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Friday, July 5, 2024

नए कानूनों ने कैसे बढ़ाई पुलिस की पावर , 24 घंटे बिठा सकेंगे पुलिस


(मानवी मीडिया) :  2008 का एक मामला है। ललिता कुमारी नाम की नाबालिग को 4 लोगों ने कथित तौर पर किडनैप किया और यौन शोषण किया। ललिता के पिता भोला कामत थाने पहुंचे, तो पुलिस ने FIR दर्ज करने से इनकार कर दिया। भोला कामत ने सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई। मामला 5 जजों की संविध संविधान पीठ ने 2013 में आदेश दिया कि गंभीर अपराधों की शिकायत मिलते ही पुलिस को FIR दर्ज करनी होगी। अगर पुलिस अधिकारी देरी करता है तो उसके खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है। पुलिस के लिए FIR दर्ज करने में ये केस एक बड़ी नजीर बना। 1 जुलाई 2024 से लागू तीन नए क्रिमिनल कानूनों के बाद सुप्रीम कोर्ट का ये आदेश अब बेअसर हो गया है। अब पुलिस को FIR दर्ज करने से पहले प्रारंभिक जांच के लिए 14 दिन का समय मिलेगा, जिससे वो तय कर सके कि केस बनता है या नहीं। नए कानूनों में ऐसे बहुत से प्रावधान हैं, जो पुलिस को पहले से ज्यादा ताकतवर बनाते हैं। मसलन- पुलिस अब आरोपी को 90 दिन तक हिरासत में रख सकती है, पहले ये अवधि 15 दिन थी। लोकल पुलिस अधिकारी को भी अब ‘टेररिस्ट एक्ट’ लगाने का अधिकार होगा। भास्कर एक्सप्लेनर में नए कानूनों के ऐसे प्रावधान जानेंगे, जो पुलिस को पहले से ज्यादा ताकतवर बनाते हैं…

सबसे पहले पुलिस की वर्किंग समझते हैं…सामान्य तौर पर पुलिस का काम लॉ एंड ऑर्डर बरकरार रखना होता है। पुरानी CrPC और नए BNSS कानूनों में पुलिस की वर्किंग को लगभग एक जैसा ही रखा गया है। दोनों के मुताबिक मोटे तौर पर पुलिस के तीन काम हैं… 1. निवारक कार्रवाई (Preventive Action):पुलिस का प्रमुख काम अपराध होने से पहले ही रोकना और कानून व्यवस्था बनाए रखना है। CrPC में निवारक कार्रवाई का जिक्र चैप्टर 11 के सेक्शन 149 से 153 तक है। वहीं BNSS में इसका जिक्र चैप्टर 12 के सेक्शन 168 से लेकर 172 तक है। 2. जांच करने की शक्ति (Power to Investigate):इसके तहत पुलिस को किसी मामले की जांच करने का अधिकार प्राप्त है। पुलिस मामले से जुड़े सबूतों, बयानों और वस्तुओं को भी इकट्ठा कर सकती है। साथ ही अदालतें पुलिस को मामले की जांच करने के लिए आदेशित कर सकती हैं।

CrPC में इसका जिक्र चैप्टर 12 के सेक्शन 154 से लेकर 176 तक है। वहीं BNSS में इसका जिक्र चैप्टर 13 के सेक्शन 173 से लेकर 196 तक है। 3. वारंट पेश करना (Execution of Warrant):अदालतों की ओर से जारी होने वाले वारंट को पेश करने और उसके तहत कार्रवाई करने का काम पुलिस का ही होता है। पुलिस अरेस्ट और सर्च दोनों ही वारंट पेश करती है। अरेस्ट वारंट के तहत पुलिस गिरफ्तार कर सकती है और सर्च वारंट के तहत तलाशी ले सकती है। नए क्रिमिनल कानूनों में ऐसे 7 प्रमुख प्रावधान जोड़े गए हैं जो पुलिस की पावर को बढ़ाते हैं… 1. पुलिस के निर्देश नहीं मानने पर गिरफ्तारी, मजिस्ट्रेट के सामने पेश करना जरूरी नहींBNSS के सेक्शन 172 के तहत, ‘किसी मौके या क्षेत्र में पुलिस की ओर से दिए गए वैध निर्देशों का पालन करने के लिए सभी लोग बाध्य होंगे। किसी निर्देश का पालन करने से इनकार करने, अवमानना या प्रतिरोध करने वाले व्यक्ति को पुलिस हिरासत में ले सकती है या इलाके से हटा सकती है। ऐसे व्यक्ति को मजिस्ट्रेट के समक्ष पुलिस पेश कर सकती है या छोटे मामलों में उसे 24 घंटे के भीतर रिहा कर सकती है।’ 

इसके पहले CrPC के सेक्शन 41 और 151 के तहत पुलिस बिना किसी वारंट के किसी भी व्यक्ति को हिरासत में ले सकती थी, लेकिन अब BNSS के 172 के तहत पुलिस किसी भी व्यक्ति को अपने निर्देशों की अवहेलना के करने के लिए 24 घंटे तक हिरासत में रख सकती है। इसके लिए पुलिस उस व्यक्ति को मजिस्ट्रेट के सामने पेश करने के लिए बाध्य नहीं है। 2. पुलिस रिमांड की अवधि 15 से बढ़ाकर 90 दिन हुईBNSS में पुलिस रिमांड अवधि को 90 दिन तक कर दिया गया है। अब 90 दिन की रिमांड को एक साथ या अलग-अलग लिया जा सकता है। इसका मतलब है कि आरोपी को तीन महीने तक पुलिस कब्जे में रख सकती है। अगर 15 दिन पूरे होने से पहले बेल मिल गई तो पुलिस एक दिन पहले रिमांड के लिए आवेदन दे सकती है और बेल रद्द हो जाएगी। CrPC की धारा 167(2) के मुताबिक, किसी आरोपी को अधिकतम 15 दिन तक ही पुलिस रिमांड पर रख सकती थी। इसके बाद उसे न्यायिक हिरासत यानी जेल में भेजना अनिवार्य था। इसका मकसद, पुलिस को सही तरीके से समय पर जांच पूरी करने लिए मोटिवेट करना था। वहीं रिमांड में यातना और जबरन कबूलनामे की आशंका को कम करना था। BNSS के 187(3) में पुलिस हिरासत (रिमांड) के अलावा अन्य शब्दों को हटा दिया गया है। 

इससे पुलिस को BNS के हर अपराध के लिए आरोपी को तीन महीने तक रिमांड में रखने की अनुमति मिल गई है। अगर ऐसा होता है तो यह जमानत के अधिकार पर अतिक्रमण जैसा होगा। पुलिस लोगों को ज्यादा प्रताड़ित कर सकती है। पहले पंद्रह दिन में रिमांड खत्म हो जाती थी। अब ऐसा नहीं होगा। अब अगर कोई 90 दिनों तक रिमांड पर रहेगा तो वकील का खर्च भी बढ़ेगा। 3. गिरफ्तारी के दौरान और कोर्ट में आरोपी को हथकड़ी लगेगीBNSS के चैप्टर 5 में सेक्शन 35 से 62 तक गिरफ्तारी की प्रक्रिया और निर्देश दिए गए हैं। सेक्शन 43 के तहत बताया गया है कि 'गिरफ्तारी कैसे की जाएगी?' इस सेक्शन में एक नया प्रावधान किया गया है, जो CrPC में नहीं था। BNSS के सेक्शन 43(3) के तहत 'पुलिस अधिकारी अपराध की प्रकृति और गंभीरता को ध्यान में रखते हुए किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करते समय या ऐसे व्यक्ति को अदालत में पेश करते समय हथकड़ी का इस्तेमाल कर सकता है।' पहले नियम था कि आरोपी को हथकड़ी न लगवाने का अधिकार है, जब तक पुलिस अधिकारी उचित व पर्याप्त कारण न बता सके और अदालत स्वीकार करके अनुमति न दे। आरोपी को हथकड़ी लगाने या न लगाने को लेकर ‘प्रेम शंकर शुक्ला बनाम दिल्ली प्रशासन’ (1980) में सुप्रीम कोर्ट ने निर्देशित किया है। 

प्रेम शंकर शुक्ला मामले में सुप्रीम कोर्ट ने माना, ‘हथकड़ी का इस्तेमाल करना मानवीय गरिमा के लिए घृणित है और संविधान के आर्टिकल 21 का उल्लंघन करता है।’ इसका जिक्र ‘डीके बसु बनाम पश्चिम बंगाल राज्य’ (1997) में भी है। इसमें कहा गया है कि ‘हथकड़ी या पैर में जंजीरों के इस्तेमाल से बचना चाहिए। अगर ऐसा करना ही है तो 'प्रेम शंकर शुक्ला बनाम दिल्ली प्रशासन' (1980) में सुप्रीम कोर्ट के फैसले में बताए गए कानून सख्ती से इस्तेमाल किए जाने चाहिए।’ 4. FIR से पहले 14 दिन की प्राथमिक जांच कर सकती है पुलिसBNSS के चैप्टर 13 के सेक्शन 173 में प्रावधान है कि 'पुलिस अधिकारी को किसी संगीन मामले की शिकायत मिलने पर FIR लिखने से पहले अपने सीनियर ऑफिसर से अनुमति लेकर 14 दिन की प्राथमिक जांच करनी होगी।’ यानी पुलिस अधिकारी को 14 दिन का समय मिलेगा, जिसमें वो तय करेगा कि मामले में प्रथमदृष्टया केस बनता है या नहीं। जबकि 'ललिता कुमारी बनाम उत्तर प्रदेश प्रशासन' (2014) में सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ का फैसला इस सेक्शन से बिल्कुल ही विपरीत है। सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया था कि 'संगीन आरोप लगाने वाली शिकायत पर FIR दर्ज की जानी चाहिए।' इस प्रावधान और सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बीच विरोध है, 

जो भ्रम की स्थिति पैदा करता है। 5. आतंकवाद और देशद्रोह के प्रावधान BNS में शामिलBNS में टेररिस्ट एक्ट को 'मानव शरीर के खिलाफ अपराध' नाम के चैप्टर 6 में सेक्शन 113 के तौर पर जोड़ा गया है। इसमें 'भारत की एकता, अखंडता, संप्रभुता, सुरक्षा या आर्थिक सुरक्षा को खतरे में डालने वाले कृत्य' शामिल किए गए हैं। साथ ही इसमें आतंकवाद को विस्तार से परिभाषित किया गया है। हालांकि, UAPA और टेररिस्ट एक्ट में केस दर्ज करने या न करने का निर्णय पुलिस अधीक्षक यानी SP स्तर के अधिकारी के पास रहेगा। दिसंबर 2023 में संसद में BNS पेश करते वक्त गृहमंत्री अमित शाह ने यह कहते हुए नैतिकता का दावा किया था कि सरकार ने औपनिवेशिक काल के राजद्रोह (IPC की धारा 124A) को हटाने का फैसला किया है, लेकिन इसी प्रावधान को नए कलेवर के साथ BNS में सेक्शन 152 के तौर पर फिर से पेश किया गया है।

गृहमंत्री अमित शाह ने ये तीनों कानून पेश किए थे, जिन्हें 20 दिसंबर 2023 को संसद में पारित किया गया था। इसके तहत, 'जो व्यक्ति किसी भी तरीके से भारत की संप्रभुता या एकता और अखंडता को खतरे में डालता है या ऐसे किसी कृत्य में शामिल होता है या करता है, तो उसे उम्रकैद या सात साल की जेल और जुर्माना देना होगा।' यानी नए कानूनों में 'राजद्रोह' तो हट गया, लेकिन सरकार ने इसमें 'देशद्रोह' शब्द को विस्तार से परिभाषित और दंड का प्रावधान किया है। इसमें गौर करने वाली बात यह है कि यदि किसी को इस प्रावधान के आधार पर उम्रकैद की सजा मिलती है, तो उसे पैरोल भी नहीं मिलेगी। यदि कोई सरकार के खिलाफ प्रदर्शन करता है तो उस पर 'देशद्रोह' का केस दर्ज किया जा सकता है। साथ ही सार्वजनिक या निजी संपत्तियों या सुविधाओं को नुकसान पहुंचाने को भी आतंकवाद के तौर पर परिभाषित किया गया है। 

एक्सपर्ट्स का मानना है कि इन दोनों ही धाराओं को विस्तार से परिभाषित और दंड का प्रावधान करने से पुलिस को ज्यादा शक्ति मिलेगी। ऐसे में सवाल खड़ा होता है कि क्या पुलिस इन कानूनों में आम नागरिकों को भी आरोपी बना सकती है? 6. क्राइम के जरिए कमाई प्रॉपर्टी को पुलिस कुर्क कर सकेगीनए कानूनों में प्रॉपर्टी को कुर्क करने यानी जब्त करने का अधिकार पुलिस को दे दिया गया है। BNSS के सेक्शन 107 में इसका जिक्र किया गया है। इसके मुताबिक, 'जांच के दौरान यदि पुलिस अधिकारी को लगता है कि कोई प्रॉपर्टी क्राइम के जरिए कमाई गई है तो वह पुलिस अधीक्षक (SP) या कमिश्नर से अनुमति लेकर ऐसी प्रॉपर्टी के लिए मजिस्ट्रेट को आवेदन दे सकता है। इस पर मजिस्ट्रेट 14 दिन का कारण बताओ नोटिस जारी कर सकते हैं। ऐसे व्यक्ति द्वारा नोटिस का जवाब नहीं दिए जाने पर या अदालत में पेश न होने पर प्रॉपर्टी की कुर्की का आदेश जारी किया जा सकता है।' यानी पुलिस को लगता है कि कोई प्रॉपर्टी किसी भी प्रकार के क्राइम के जरिए बनाई या कमाई गई है तो उसकी कुर्की की जा सकती है। पुराने कानून यानी CrPC में ऐसा प्रावधान नहीं था। 

7. पुलिस को सौंपने होंगे मोबाइल, लैपटॉपभारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम के तहत जांच के दौरान पुलिस किसी भी आरोपी को उसके डिजिटल डिवाइस दिखाने और उन्हें सौंपने के लिए बाध्य कर सकती है। नए कानूनों में इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल डिवाइस यानी मोबाइल, स्मार्टफोन, लैपटॉप आदि को सबूत के तौर पर परिभाषित किया गया है। BNSS के सेक्शन 94 के मुताबिक, 'किसी मामले की जांच, पूछताछ या ट्रायल के दौरान अदालत या थाना प्रभारी किसी व्यक्ति से डॉक्यूमेंट्स, कम्युनिकेशन डिवाइस, इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस या डिजिटल डिवाइस पेश करने के लिए समन या आदेश जारी कर सकता है।' भारतीय साक्ष्य अधिनियम (2023) में डिजिटल डिवाइस को विस्तार से परिभाषित किया गया है। साथ ही इसकी जब्ती और पेश करने को लेकर प्रावधान बनाए गए हैं। जबकि CrPC में इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल डिवाइस को पेश करने के लिए प्रावधान नहीं था। 

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