लखनऊ : (मानवी मीडिया) राज्यपाल एवं कुलाधिपति आनंदीबेन पटेल की अध्यक्षता में आज संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी का 41 वां दीक्षांत समारोह संपन्न हुआ। राज्यपाल जी ने कलश में जलधारा अर्पण कर जल संरक्षण के संदेश के साथ दीक्षांत समारोह का शुभारंभ किया। समारोह में राज्यपाल जी ने विश्वविद्यालय के वर्ष 2022 2023 के सफल विद्यार्थियों को उपाधियां प्रदान की। उन्होंने 30 मेधावियों को 59 पदक प्रदान किए। पदक प्राप्तकर्ताओं में आचार्य की परीक्षा में सर्वोच्च अंक प्राप्त करने वाले छात्र अभिनव प्रकाश ने सर्वाधिक 10 पदक प्राप्त किए। ऋषभ द्विवेदी और प्रवीण पौडेल ने पांच-पांच स्वर्ण, प्रिंस शर्मा, विवेक कुमार, श्रवण कुमार मणि त्रिपाठी और कौशलेंद्र मिश्र ने तीन-तीन, जाधव विश्वनाथ, दीपक कुमार घोष,अंकित जैन और संध्या पटेल ने दो-दो स्वर्ण पदक प्राप्त किए। इस बार पांच छात्राओं ने छह स्वर्ण पदक प्राप्त किए।
समारोह के दौरान राज्यपाल की गरिमामयी उपस्थिति में विश्वविद्यालय द्वारा 14079 डिग्रियों को डिजिलॉकर में अपलोड किया गया । विश्वविद्यालय ने उपाधि प्राप्त विद्यार्थियों की कुल 158063 डिग्रियों को डिजिलॉकर में अपलोड किया। इस अवसर पर दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए राज्यपाल जी ने सभी पदक विजेताओं तथा उपाधि प्राप्त छात्र-छात्राओं को उनके उज्जवल भविष्य की शुभकामनाएं दीं।उन्होंने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि सनातन संस्कृति भारत की आत्मा है।
संस्कृत एक भाषा ही नही अपितु भारतीय सभ्यता की जड़ है। समस्त प्राचीन भारतीय भाषाओं की पोशिका भी है। संस्कृत विद्या का लक्ष्य केवल जीविकोपार्जन न होकर बल्कि सम्पूर्ण राष्ट्र के विकास का होना चाहियें। आज संस्कृत भाषा को लेकर जागरूकता आयी है। इस भाषा के माध्यम से प्राचीन विरासत को सहेज कर नई पीढ़ी को देना चाहिये जो कि भावी पीढ़ी का हक भी है। कुलाधिपति महोदया ने संस्कृत भाषा के शोध में छात्राओं की बढ़ती संख्या पर चर्चा करते हुए कहा कि आज संस्कृत भाषा में महिलाओं की संख्या बढ़ रही है इसका प्रमुख कारण उनकी सोच बदल रही है। महिलायें जब शिक्षित होगी तब सभी बुराइयों को खत्म करने में मदद मिलेगी।
उन्होंने रामायण के एक प्रसंग के माध्यम से माँ की चर्चा करते हुए कहा कि माँ के आदेश का पालन हम सभी को करना चाहिये क्योंकि मॉ जो आदेश देती है वह कभी गलत नहीं होता। वृद्धाश्रम की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि क्या हम वास्तव में जो शिक्षा प्राप्त कर रहे है उसका उपयोग करते है या नहीं, अगर उस शिक्षा का सही उपयोग होता तो आज समाज में इतने वृद्धाश्रम नही होते। उन्होंने छात्र-छात्राओं से अपने माता-पिता की सेवा करने के लिये सीख दी। काशी को न्याय की भूमि बताते हुए उन्होंने लगभग 250 वर्ष पुराने सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि भारत को विश्व गुरु बनाने में इस संस्था का बहुत बड़ा योगदान है। किसी भी संस्था के कल्याण में हितग्राहियों की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होती है। इस संस्था के हितग्राहियों के संयुक्त प्रयास से संस्कृत भाषा की विशेषता ने पूरे देश को एक सूत्र में बांधने का कार्य किया है। उन्होंने डिजीलॉकर के बारे में बताते हुए कहा कि डिग्रियों से भविष्य में कोई भी छेड़छाड़ नही कर सकेगा। छात्र व छात्राओं को आसानी से अंक पत्र एवं प्रमाण पत्र उपलब्ध हो जायेगा। उन्होंने युवा पीढ़ी पर चर्चा करते हुए कहा कि युवा पीढ़ी के पास नये सपने व संकल्प है। अगले 25 वर्ष भारत को आगे बढाने के लिये बहुत महत्वपूर्ण है जिसमें युवाओं को अपना महत्वपूर्ण योगदान देना होंगा।
अगले 25 वर्ष भारत को आगे बढ़ाने में बहुत महत्वपूर्ण है जिसमें युवाओं को अपना योगदान देना होगा। उन्होंने महर्षि भारद्वाज के द्वारा प्राचीन समय में किए गए अविष्कारों को सामने रखते हुए भारत की प्राचीन जानकारी को सभी के समक्ष रखते हुए भारत की प्राचीनतम उपलब्धियां को बताया। उन्होंने कहा कि केन्द्र सरकार ने नयी शिक्षा नीति में वेदों के विकास हेतु 100 करोड़ का प्रावधान किया है जिसका हम सभी को प्रोजेक्ट बनाकर फायदा लेना चाहिए। उन्होंने अन्त में प्रधानमंत्री के पांच प्रण को दोहराया जिसमें आत्मनिर्भर भारत, गुलामी की मानसिकता से निकलना, देश की विरासत को सुदृढ़ करना, भारत की एकता बनाए रखने तथा देश को आगे बढ़ाने में अपनी उपयोगिता देना। उन्होंने केजी से पीजी को जोड़ने तथा गावों के विकास की बात भी कही।समारोह में राज्यपाल जी ने आंगनबाड़ी केंद्रों को सुसज्जित करने हेतु आँगनवाड़ी कार्यकत्रियों को उपयोगी सामग्री की किट तथा संस्कृत विद्यालय के छात्र-छात्राओं को पठन -पाठन सामग्री प्रदान की।
कुलाधिपति एवं राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने ऑनलाइन संस्कृत प्रशिक्षण केंद्र के लैब का भौतिक रूप से उद्घाटन किया।
दीक्षान्त समारोह के मुख्य अतिथि केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, नई दिल्ली के कुलपति प्रो० श्रीनिवास वरखेड़ी ने कहा कि संस्कृत केवल भाषा नहीं अपितु हमारे गौरवपूर्ण इतिहास की साक्षी है तथा भारतीयों के लिये ऊर्जा स्रोत है।प्राच्य विद्या निहित ऋषियों का संदेश कष्ट मुक्त, सात्विक तथा विकासशील समाज का निर्माण करता है। विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो0 बिहारी लाल शर्मा ने राज्यपाल के समक्ष विश्वविद्यालय की प्रगति आख्या प्रस्तुत की।
कुलाधिपति एवं राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने ऑनलाइन संस्कृत प्रशिक्षण केंद्र के लैब का भौतिक रूप से उद्घाटन किया।
दीक्षान्त समारोह के मुख्य अतिथि केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, नई दिल्ली के कुलपति प्रो० श्रीनिवास वरखेड़ी ने कहा कि संस्कृत केवल भाषा नहीं अपितु हमारे गौरवपूर्ण इतिहास की साक्षी है तथा भारतीयों के लिये ऊर्जा स्रोत है।प्राच्य विद्या निहित ऋषियों का संदेश कष्ट मुक्त, सात्विक तथा विकासशील समाज का निर्माण करता है। विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो0 बिहारी लाल शर्मा ने राज्यपाल के समक्ष विश्वविद्यालय की प्रगति आख्या प्रस्तुत की।
इस अवसर पर पूर्व कुलपति प्रो राजाराम शुक्ल, तिब्बती उच्च शिक्षा संस्थान के कुलपति प्रो० वांड्छुक दोर्जे नेगी, प्रो० ब्रजभूषण ओझा, प्रो० प्रेम नारायण सिंह, विधायक, सौरभ श्रीवास्तव, प्रो० फूलचन्द्र जैन प्रेमी, प्रो० दुर्गा नन्दन प्रसाद तिवारी, विद्या एवं कार्य परिषद के सम्मानित सदस्य सहित विश्वविद्यालय के अधिकारी एवं कर्मचारी सहित छात्र एवं छात्राएं उपस्थित थे।