लखनऊ (मानवी मीडिया) सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि निजी संपत्ति का इस्तेमाल ज़रूरत पड़ने पर सार्वजनिक हित के लिए भी किया जा सकता है।
कोर्ट ने कहा ये मानना ग़लत होगा कि किसी व्यक्ति की निजी संपत्ति को आर्टिकल 39 बी के तहत सामुदायिक भौतिक संसाधन नहीं माना जा सकता और सरकार इसका वितरण आम लोगों की भलाई कर नहीं कर सकती।
दरअसल चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली 9 जजों की संविधान पीठ इस पर विचार कर रही है कि क्या किसी की निजी संपत्ति को संविधान के आर्टिकल 39 बी के तहत 'सामुदायिक भौतिक संसाधन' माना जा सकता है और क्या इसका इस्तेमाल सरकार सार्वजनिक हित के लिए कर सकती है।
आर्टिकल 39 बी में कहा गया है कि सरकार अपनी नीति ऐसी बनाएगी कि सामुदायिक भौतिक संसाधनों को वितरण ऐसे हो कि जिससे आम जनता का हित सध सके।सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ने गांधीवादी विचारधारा की हिमायत की। उन्होंने कहा कि संविधान के नीति निर्देशक तत्व गांधीवादी विचारधारा से प्रभावित है। चीफ जस्टिस ने अपनी टिप्पणी में पूंजीवादी, समाजवादी विचारधारा का जिक्र किया।
उन्होंने कहा कि पूंजीवादी विचारधारा जहां संपत्ति के निजी स्वामित्व पर जोर देती है, वही समाजवादी विचारधारा यहाँ तक कहती है कि कोई संपत्ति निजी संपत्ति नहीं है, सभी संपत्ति समाज की है।
चीफ जस्टिस ने इन दोनों विचारधारा के बीच संतुलन कायम करने वाली गांधीवादी विचारधारा की हिमायत की। उन्होंने कहा कि हमारे नीति निर्देशक तत्व गांधीवादी विचारधारा का अनुकरण करते हैं। हम न तो अति पूंजीवाद और न ही अति समाजवादी विचारधारा को अपनाते है। हम सोशलिस्ट मॉडल की उस हद तक नहीं जाते हैं जहां कोई निजी संपत्ति नहीं होती।हम संपत्ति उसे मानते है जिसे हम आने वाली पीढ़ी को सुपुर्द करने के लिए संजो कर रखते है।पर आज की पीढ़ी के लिए जो सम्पति हम रखते है, वो इस विश्वास के साथ भी संजो कर रखी जाती है कि वो आने वाले कल में समाज के व्यापक हितों के लिए इस्तेमाल हो पाएगी।