दी जानेवाली पेंशन  पर सरकार के कुल राजस्व का कितने  प्रतिशत खर्च होता है तथा जीडीपी पर इसका कितना असर होता है? 

आइए एक विहंगम दृष्टि डालकर इस पर चर्चा करते हैं। 

देश में सांसद को₹20000 प्रतिमाह पेंशन मिलती है। 

सांसद एवं विधायकों को वेतन भत्ता पेंशन अधीन 254 की धारा_ 8 _क ,के अधीन पेंशन की सुविधा दी जा रही है। 

सांसद 

वेतन  100000 प्रतिमाह

संसद भत्ता ₹2000 प्रतिदिन

 निर्वाचन क्षेत्र भत्ता ₹70000 प्रतिमाह 

 कार्यालय खर्च ₹60000 प्रतिमाह 

यानी 230000 रुपए प्रतिमाह वेतन के  साथ ₹2000 प्रतिदिन भत्ता मिल रहा है।

 विधायक से सांसद बनने पर दोनों पेंशन साथ-साथ मिलती है। मंत्री बन जाने पर मंत्री का वेतन + सांसद की पेंशन + विधायक की पेंशन भी साथ में मिलती है। विधायक 

 पंजाब में विधायक कीपेंशन 75000/ माह है। पहले यह  ₹300000/ प्रतिमाह तक थी। उड़ीसा में₹10000/ माह । राजस्थान में पहली बार विधायक बनने पर₹35000/ माह 

दूसरी बार विधायक बनने पर 35000 + 8 000 

हर बार विधायक बनने पर ₹8000 की बढ़ोतरी 

नौ बार के विधायक की  पेंशन 99 हजार प्रतिमाह  

महाराष्ट्र में विधायकों के पेंशन पर कुल खर्च 72 करोड़ रूपया है। हरियाणा में 30 करोड़ है। 

उत्तर प्रदेश  

विधायक की पेंशन ₹25000/ माह है। प्रति वर्ष ₹2000 की बढ़ोतरी होती है।

10 साल के विधायक की पेंशन RS 35000/ माह 

15 साल की पेंशन 45000/ माह 

20 साल के विधायक की पेंशन 55000/ माह है।

 विधायक को 25000 पेंशन के साथ 5000 महंगाई(DP) भी मिलती है

₹1500/ प्रतिवर्ष इंसेंटिव दिया जाता है 

दो कार्यकाल के बाद पेंशन 39000 हो जाती है। 

इसके बाद ₹4000 प्रति वर्ष बढ़ती है।

विधायक की पेंशन भत्ते सब मिलकर एक ias वेतन से अधिक हो जाता है।

 योगी कमेटी ने ₹35000 प्रतिमाह पेंशन की सिफारिश किया है। 

तीन बार विधायक ,चार बार सांसद रहने पर तीन पेंशन एक साथ मिलती है   ₹1,03000/ माह मिलती है। विधायक निर्वाचन का प्रमाण पत्र मिलते ही  पेंशन के हकदार हो जाते हैं।

कर्मचारी  60 साल की नौकरी करने के बाद पेंशन का हकदार है।  

उत्तर प्रदेशमें 2022 _23 में पेश किए गए बजट के अनुसार पेंशन पर rs 77077.75 करोड रुपए खर्च होते हैं। भारत सरकार के आंकड़े बताते है कि 19%  सरकारी कर्मचारियों के लिए पेंशन पर खर्च होता है। पेंशन प्राप्त करने के लिए न्यूनतम 10 साल की  सरकारी सेवा जरूरी है। 

रिटायरमेंट पर सरकारी कर्मचारी को न्यूनतम ₹3500 पेंशन मिलती है। यदि वास्तव में देखा जाए तो  पेंशन पर सरकार का बड़ा हिस्सा जरूर खर्च हो रहा है लेकिन सांसद एवं विधायकों की पेंशन पर 500 करोड़ का खर्च कर्मचारी पर खर्च होनेवाली  पेंशन की तुलना में कई गुना अधिक है। यह जागरूकता जनता में होनी चाहिए। यदि सरकारी कर्मचारी को पेंशन देना देश के नागरिक के लिए हानिकारक है तो  सांसद और विधायक के लिए  पेंशन योजना,  देश को विकास के रास्ते पर कैसे ले जा सकती है?

सांसद और विधायक को भी पेंशन देने के लिए न्यूनतम दो टर्म का सांसद /विधायक  होना अनिवार्य किया जाना चाहिए। सांसद / विधायक होने  पर कोई एक पेंशन चुनने का विकल्प होना चाहिए। मंत्री पद पर रहते हुए संसद या विधायक की पेंशन देने का अवसर नहीं होना चाहिए।   यदि सरकार वेतन पेंशन अधिनियम 1954 में संशोधन नहीं कर सकती है तो ccs पेंशन रूल 1972 जो की 1954 के बाद में आया है, उसमें भी संशोधन की जरूरत नहीं थी। कृपया सरकार पुनर्विचार करे

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