लखनऊ : (मानवी मीडिया) राज्यपाल व कुलाधिपति आनंदीबेन पटेल की अध्यक्षता में आज सिद्धार्थ विश्वविद्यालय कपिलवस्तु, सिद्धार्थनगर का 7वाँ दीक्षांत समारोह सम्पन्न हुआ। राज्यपाल जी ने माँ सरस्वती के चित्र पर पुष्पार्चन तथा कलश में जलधारा अर्पण करके जल संरक्षण के संदेश के साथ दीक्षांत समारोह का शुभारम्भ किया। समारोह में राज्यपाल जी ने विश्वविद्यालय के कुल 46 प्रतिभाशाली मेधावियों को स्वर्ण पदक प्रदान किए, जिसमें 19 छात्र एवं 27 छात्राओं ने पदक हासिल किए। इसके साथ ही समारोह में कुल 67305 उपाधियाँ प्रदान की गईं, जिनमें 36281 छात्राओं ने तथा 31024 छात्रों ने उपाधि प्राप्त की। उपाधि प्राप्तकर्ताओं में 07 शोध विद्यार्थी भी शामिल रहे। शोध के लिए 05 छात्रों और 02 छात्राओं ने उपाधि प्राप्त की।
इस अवसर पर में राज्यपाल ने सभी उपाधि प्राप्त कर्ताओं, स्वर्ण पदक तथा शोध उपाधि पाये विद्यार्थियों को शुभकामनाएं देकर उनके उज्ज्वल भविष्य की कामना करते हुए सभी को दीक्षांत समारोह की शुभकामनाएं दी। उन्होंने कहा कि यहाँ पर गौतम बुद्ध ने विश्व को शान्ति का सन्देश दिया। यह भूमि देश-विदेश केे लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर रही है। समारोह में कुलाधिपति जी ने कहा कि आप लोग शिक्षा प्राप्त कर अपने विद्यालय का नाम रोशन करें। उन्होंने विद्यार्थियों को बधाई देते हुए कहा कि छात्रों ने भी विशेष प्रयास कर छात्राओं को टक्कर दिया है। आज भारत बदल रहा है। छात्राएं हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं।
लेकिन इस अवसर पर मैं यह कहना चाहूंगी कि छात्र छात्राओं को सामूहिक रूप से आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए। छात्राओं को आगे बढ़ाने के लिए अपने जीवन में लक्ष्य निर्धारण करना अत्यंत आवश्यक है। लक्ष्य निर्धारण में समाज कल्याण की भावना निहित होनी चाहिए। लंबी पढ़ाई के बाद यह उपाधि और यह मैडल प्राप्त हुआ है। शिक्षित समाज ही विकसित राष्ट्र का प्रतिबिंब होता है। इसलिए युवा विद्यार्थी समाज निर्माण में, राष्ट्र निर्माण में देश को विकसित करने में अपना सर्वाधिक योगदान देने का प्रयत्न करें।
उन्होंने इस अवसर पर दीक्षा उपदेश का उल्लेख करते हुए कहा कि आज माता-पिता की सेवा एक महत्वपूर्ण चुनौती समाज में बनी हुई है। मैं तमाम अनाथालयों में जाने के अवसर मिलने के बाद यह अनुभव करती हूँ कि समाज में आज बुजुर्ग जनों के लिए संकट है। बच्चे अपने माता-पिता को घर से बेघर कर दे रहे हैं ।वही माता-पिता अपने जीवन में अपने बच्चों के लिए, अपनो के लिए, अपना सर्वाेच्च त्याग देते हैं और विषम परिस्थितियों में रहते हुए, अनेक तंगी में रहते हुए, अपने बच्चों को पढ़ा लिखा कर उन्हें योग्य बनाते हैं। जब उनका बेटा योग्य हो जाता है और जब वह बुजुर्ग होते हैं तो उनको घर से बाहर कर दे रहे हैं। उसी प्रकार दहेज जैसी कुप्रथा का भी उल्लेख करते हुए कहा कि बड़े से बड़े घरानो में और गरीब से गरीब घर में भी इस प्रथा को हम सब समाप्त नहीं कर पा रहे हैं। शिक्षण संस्थानों में विद्यार्थियों के बीच इन विषयों को भी रखकर उन्हें जागरूक करना चाहिए ।
आनंदीबेन पटेल ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर चर्चा करते हुए कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति भारत की यशस्वी ज्ञानपरंपरा का धरोहर है। भारतीय ज्ञान परंपरा को आधुनिक संदर्भ में लागू करने का प्रयास राष्ट्रीय शिक्षा नीति के माध्यम से किया गया है। हम सब जानते हैं कि हमारे प्राचीन भारत की शिक्षा व्यवस्था बहुत उच्च कोटि की थी। उसमें नालंदा विक्रमशिला तक्षशिला जैसे शिक्षण संस्थाओं का उल्लेख मिलता है। लेकिन आगे के समय में भारत की यह यशस्वी परंपरा निरंतर आगे नहीं बढ़ पाई। इसके लिए हमको जरूर मंथन करना चाहिए कि हम हमारी कमजोरी इस क्षेत्र में कैसे रह गई, कहां रह गई। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय में शोध और शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए अनेक सेल बनाए हैं यह सेल बहुत ही प्रभावी ढंग से कार्य कर रहा है। उन्होंने विश्वविद्यालय और भाभा एटॉमिक सेंटर गुजरात के बीच एमओयू की भी चर्चा करते हुए कहा कि इस संयंत्र के लग जाने से इस क्षेत्र में भूकंप से संबंधित सूचनाएं प्रसारित हो सकती हैं।