कश्मीरी पंडितों को किसी भी सरकार से नहीं मिला न्याय - मानवी मीडिया

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Monday, January 1, 2024

कश्मीरी पंडितों को किसी भी सरकार से नहीं मिला न्याय


जम्मू कश्मीर : (
मानवी मीडिया) सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस संजय किशन कौल ने कश्मीरी पंडितों को लेकर बड़ा बयान दिया है। एक इंटरव्यू के दौरान उन्होंने कहा कि किसी भी सरकार से कश्मीरी पंडितों का न्याय नहीं मिला। मालूम हो कि जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाए जाने के पक्ष में फैसला सुनाने वाली बेंच का कौल हिस्सा रहे हैं। बार एंड बेंच की दिए इंटरव्यू में जस्टिस कौल ने बताया कि कश्मीरी पंडितों के पलायन के दौरान उनका भी घर जलाया गया था। मगर, उन्होंने यह भी कहा कि इस अनुभव ने उनके फैसले को किसी भी तरह से प्रभावित नहीं किया।

जस्टिस कौल ने कहा कि मैं 22 साल तक न्यायाधीश रहा। इस दौरान आप अपनी व्यक्तिगत प्राथमिकताओं को साइड रखकर अपना दृष्टिकोण बनाना सीखते हैं। उन्होंने कहा, 'क्या हम कह सकते हैं कि एक जस्टिस इस मायने में अराजनीतिक है कि उसकी कोई राजनीतिक मान्यता नहीं है? हर न्यायाधीश के पास एक मान्यता होती है, मगर उन्हें इसे अपने फैसलों से इसे दूर रखने की ट्रेनिंग मिलती है। यह हमारे काम का एक हिस्सा है।'

4 लाख से अधिक लोग हुए विस्थापित: कौल

जम्मू-कश्मीर को लेकर उन्होंने कहा, 'यह सच है कि मैंने हर तरफ दर्द देखा। कश्मीरी पंडितों को बाहर निकलने के लिए मजबूर किया गया। 4.5 लाख लोग विस्थापित हुए। मुझे नहीं लगता कि उनकी समस्या पर ध्यान देने को लेकर उन्हें किसी भी सरकार से न्याय मिला। हालात इतने विकट हो गए कि सेना बुलानी पड़ी। यह सामान्य कानून और व्यवस्था की तरह नहीं, बल्कि अपने तरीके से युद्ध लड़ती है। इसीलिए मैंने स्टेट और नॉन-स्टेट एक्टर्स का जिक्र किया था।'

'1980 के दशक तक बहुत सुरक्षित रहा'

जस्टिस कौल ने कहा कि अलग-अलग समुदाय पीड़ित थे। हमने इस उथल-पुथल में एक पूरी पीढ़ी को बढ़ते हुए देखा है। कोई व्यक्ति जो तब 5-6 साल था, आज 40 का है। इस तरह एक पूरी पीढ़ी बदल गई। उनमें से ज्यादातर ने ऐसी स्थितियां नहीं देखीं जब लोग एकसाथ रहा करते थे। उन्होंने कहा, 'अगर तुलना करके देखें तो यह सर्वाधिक आत्मसात समाजों में से एक था। यह दूसरी जगहों से कहीं ज्यादा सुरक्षित था। मैं 1980 के दशक में श्रीनगर घूमने जाता था, वहां मेरे बगीचे थे। कुछ राजनीतिक मुद्दे जरूर हैं जिन पर मैं टिप्पणी नहीं करना चाहूंगा।'

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