लखनऊ ( मानवी मीडिया)देश और बच्चों के उज्जवल भविष्य के लिए आवश्यक है कि हम शिक्षकों को बच्चों को शिक्षित करने के इतर गतिविधियों से दूर रखकर शिक्षक के तौर पर बच्चों के व्यक्तित्व विकास, मानसिक और शारीरिक विकास में लगाए। देश का इतिहास और शिक्षकों का योगदान गौरवान्वित करने वाला रहा है हर महान व्यक्तित्व के पीछे उसके शिक्षक का योगदान अवश्य ही रहा है।
बेसिक शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक न जाने कितने महान शिक्षक रहे हैं जिन्होंने समाज के विभिन्न क्षेत्रों में अपना अविस्मरणीय योगदान प्रदान किया है। आज हम बेसिक शिक्षकों की टेबलेट के माध्यम से ऑनलाइन उपस्थिति का प्रकरण देख रहे हैं। शिक्षकों के द्वारा इस आदेश का विरोध भी सभी को दिखाई दे रहा है जो शिक्षक हर आदेश को सिर्फ माथे पर रखकर मानने को आतुर रहता है चाहे बाल गणना करना हो, जन्म और मृत्यु के पंजीकरण की गणना हो, आधार से खाते को लिंक करने की प्रक्रिया हो, मिड डे मील निर्माण हो, पोलियो कार्यक्रम हो बी एल ओ ड्यूटी हो, चुनाव की ड्यूटी हो, जनगणना को, वृक्षारोपण का कार्यक्रम हो या अन्य ऐसे सभी कार्य जो बच्चों की पढ़ाई से संबंधित ना हो सभी में अपनी भागीदारी पूर्ण तौर पर निभाता है ।
यह बात अलग है कि बेसिक शिक्षा में शिक्षकों की कमी के कारण कई बार बच्चों की पढ़ाई इन सब गतिविधियों से प्रभावित होती है एक शिक्षक को पांच कक्षाएं लेनी पड़ती है और अन्य विभाग की कार्य करने पड़ते हैं सो अलग। कई प्रकार की प्रशिक्षण जो कि विभागीय होते हैं या अन्य विभागों के द्वारा शिक्षकों सेअन्य संबंधित गतिविधियों को चलाने के लिए कराए जाते हैं वहां भी शिक्षक को प्रशिक्षण हेतु भेजा जाता है ,जिससे कि विद्यालय का टाइम टेबल और गतिविधियां प्रभावित होती है। समय-समय पर विभिन्न संगठनों ने इन गतिविधियों का विरोध किया है शिक्षकों की तथा शिक्षक संगठनों की मांग रही है कि शिक्षकों को सिर्फ बच्चों को पढ़ने के लिए स्वतंत्र किया जाए। महिला शिक्षिकाएं जो की बेसिक के दूर दराज के विद्यालयों में कार्य करती है उन्होंने माहवारी के दिनों में तीन दिन की पैड लीव की मांग भी कई बार की है पर कोई सुनवाई नहीं हुई ,गांव और दूरदराज के विद्यालयों में टॉयलेट की सुविधा नहीं होती जिसमें महिलाओं को किडनी के स्टोन, वही यूरिनरी इनफेक्शन जैसी समस्या हो जाती है और यदि कभी किसी भी प्रकार के दर्द से उन्हें गुजरना पड़े तो टैबलेट की अटेंडेंस में आधी छुट्टी का कोई प्रावधान नहीं है। अभी तक तीन आधी छुट्टियों के लेने पर एक आकस्मिक अवकाश कटने का प्रावधान था।
माना की आधी आबादी का देश की अर्थव्यवस्था में अविस्मरणीय योगदानहै, महावारी व अन्य प्रकार के दर्द प्रेगनेंसी जैसी बातें महिलाओं को नौकरी के क्षेत्र में रोकने के लिए काफी नहीं है आज महिलाएं पुरुषों से कंधे से कंधा मिलाकर अपनी सभी विषम परिस्थितियों का सामना गर्व से करती हैं। इन सब बातों का ध्यान बेसिक शिक्षा के बड़े अधिकारियों और राज्य सरकारों को रखना चाहिए कि वह महिला के स्वाभिमान का सम्मान करें, कम से कम हर विद्यालय में एक साफ सुथरा टॉयलेट उपलब्ध होना चाहिए जहां स्टाफ जा सकता हो। आप एक सर्वे करा कर देख ले 80% विद्यालयों में यह सुविधा उपलब्ध नहीं है और जहां पर टॉयलेट है वहां सफाई कर्मचारी नहीं मिल पाते गंदगी का अंबार और इन्फेक्शन से महिलाएं जो कि शिक्षक के रूप में कार्यरत हैं कई प्रकार की बीमारियों का सामना करती हैं।
आज यदि शिक्षक टैबलेट के माध्यम से ऑनलाइन उपस्थिति का विरोध कर रहे हैं उसका मुख्य कारण यह छोटी समस्याएं तो है ही साथ ही विद्यालयों में नेटवर्क नहीं होता, वाई-फाई की सुविधा गांव के दूर दराज के विद्यालय में उपलब्ध नहीं है और नेटवर्क ना होने पर हाजिरी समय से नहीं पहुंच पाएगी यदि इस अवधि को पूरे दिन के लिए खोल दिया जाए और सभी लोग हाजिरी जब भेजेंगे उस समय को वहां पर दर्ज कर दिया जाए तो शायद समस्या का बहुत हद तक समाधान किया जा सकता है। या फिर प्रत्येक विद्यालय में बायोमेट्रिक महीने लगाकर उपस्थिति दर्ज़ कराई जाए ।यदि कोई विषम परिस्थितियों के आने पर हाफ डे की छुट्टी लेना चाहता है तो वह भी उसमें दर्ज हो।
बेसिक शिक्षा परिषद उत्तर प्रदेश के सभी शिक्षक हमेशा से सरकारी आदेशों में सरकार का साथ देते आए हैं फिर वह शिक्षा से संबंधित आदेश हो या शिक्षणेत्तर गतिविधियों में ड्यूटी लगाये जाने का आदेश । हम सब ने देखा कोरोना कल की भयंकर महामारी में शिक्षकों ने अपना अविस्मरणीय योगदान समाज को प्रदान किया। शायद उसका सत प्रतिशत मुआवजा भी आज तक शिक्षकों को नहीं दिया गया। फिर भी खामोशी से उसी तत्परता से और उसी समयबद्धता से शिक्षक अपना कार्य करता रहा।
समाज के द्वारा और बड़े अधिकारियों के द्वारा शिक्षकों का विद्यालय न जाने का भी आरोप लगाता रहा है कई बार चक निरीक्षण में शिक्षक अनुपस्थित भी पाए गए परंतु आप स्वयं कल्पना करें बिना बड़े अधिकारियों के मिली भगत के क्या यह संभव है? हम सब के संज्ञान में ऐसे कुछ स्कूल होते हैं जहां बड़े अधिकारियों की पत्नियां बहन और बेटियां, भाई या रिश्तेदार कार्यरत होते हैं और उनकी उपस्थित तो दूर की बात है शक्ल भी शायद किसी ने कभी देखी हो। क्या शिक्षा विभाग का तंत्र इस तरह के शिक्षकों से अनजान है तो फिर कार्रवाई क्यों नहीं की जाती और बदनामी सभी आम शिक्षक, नियमित स्कूल जाने वाले शिक्षकों की होती है और उन्हें कटघरे में खड़ा कर ऑनलाइन अटेंडेंस जैसे दुरूह कार्य से गुजरना पड़ता है।
कई विद्यालयों में नेटवर्क का स्तर इतना खराब है कि उन्हें गांव के एक विशेष कोने में जाकर बात करनी पड़ती है तो इंटरनेट विद्यालयों में क्या चलता होगा इसका अंदाजा आप लगा लगा सकते हैं। ऑनलाइन उपस्थिति का शिक्षक विरोध नहीं कर रहे बस वह अपनी उन मूलभूत सुविधाओं को मांग रहे हैं जो मनुष्य होने के लिए इस देश का नागरिक होने के लिए न्यूनतम रूप से आवश्यक है सभी शिक्षक सामाजिक प्राणी है और नैतिक जिम्मेदारियां के तहत माता-पिता भाई बहन पत्नी और बच्चों से बंधे होते हैं यदि शिक्षक ही मानसिक रूप से प्रताड़ित रहेगा तो वह बच्चों को एक आदर्श शिक्षा किस प्रकार प्रदान कर पाएगा यह भी सोचने का विषय है।
सभी नीति निर्माता से आग्रह है कि वह एक बार पुनः विचार करें और बेसिक शिक्षा विभाग के प्रत्येक विद्यालय तक बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराकर न्यूनतम आवश्यक मांगों को मानकर ,बायोमेट्रिक हाजिरी की सुरक्षा के साथ शिक्षकों से हाजिरी लिए जाने पर विचार करें।
भारत के संविधान में हमें अनुच्छेद 21 के तहत स्वतंत्रता का अधिकार दिया है कोई भी जबरदस्ती या दबाव डालकर किसी महिला से उसकी फोटो नहीं मांग सकता और यदि फोटो दी जा रही है तो उसकी सुरक्षा की क्या व्यवस्था है इसकी भी साफ सुथरी व्याख्या होनी चाहिए। यदि हम बायोमेट्रिक या चिप कार्ड के माध्यम से हाजिरी लेंगे तो ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर सेल्फी भेज कर किसी भी महिला के निजता के अधिकार का हनन भी नहीं होगा और वह अपने आप को सुरक्षित महसूस करेंगी।
देश के विकास, देश की आधारभूत संरचना और देश की बौद्धिक क्षमता के निर्माण में शिक्षक हमेशा कटिबद्ध रहा है और ईमानदारी पूर्वक अपना योगदान प्रदान करता रहा है भविष्य में भी करेगा बस आवश्यकता है कि हम उन्हें मूलभूत सुविधाएं प्रदान करें, अपने विचारों को विद्यार्थी तक पहुंचाने की स्वतंत्रता प्रदान करें।