दीप प्रज्वलन, माँ सरस्वती की प्रतिमा पर माल्यार्पण, पुष्पार्पण के उपरान्त वाणी वंदना सुश्री कामनी त्रिपाठी द्वारा प्रस्तुत की गयी।
सम्माननीय अतिथि डॉ० योगेन्द्र प्रताप सिंह, डॉ० हेमांशु सेन व डॉ० अनुराधा पाण्डेय 'अन्वी' का स्वागत डॉ० अमिता दुबे, प्रधान सम्पादक, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा किया गया।
डॉ० अनुराधा पाण्डेय 'अन्वी' ने कहा- भारत की आजादी में हिन्दी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी। मैथिलीशरण गुप्त बन्धन मुक्त प्रवृत्ति के व्यक्ति थे। उन्हें संस्कृत व बांग्ला भाषा का भी ज्ञान था। उनकी रचनाओं में स्त्री पात्रों को विशेष स्थान मिला। नारी मन की व्यथा का आभास उनकी रचनाओं में मिलता है। वे एक सिद्ध हस्त रचनाकार हैं। उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से भारत की जनता को एक सूत्र में बांधने का कार्य किया। उनकी रचना साकेत व भारत-भारती ने भारत के जन मानस में स्फूर्ति व नवीन जोश भरने का कार्य किया। उनकी रचनाएं आत्म गौरव से भर देती हैं। साहित्य जगत में उनकी अमिट छाप है, वे कलम के पुजारी थे। वे लेखक, कवि, निबंधकार, नाटककार व राजनीतिज्ञ के रूप में हमारे सामने आते है। उन्होंने हिन्दी की सेवा में अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया।
डॉ० हेमांशु सेन ने कहा हिन्दी कथा सम्राट मुंशी प्रेमचन्द की कहानियों में शांति, कसक व टीस की झलक दिखायी पड़ती है। उनकी कहानियाँ हृदय से उत्पन्न होती हैं साथ ही हृदय में आकार पाती हैं। प्रेमचन्द कहानीकार, उपन्यासकार व एक निबंधकार के रूप में हमारे सम्मुख हैं। कभी वे यथार्थवादी तो कभी वे आदर्शवादी लेखक के रूप में हमारे सम्मुख आते हैं। उन्होंने कहानी 'ईदगाह' पर बोलते हुए कहा कि इस कहानी में भावनाओं का आवेग है, शांति प्रेम, त्याग है। प्रेमचन्द ने भाषा और साहित्य को उत्कर्ष पर लाने का कार्य किया है। साहित्य में समावेशी प्रवृत्ति विद्यमान है। प्रेमचन्द ने अपनी
रचनाओं की धवल चाँदनी से साहित्य जगत को चमकाया। प्रेमचन्द जी की प्रारम्भिक रचनाएं आस्थावादी हैं। प्रेमचन्द जी की रचनाओं में दलित विमर्श, स्त्री विमर्श, कृषक विमर्श आदि विद्यमान हैं।
डॉ० योगेन्द्र प्रताप सिंह ने कहा राजर्षि पुरुषोत्तम दास टण्डन स्वयं में एक चरित्र हैं। टण्डन जी ने हिन्दी की सेवा करते हुए भारत रत्न प्राप्त किया। वे हिन्दी के उद्धारक एवं उन्नायक के रूप में हमारे सामने हैं। टण्डन जी ने हिन्दी को एक नई पहचान दी। टण्डन जी का जीवन सादगी पूर्ण था। उनका मानना था कि हिन्दी को आजादी प्राप्ति का माध्यम बनाया जा सकता है। आर्य समाज ने भी हिन्दी की महत्ता पर विशेष बल दिया। वे हिन्दी के क्षेत्र में एक उदाहरण के रूप में हमारे सामने आते हैं। वे राष्ट्र भाषा को राष्ट्रीयता के प्रचार-प्रसार के लिए एक माध्यम मानते थे। टण्डन जी ने हिन्दी के प्रचार-प्रसार व उसकी महत्ता को स्थापित करने का आजीवन प्रयास किया।
डॉ० अमिता दुबे, प्रधान सम्पादक, उ०प्र० हिन्दी संस्थान ने कार्यक्रम का संचालन किया। इस संगोष्ठी में उपस्थित समस्त साहित्यकारों, विद्वत्तजनों एवं मीडिया कर्मियों का आभार व्यक्त किया।