लखनऊ : (मानवी मीडिया) सहारा इंडिया हाउसिंग लिमिटेड को दी जाने वाली 100 एकड़ जमीन की लीज कैंसिल कर दी गई है। शुक्रवार को एलडीए के बोर्ड बैठक में यह प्रस्ताव रखा गया। प्रस्ताव पास होने के बाद अब कानूनी कार्रवाई शुरू होगी। आवंटन निरस्त कर यहां हुए अस्थाई और स्थाई निर आरोप है कि जमीन में अवैध तरीके से सहारा सिटी बनाई गई। अब यहां बड़े पैमाने पर पौधरोपण किया जाएगा। प्राधिकरण के उपाध्यक्ष इंद्रमणि त्रिपाठी ने बताया कि अभी जमीन की नपाई होगी। इसके बाद कार्रवाई का फैसला लिया जाएगा। अगर जमीन सहारा सिटी के अंदर की आती है तो वह भी ली जाएगी। निर्माण भी तोड़े जाएंगे। गवरी चौराहे से विराम खंड और सहारा शहर की तरफ जमीन 1995 में ग्रीनलैंड इस्तेमाल के लिए दी गई थी। सहारा ने उस पर ग्रीनलैंड नहीं बसाया। ऐसे में कबाड़ बेचने वालों ने जमीन पर कब्जा कर लिया। सहारा इंडिया से जुड़ा ये है पूरा मामला सहारा इंडिया हाउसिंग लिमिटेड को 28 फरवरी 1995 को 100 एकड़ जमीन सशर्त ग्रीन बेल्ट के लिए दी गई थी।
शर्त रखी गई थी कि 50 प्रतिशत भूमि नर्सरी के रूप में प्रयोग करें, जॉगिंग ट्रैक बनाएं, बच्चों के खेलने का उपकरण, फव्वारा, ग्रीन बेल्ट की विज्ञापन पट्टिका के अलावा पेड़ लगाने के लिए 30 साल का समय दिया गया था। जिसका 30-30 साल पर नवीनीकरण होता है। लीज में दी गई शर्तों का उल्लंघन होने की दशा में कॉन्ट्रैक्ट निरस्त करने का प्रस्ताव लाया जा रहा है। लीज के 29 साल बाद भी सहारा इंडिया की ओर से ग्रीन बेल्ट डेवलप नहीं किया गया। यहां झुग्गी-झोपड़ियों के रूप में अतिक्रमण है, जिस पर भविष्य में और अधिक अवैध अतिक्रमण होने की पूरी संभावना जताई गई है। यह मामला सुप्रीम कोर्ट में भी चल रहा है। 1994-95 में लखनऊ नगर निगम ने 170 एकड़ और एलडीए ने 100 एकड़ जमीन सहारा इंडिया को लीज पर दी थी। LDA में बोर्ड बैठक चल रही है। बैठक में 40 प्रस्ताव पर चर्चा होगी। 1997 में लाइसेंस निरस्त करने का दिया था नोटिसशर्तों के उल्लंघन पर नगर निगम के तत्कालीन नगर आयुक्त दिवाकर त्रिपाठी की ओर से 1997 में लाइसेंस निरस्त करने का नोटिस जारी किया गया था। इसके बाद सिविल कोर्ट में यह मामला चल रहा है।
इस बीच 2012 में सेबी और सहारा के विवाद में सहारा शहर की जमीन को सेबी ने कुर्की कर लिया। इसके अलावा आबिर्टेशन में भी यह मामला सहारा इंडिया हाउसिंग और नगर निगम के बीच 15 साल से अधिक समय तक चला। जिसका 2017 में फैसला आया। जिसमें सेबी की सहमति के बाद सहारा की ओर से दी गई सूची के आवंटियों को लीज पर जमीन देने की बात कही गई, लेकिन यह हो नहीं पाया, क्योंकि अब तक सेबी की ओर से जमीन मुक्त ही नहीं की गई। सहारा का जवाब- 800 करोड़ हो चुके हैं खर्चनगर निगम के सभी आरोपों को सहारा कंपनी ने सिरे से खारिज कर दिया है। उल्टा नगर निगम को ही योजना में देरी सहित अन्य विधिक विवादों के लिए जिम्मेदार बताया है। कंपनी के अधिकृत प्राधिकारी की ओर से दिए जवाब में यह भी कहा कि गया है कि 28 साल में कंपनी सहारा शहर की जमीन के विकास, निर्माण व मेंटेनेंस पर करीब 800 करोड़ रुपए खर्च कर चुकी है। जिससे कंपनी को ही नुकसान हो रहा है न कि नगर निगम को।