मुरादाबाद : (मानवी मीडिया) अस्पताल के कुछ सरकारी डॉक्टर मरीजों को प्राइवेट कंपनियों की दवाएं पर्चे पर लिख रहे हैं। गरीब व लाचार मरीज निजी मेडिकल स्टोर से दवा खरीदने को लाचार हैं। सोमवार को हड्डी, नेत्र, बाल रोग विशेषज्ञ के चेंबर से निकले मरीजों ने अपने पर्चे दिखाए तो स्थिति स्पष्ट हुई नेत्र व बाल रोग विशेषज्ञों ने बाहर से जो दवा लिखी थी, उसकी कीमत 32 रुपये थी। जबकि हड्डी रोग विशेषज्ञ ने मरीज को जो दवा लिखी वह 600 रुपये की थी। पीतल बस्ती निवासी मरीज फुरकान दवा लेने निजी मेडिकल स्टोर पर पहुंचे तो उन्हें बिना खरीदे ही लौटना पड़ा।वापस आकर बोले की साहब दवा 600 रुपये की है, मैं नहीं ले पाऊंगा। तब सरकारी दवा वितरण में तैनात स्वास्थ्य कर्मी ने उन्हें जन औषधि केंद्र पर जाने की सलाह दी। वहां भी सिर्फ एक दवा मिली। हड्डी रोग विशेषज्ञ ने एक के बाद एक कई मरीजों को निजी मेडिकल स्टोर से दवा लेने के लिए कहा। मैनाठेर निवासी कृष्णा को भी दर्द के लिए निजी मेडिकल स्टोर से दवा खरीदनी पड़ी। इसके अलावा करुला निवासी साजिया को जो दवा लिखी थी उनमें सिर्फ दो टैबलेट 70 रुपये की मिलीं। मरीजों का कहना था कि यदि बाहर से दवा लेने में सक्षम होते तो सरकारी अस्पताल में ही क्यों आते।
मुरादाबाद : (मानवी मीडिया) अस्पताल के कुछ सरकारी डॉक्टर मरीजों को प्राइवेट कंपनियों की दवाएं पर्चे पर लिख रहे हैं। गरीब व लाचार मरीज निजी मेडिकल स्टोर से दवा खरीदने को लाचार हैं। सोमवार को हड्डी, नेत्र, बाल रोग विशेषज्ञ के चेंबर से निकले मरीजों ने अपने पर्चे दिखाए तो स्थिति स्पष्ट हुई नेत्र व बाल रोग विशेषज्ञों ने बाहर से जो दवा लिखी थी, उसकी कीमत 32 रुपये थी। जबकि हड्डी रोग विशेषज्ञ ने मरीज को जो दवा लिखी वह 600 रुपये की थी। पीतल बस्ती निवासी मरीज फुरकान दवा लेने निजी मेडिकल स्टोर पर पहुंचे तो उन्हें बिना खरीदे ही लौटना पड़ा।वापस आकर बोले की साहब दवा 600 रुपये की है, मैं नहीं ले पाऊंगा। तब सरकारी दवा वितरण में तैनात स्वास्थ्य कर्मी ने उन्हें जन औषधि केंद्र पर जाने की सलाह दी। वहां भी सिर्फ एक दवा मिली। हड्डी रोग विशेषज्ञ ने एक के बाद एक कई मरीजों को निजी मेडिकल स्टोर से दवा लेने के लिए कहा। मैनाठेर निवासी कृष्णा को भी दर्द के लिए निजी मेडिकल स्टोर से दवा खरीदनी पड़ी। इसके अलावा करुला निवासी साजिया को जो दवा लिखी थी उनमें सिर्फ दो टैबलेट 70 रुपये की मिलीं। मरीजों का कहना था कि यदि बाहर से दवा लेने में सक्षम होते तो सरकारी अस्पताल में ही क्यों आते।