(फोटो: गीतकार एस.एच.बिहारी)
लखनऊ (मानवी मीडिया)कल रात एक बार फिर पुरानी फिल्म 'शर्त' के अपने एक प्रिय गीत 'न ये चांद होगा, न तारे रहेंगे' सुनते हुए पिछली सदी के संगीतमय के एक गीतकार शमशुल हुदा बिहारी की याद आई।50,60 और 70 के दशक में जिनके लिखे गीत हरेक की जुबान पर होते थे, आज के दौर में इस महान गीतकार को बिल्कुल भुला दिया गया है। हिंदी सिनेमा को ढेर सारे कालजयी गीत देने वाले इस गीतकार के सैकड़ों गीत लोगों की जुबान पर हैं, लेकिन खुद उसका नाम लोगों की स्मृतियों से ओझल है। उन्हें फिल्मों में एस.एच. बिहारी के नाम से जाना जाता है।
उनका जन्म बिहार के आरा जिले में 1922 में हुआ था। मधुपुर में जा बसे बिहारी ने दर्जनों फिल्मों में ऐसे कितने ही अमर गीत लिखे जिनकी चर्चा के बगैर हिंदी फिल्मी गीतों का इतिहास लिखना नामुमकिन होगा। एक गीतकार के रूप में उन्हें पहला अवसर संगीतकार अनिल विश्वास ने दिया था। सन 1949 की फिल्म 'लाडली' में, लेकिन उन्हें लोकप्रियता मिली साल 1953 में हेमंत कुमार के संगीत निर्देशन में बनी एस मुखर्जी की फिल्म 'शर्त' से। बाद में वे संगीतकार ओ.पी. नैयर के सबसे पसंदीदा गीतकार बने। ओ.पी नैयर के साथ उनकी जोड़ी ने दर्जनों फिल्मों में धमाल मचाया था। गीतकार के रूप में उनकी आखिरी फिल्म थी संगीतकार लक्ष्मीकांत प्यारेलाल के साथ 1985 की 'प्यार झुकता नहीं। गीत लिखने के अलावा बिहारी ने बहुचर्चित फिल्म 'दो बदन' का निर्माण किया था और 'प्यार झुकता नहीं' की कथा और पटकथा लिखी थी।
कैसे शुरु किया करिअर:
उन्होंने कोलकता के प्रेसीडेंसी कॉलेज स्नातक स्तर की शिक्षा लेने के बाद सिनेमा को अपना करियर बनाया। हालांकि गीतकार होने के साथ उन्होंने फुटबॉल खेलने का भी शौक था। एक बार वे मोहन बागान की टीम से भी जुड़े थे, लेकिन 1947 के बाद वे बंबई (मुंबई) गए। 1950 में आई फिल्म 'दिलरूबा' में उन्होंने अपना पहला गीत लिखा। इस फिल्म में उन्होंने 'हटो-हटो जी आते हैं हम' गीत दिया था। यहां से उनके फिल्मी करिअर का आगाज तो हुआ लेकिन उनको पहचान इस गीत ने नहीं दिलाई। इसके बाद उन्होंने निर्दोष, बेदर्दी, खूबसूरत और रंगीला जैसी फिल्मों की गीत लिखे।
बिहारी के लिखे अनमोल गीत:
1954 में एस.एच. बिहारी फिल्म शर्त का एक गीत लिखा "न ये चांद होगा न तारे रहेंगे, मगर हम हमेशा तुम्हारे रहेंगे"। इस गाने की हर इंसान की जुबान पर अपना रंग दिखाया। यहीं से उन्हें एक पहचान मिली।
इसके बाद 60 के दशक में उनकी मुलाकात ओपी नैयर हुई। इसी दौरान "ये चांद सा रोशन चेहरा, ज़ुल्फ़ों का रंग सुनहरा", "कजरा मुहब्बत वाला, अंखियों में ऐसा डाला" जैसे कई बेहतरीन गीतों के जरिए वे फिल्म जगत में छा गए। इसके अलावा उन्होंने "जरा हौले-हौले चलो मेरे साजना", "आओ हुजूर तुमको सितारों में ले चलूं", "आ, आ गले लग जा" जैसे गीतों को लिखा।
उनकी याद आई तो उनके लिखे कुछ और बेहतरीन गीत भी याद आए, जिनमे.....
न ये चांद होगा न तारे रहेंगे।
देखो वो चांद छुपकर करता है क्या इशारे।
नई मंजिल नई राहें, नया है मेहरबां अपना।
आप यूं ही अगर, हमसे मिलते रहें, देखिए एक दिन प्यार हो जाएगा।
बहुत शुक्रिया, बड़ी मेहरबानी, मेरी जिंदगी में हुजूर आप आए।
दीवाना हुआ, बादल, सावन की घटा छाई।
इशारों- इशारों में दिल लेने वाले, बता ये हुनर, तूने सीखा कहां से।
ये दुनिया उसी की, ज़माना उसी का।
तारीफ करूं क्या उसकी, जिसने तुम्हें बनाया।
यही वो जगह है, यही वो फिजाएं, जहां पर कभी आप हमसे मिले थे।
मेरा प्यार वो है ,जो मर कर भी तुमको, जुदा अपनी बांहों से होने न देगा।
मैं शायद तुम्हारे लिए, अजनबी हूं।
फिर मिलेंगे कभी, इस बात का वादा कर लो।
जरा हौले हौले चलो मेरे साजना।
मेरी जान तुमपे सदके एहसान इतना कर दो।
जुल्फों को हटा लो, चेहरे से।
रातों को चोरी-चोरी बोले मेरा कंगना।
न जाने क्यों हमारे दिल को तूने दिल नहीं समझा।
कजरा मुहब्बत वाला, अखियों में ऐसा डाला।
लाखों है यहां दिलवाले, पर प्यार नहीं मिलता।
चैन से हमको कभी आपने जीने ना दिया।
तुमसे मिल कर ना जाने क्यों, और भी कुछ याद आता है।
वो हस के मिले हमसे, हम प्यार समझ बैठे।
फिर ठेस लगी दिल को, दिल दर्द से भर आया, आदि आदि।
पर बेहद अफसोस से कहना बड़ता है की हजारों_ लाखों एक से एक बेहतरीन अमर गीत लिखने वाले गीतकार बिहारी को हिंदी सिनेमा में उनके इस अमूल्य योगदान के बावजूद, उस दौर के कई दूसरे गीतकारों के जैसी ख्याति नही मिली।( शाश्वत तिवारी लेखक जानेमाने वरिष्ठ पत्रकार है)