लखनऊ : (मानवी मीडिया) मुहर्रम इस्लामी कैलेंडर का पहला महीना माना जाता है। मुहर्रम इस्लाम धर्म में विश्वास करने वाले लोगों का एक प्रमुख दिन है। इस मौके पर ताजिये यानी मोहर्रम का जुलूस निकाला जाता है। इस दिन शिया मुसलमान इमामबाड़ों में जाकर मातम मनाते हैं और ताजिया निकालते हैं। इसी क्रम में लखनऊ स्थित बड़ा इमामबाड़ा में शनिवार रात को मोहर्रम के छठे दिन आग का मातम हुआ। इसमें बड़ी संख्या में लोग आग के शोलों पर चलते हुए या हुसैन के नारा लगाते हुए नजर आए हैं।
इसको लेकर ऐशबाग ईदगाह के मौलाना खालिद रशीद फिरंगी महली ने एलान किया कि 8 जुलाई को मोहर्रम की पहली तारीख होगी और यौम ए आशूरा 17 जुलाई को होगा। मुहर्रम की 10वीं तारीख को यौम-ए-आशूरा होता है, जो इस साल 17 जुलाई को होगा। इस्लामी मान्यताओं के अनुसार कर्बला में एक युद्ध के दौरान इस दिन हजरत मुहम्मद के नवासे (नाती) हजरत हुसैन अपने 72 साथियों के साथ शहीद हो गए थे।
इसमें उनके 6 महीने के पुत्र हजरत अली असगर भी शामिल थे। तभी से मुसलमान इस महीने में इमाम हुसैन और उनके साथियों की शहादत का गम मनाकर उन्हें याद करते हैं। शनिवार रात को बड़े इमामबाड़े में शिया धर्मगुरु मौलाना कल्बे जव्वाद समेत बड़ी संख्या में लोग मौजूद हुए थे। आग के मातम को लेकर हसन इमाम ने बताया कि बड़ा इमामबाड़ा में 150 साल से यह मातम हो रहा है। इसकी शुरुआत बर्मा से आए लोगों ने किया था।
उन्होंने बताया कि हजरत इमाम हुसैन के शहीद होने के बाद उनके खेमे में लगे टेंट को आग लगा दिया गया था। जिसमें बच्चे और महिलाएं शामिल थी। इसी की याद में लोग आग के शोलों पर चलते हैं। मान्यता है कि आग का मातम करते हुए जो भी दुआ मांगी जाए वो पूरी होती है। इसी तरह शुक्रवार रात को भी लोग आग के शोलों पर चलकर या हुसैन के नारे लगाए थे।