बहुसंख्यक आज भी इतिहास से सीखने वाले नहीं हैं, चाहे खुद इतिहास बनकर रह जाएं... - मानवी मीडिया

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Thursday, May 23, 2024

बहुसंख्यक आज भी इतिहास से सीखने वाले नहीं हैं, चाहे खुद इतिहास बनकर रह जाएं...


लखनऊ (मानवी मीडिया) बहुसंख्यक आज भी इतिहास से सीखने वाले नहीं हैं, चाहे खुद इतिहास बनकर रह जाएं...

  कभी-कभी सोचने पर मजबूर हो जाता हूं कि 1500 ई. के बाद के ब्रिटिश कितने साहसी और बुद्धिमान रहे होंगे ... उनके अंदर यूनियन जैक / ब्रिटिश साम्राज्य के लिए कैसा जज्बा रहा होगा...  जिन्होंने एक ठण्डे प्रदेश से निकलकर, अनजान रास्ते और सुदूर अनजान जगहों पर जाकर लोगों को गुलाम बनाया. अभी भी देखा जाए तो ब्रिटेन की जनसंख्या और क्षेत्रफल गुजरात के बराबर है, लेकिन उन्होंने दशकों नहीं शताब्दियों तक दुनिया को गुलाम बनाए रखा.

   भारत की करोड़ों की जनसंख्या को मात्र कुछ लाख या हजार लोगों ने गुलाम बनाकर रखा, और केवल गुलाम ही नहीं बनाया बल्कि खूब हत्यायें और लूटपाट भी की. उनको अपनी कौम पर कितना गर्व होगा कि मुठ्ठी भर लोग दुनिया को नाच नचाते रहे.

    भारत के एक जिले में शायद ही 50 से ज्यादा अंग्रेज रहे होंगे लेकिन लाखों लोगों के बीच, अपनी धरती से हजारों मील दूर आकर, अपने से संख्या में कई गुना अधिक लोगों को इस तरह गुलाम रखने के लिए अद्भुत साहस रहा होगा.

      अगर इतिहास देखते हैं तो पता चलता है कि उनके पास हम पर अत्याचार करने के लिए लोग भी नहीं थे तो उन्होंने हम में से ही कुछ लोगों को भर्ती किया था, हम पर अत्याचार करने के लिए, हमें लूटने के लिए..

   सोचकर ही अजीब लगता है कि हम लोग अंग्रेजों के सैनिक बन कर, अपने ही लोगों पर अत्याचार करते थे। चंद्रशेखर, बिस्मिल जैसे मात्र कुछ गिनती के लोग थे, जिन्हें हमारा ही समाज हेय दृष्टि से देखता था. आज वही नपुंसक समाज उन चंद लोगों के नाम के पीछे अपना कायरतापूर्ण इतिहास छुपाकर झूठा दम्भ भरता है.

★ *अरब के रेगिस्तान से कुछ भूखे जाहिल, आततायी लोग आए, और उन्होंने भी हमको लूटा, मारा, बलात्कार किया. और हम वहाँ भी नाकाम रहे.* उन्होंने हमारे मन्दिर तोड़े, हमारी स्त्रियों से बलात्कार किये, लेकिन हमने क्या किया ? 

▪️वो दिन में विवाह में लूटपाट करते हैं, 

 तो रात को चुपचाप विवाह करने लगे, 

▪️ जवान लड़कियों को उठा ले जाते हैं,

तो बचपन में ही शादी करने लगे और 

▪️अगर उसमें ही असुरक्षा हो, 

तो बेटी पैदा होते ही मारते रहे....

      बुरा लगता तो ठीक है, लेकिन यही हमारी सच्चाई है. 

   *हमने 1000 सालों की दुर्दशा से कुछ नहीं सीखा...* आज एक जनसँख्या उन्हीं अरबी अत्याचारियों को अपना पूर्वज मानने लगी है. कुछ उन ईसाइयों को अपना पूर्वज मानने लगी है, यानि हम स्वाभिमानहीन लोग हैं, स्वतंत्रता मिलने पर भी हम मानसिक गुलाम ही रहे. दूसरी तरफ हमारी व्यवस्थाएं भी लचर हैं , जिन्होंने इन सभी नाकामियों का कभी मंथन ही नहीं किया. हमारे ऊपर जब आक्रमण हो रहे थे और हम जब एक युद्धकाल से गुजर रहे थे हमारी बहुसंख्यक जनसँख्या इस मानसिकता में थी कि *"कोउ नृप हो हमें का हानि"* 

मतलब उनको युद्ध से, राज्य से, राजा से कोई मतलब नहीं था. ये सब बस क्षत्रिय के काम थे. उनको करना है तो करें, नहीं करना तो नहीं करें, यही कारण था कि मुस्लिम आक्रमण से  राजस्थान क्षेत्र छोड़कर समस्त भारत धराशाही हो गया था, क्योंकि राजस्थान में क्षत्रिय जनसँख्या अधिक थी तो संघर्ष करने में सफल रहे. ऐसे ही कुछ क्षेत्र और थे जो इसमें सफल हुए.

 आज इजरायल बुरी तरह शत्रुओं से घिरा हुआ है लेकिन सुरक्षित है, क्योंकि .. वहाँ के प्रत्येक व्यक्ति की देश और धर्म की सुरक्षा की जिम्मेदारी है लेकिन हमने ये कार्य केवल क्षत्रियों पर छोड़ दिया था, जबकि फ़ौज में भी युद्ध के समय माली, नाई, पेंटर, रसोइया आदि सभी लड़ाका बनकर तैयार रहते हैं. लेकिन हमने युद्धकाल में भी परिस्थितियों को नहीं समझा और  अपनी योजनायें नहीं बनाई, अपनी व्यवस्थाएँ नहीं बदली.

  जरा विचार करके देखिए कि मुस्लिमों एवं अंग्रेजों से जिस तरह क्षत्रिय लड़े, अगर पूरा हिन्दू समाज क्षत्रिय बनकर, लड़ा होता तो क्या हम कभी गुलाम हो सकते थे ?

           सामान्य परिस्थिति में समाज को चलाने के लिए उसको वर्गीकृत किया ही जाता है, लेकिन विपत्तिकाल में नीतियों में परिवर्तन भी किया जाता है, लेकिन हम इसमें पूरी तरह नाकाम लोग हैं. इसलिए 1000 सालों से दुर्भाग्य हमारे पीछे पड़ा है.

अटल जी एक भाषण में कहते हैं कि एक युद्ध जीतने के बाद जब 1000 अंग्रेजी सैनिकों ने विजय-जुलूस निकाला था, तो सड़क के दोनों तरफ 20000 लोग देखने आए थे. अगर ये 20000 लोग पत्थर-डण्डे से भी मारते, तो 1000 सैनिकों को भागते भी नहीं बनता, लेकिन ये 20 हजार लोग केवल युद्व के मूक दर्शक थे ।

    आज भी कुछ खास नहींं बदला है. मुगलों और अंग्रेजों का स्थान एक खास dynasty ने ले लिया और वामपंथियों / सेकुलरों के रूप में खतरनाक गद्दारों की फौज भी पैदा हो गई. लेकिन सबसे बड़ी विडंबना यह है कि हम आज भी बंटे हुए हैं. 100 करोड़ होकर भी मूक दर्शक बने हुए हैं. भले ही कुछ लोग कुछ जागृति पैदा करने में सफल हुए हों, पर बिना संपूर्ण जागृति के इस देश के दुर्भाग्य का अंत नहींं होगा.

              सही है कि हम ... इतिहास से सीखने वाले नहीं हैं, चाहे खुद इतिहास बनकर रह जाएं.

👏🏻 *प्रो. (डॉ.) आर. के. सिंह* - हॉर्टिकल्चर विभाग, सी. सी. आर. (पी.जी.) कालेज; मुज़फ्फरनगर (उ.प्र.) भारत

*पूर्व प्रांतीय अध्यक्ष,* भारत विकास परिषद हस्तिनापुर विकास रत्न प्रांत; NCR -1 (आर.एस.एस. का अनुषांगिक संगठन) ...

*President,* हिंद एग्री हॉर्टिकल्चरल सोसायटी

*संपादक,* ▪️ *राष्ट्रीय कृषि*

               ▪️ *Rashtriya Krishi*

*कार्यकारिणी सदस्य,* मीडिया सेंटर, मुजफ्फरनगर

*अधिष्ठाता:* क्षत्रिय धर्मसंसद

*पूर्व जिला संवादाता,* जनसत्ता एक्सप्रेस

*ग्रुप एडमिन,* Kshatriya Matrimonial (निः शुल्क सेवा क्षत्रिय / राजपूत/ ठाकुर समाज के लिए)

📱9412113662     

e mail : hahs1624@gmail.com

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