(मानवी मीडिया) नया कानून यूट्यूब पत्रकारों को खत्म कर सकता है दशकों पुराने केबल टीवी नेटवर्क (विनियमन) अधिनियम, 1995 की जगह नया कानून लाने का एक प्रयास है. संस्करण में स्ट्रीमिंग सेवाओं के लिए, अपने मंचों पर जारी की जाने वाली सामग्री से पहले उसकी स्क्रीनिंग के लिए जांच समितियों का गठन करें. विधेयक में सरकारी सदस्यता वाली एक प्रसारण सलाहकार परिषद के गठन का भी प्रावधान है, जो प्रसारकों के खिलाफ शिकायतों की सुनवाई करेगी. इन आवश्यकताओं को सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा जारी एक साधारण अधिसूचना के साथ स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म और ऑनलाइन इंफ्लुएंसर्स पर लागू किया जा सकता है. IFF ने अपने हालिया बयान में कहा है, “मंत्रालय के नियामक दायरे में आने वाले हर प्रसारक को केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित नियमों का पालन करना होगा, और ऐसा न करने पर आर्थिक दंड या कारावास भी हो सकता है.” इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन (IFF) ने ऑनलाइन समाचार और एंटरटेनमेंट माध्यमों को नियमों के दायरे में लाने वाले गुप्त बदलावों की निंदा की है. यह बदलाव प्रसारण सेवा (विनियमन) विधेयक के मसौदे के तहत लाए जाने बताये गए हैं. द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार, आईएफएफ ने अपने एक बयान में कहा कि, “सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने नागरिक समाज, पत्रकारों या अन्य हितधारकों की मौजूदगी के बिना सिर्फ मीडिया के कुछ चुनिंदा लोगों से इस विषय पर मुलाकात की. संस्था का कहना है कि यह विधेयक ऑनलाइन मंचों के लिए और ज्यादा सेंसरशिप पैदा करेगा.”
रिपोर्ट में राजनीतिक मुद्दों पर सामग्री अपलोड करने वाले यूट्यूबर एस. मेघनाद का हवाला दिया गया है. मेघनाद के 64 हजार से ज्यादा सब्सक्राइबर हैं. हाल ही में उनके द्वारा इस विषय पर प्रसारित एक वीडियो का शीर्षक था, यह नया कानून यूट्यूब पत्रकारों को खत्म कर सकता है.
द हिंदू ने उसके पास एक विधेयक की कॉपी मौजूद होने की बात कही है, हालांकि इसे सार्वजनिक रूप से प्रकाशित नहीं किया गया है. इसका कारण दस्तावेज में ऐसे पहचान चिन्ह मौजूद हैं, जिससे मसौदा प्राप्त करने वाले व्यक्ति की पहचान खुल सकती है. विधेयक को लेकर जारी प्रेस नोट में जनता की टिप्पणी हेतु कहा गया है कि, यह दशकों पुराने केबल टीवी नेटवर्क (विनियमन) अधिनियम, 1995 की जगह नया कानून लाने का एक प्रयास है. संस्करण में स्ट्रीमिंग सेवाओं के लिए, अपने मंचों पर जारी की जाने वाली सामग्री से पहले उसकी स्क्रीनिंग के लिए जांच समितियों का गठन करें. विधेयक में सरकारी सदस्यता वाली एक प्रसारण सलाहकार परिषद के गठन का भी प्रावधान है, जो प्रसारकों के खिलाफ शिकायतों की सुनवाई करेगी.