लखनऊ : (मानवी मीडिया) भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 105 को लेकर देश की पुलिस संकट में है। आकस्मिक कार्रवाईयों में सबूत के तौर पर आडियो अथवा वीडियो न तैयार कर पाना अभियुक्तों की जमानत अथवा अन्य तरह की राहतों का कारण बनता जा रहा है। न्यायालय लगातार शासन-प्रशासन से शिकायतें कर रहा है। यही नहीं कई मामलों में न्यायालयों ने विवेचकों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की संस्तुति भी कर दी है,
जिससे पुलिस परेशान हो गई है। अब पुलिस विभाग को समझ नहीं आ रहा है कि आकस्मिक कार्रवाइयों का वीडियो बनाए तो बनाए कैसे? एक अनुमान के मुताबिक 1 जुलाई से नया कानून लागू होने के बाद पुलिस विभाग के खिलाफ न्यायालयों ने सैकड़ों की संख्या में पत्र लिख डाले। विगत दिनों अभियुक्त को गिरफ्तार करते समय कुछ वीडियो वायरल हुए थे, जो चर्चा का विषय बन गए। वीडियो से प्रतीत हो रहा था कि अभियुक्त की गिरफ्तारी नैसर्गिक नहीं है, बल्कि सुनियोजित है। वीडियो वायरल होने के बाद पुलिस विभाग को खूब ट्रोल किया गया और मजाक भी उड़ा गया। हालांकि वह वीडियो कहां के थे इसकी जांच भी नहीं करवाई गई। हां सवाल जरूर उठने लगा कि क्या यही डिजिटल एवीडेंस पुलिस न्यायालय में पेश करेगी ?