रांची (मानवी मीडिया): क्या आपने कभी सोचा है कि किसी कागज, फाइल, दस्तावेज या बैंक चेक पर आप जो हस्ताक्षर करते हैं, उसका वजन भी मापा जा सकता है? जी हां, यह संभव है। भारत में सिर्फ रांची के कांके स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ लीगल मेट्रोलॉजी (आईआईएलएम) के पास यह तकनीक है कि वह किसी के भी हस्ताक्षर का वजन बता दे। यह संस्थान इस तकनीक के आधार पर किसी व्यक्ति के हस्ताक्षर के असली-नकली होने की पहचान कर सकता है।
आईआईएलएम के विशेषज्ञ बताते हैं कि यहां “माइक्रो बैलेंस” तकनीक पर आधारित उपकरण की मदद से सूक्ष्म से सूक्ष्म द्रव्यमान की वस्तुओं के सटीक वजन का पता लगा लिया जाता है। इसकी मदद से न सिर्फ हस्ताक्षर, हमारे शरीर के छोटे से बाल, यहां तक कि हमारे द्वारा छोड़ी जाने वाली एक सांस का भी शत-प्रतिशत सटीक एवं मानक माप विश्लेषण किया जा सकता है। माइक्रोबैलेंस मशीन अत्यधिक संवेदनशील है। खराब मौसम या धूल का एक कण भी इसकी एक्युरेसी को प्रभावित कर सकता है।
हस्ताक्षर का वजन माइक्रोग्राम में मापा जाता है। एक माइक्रोग्राम एक मिलिग्राम का एक हजारवां भाग होता है। इस तकनीक से की जाने वाली माप के जरिए असली-नकली हस्ताक्षर की पहचान की जाती है। संस्थान के एक पूर्व निदेशक बताते हैं, “दिलचस्प बात यह कि जाली हस्ताक्षर का वजन असली हस्ताक्षर से ज्यादा होता है। इसके पीछे की वजह यह है कि कोई भी व्यक्ति अपने स्वाभाविक अंदाज में हस्ताक्षर करता है, जबकि उसकी हू-ब-हू नकल का प्रयास करने वाला व्यक्ति कलम पर अधिक दबाव डालने के लिए बाध्य होता है।”
आईआईएलएम यानी इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ लीगल मेट्रोलॉजी, माप-तौल के लीगल पैरामीटर तय करने और इसके मानक तकनीकों पर प्रशिक्षण देने वाला पूरे दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया में अपनी तरह का अनूठा और एकमात्र शीर्ष संस्थान है। यहां के उच्च मानकों की ख्याति ऐसी है कि अब तक यहां 32 देशों के हजारों अधिकारी प्रशिक्षण प्राप्त कर चुके हैं। यह इंस्टीट्यूट केंद्र सरकार के उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय के उपभोक्ता मामले विभाग के प्रत्यक्ष नियंत्रण में काम करता है।
इस इंस्टीट्यूट की स्थापना का इतिहास भी दिलचस्प है। इसकी वेबसाइट में दी गई जानकारी के अनुसार, भारत में मीट्रिक प्रणाली लागू होने से पहले ही बाट और माप के प्रशिक्षण के लिए एक प्रशिक्षण संस्थान की आवश्यकता समझी गयी। इस दिशा में सबसे पहले बिहार और महाराष्ट्र की सरकारें सबसे पहले आगे आईं और अपने प्रवर्तन अधिकारियों को प्रशिक्षण देना प्रारंभ किया, जिससे देश में मानकों में समानता रहे उपभोक्ता अधिकारों का संरक्षण हो सके।
इसके बाद 1962 में बिहार सरकार ने पटना में ‘ऑल इंडिया ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट फॉर वेट्स एंड मेजर्स’ नामक एक प्रशिक्षण संस्थान की स्थापना की, जिसे 1 जनवरी 1970 को भारत सरकार द्वारा पूर्ण रूप से अधिग्रहीत कर लिया गया। बाद में इस संस्थान को जर्मन सरकार के सलाहकारों की सलाह पर 1974 में रांची स्थानांतरित किया गया और इसे नया नाम दिया गया आईआईएलम। इस इंस्टीट्यूट को शुरू में जर्मन सरकार के सहयोग के अधीन रखा गया था।
वर्तमान में लगभग 70,000 वर्ग मीटर में फैले इस इंस्टीट्यूट में 32 पाठ्यक्रमों का संचालन किया जाता है। लीगल मेट्रोलॉजी में प्रशिक्षण देने वाला यह भारत का इकलौता संस्थान है। भारत सरकार और विभिन्न राज्य सरकारों के लीगल मेट्रोलॉजी अफसरों के लिए यहां नियमित तौर पर प्रशिक्षण चलता रहता है। 18 प्रयोगशालाओं और एक समृद्ध पुस्तकालय के साथ-साथ सेमिनार हॉल एवं अन्य सभी आवश्यक संसाधनों से परिपूर्ण यह संस्थान अपने ग्रीन कैंपस के लिए भी मशहूर है।
संस्थान के हेड ऑफ द ऑफिस प्रो. बंशीधर कोनर कहते हैं, आईआईएलएम के पास एक गौरवशाली इतिहास है। यह संस्थान कानूनी मेट्रोलॉजी के क्षेत्र में सक्षम, जानकार और कुशल मानव संसाधन गढ़ता है।