(मानवी मीडिया) : दुनिया में पुरुषों की तुलना में महिलाओं में आक्रोश की भावना बढ़ती जा रही हैं ऐसा हम नहीं बल्कि एक ग्लोबल सर्वे कह रहा है. दरअसल वक्त के साथ लोगों की जीवन शैली में तेजी से बदलाव हो रहा है. इस बदलाव के साथ अब इमोशन स्केल भी बदल रहा है
लोगों में तनाव और गुस्से का स्तर तेजी से बढ़ रहा है. खासतौर से भारत की महिलाओं के मामले में ऐसा देखा जा रहा है. KGMU मानसिक स्वास्थ विभाग और ट्रॉमा के शोध में सामने जो तथ्य आए हैं वो बेहद चौकाने वाले हैं.
इसमें 60 फीसदी लोग गुस्से में आकर आत्महत्या कर रहे हैं. आत्महत्या का प्रयास करने में 70 फ़ीसदी महिलाएं शामिल होती हैं. जबकि 30 प्रतिशत पुरुष, चिंता की बात यह है कि आत्महत्या का प्रयास करने वालों की उम्र 18 से 25 साल के बीच है.
जब कोई शख़्स आत्महत्या करने के बारे में सोचने लगता है तो इस स्थिति को मनोचिकित्सक सुसाइडल आइडिएशन (आत्महत्या का ख्याल) कहते हैं. ज़रूरी नहीं है कि किसी एक वजह से ऐसा हो. विशेषज्ञों की राय में जब व्यक्ति को किसी मुश्किल से निकलने का कोई रास्ता नहीं मिलता है, तो वो अपना जीवन ख़त्म करने के बारे में सोचता है.
ट्रामा सेंटर में आत्महत्या के प्रयास करने लाए गए 150 मरीजों पर रिसर्च किया गया. इसमें पाया गया है कि आत्महत्या का प्रयास करने वाले 40 प्रतिशत किसी ने किसी प्रकाश के मानसिक रोगी हैं, इनमें डिप्रैशन, एंजायटी और दूसरी समस्या थी, जबकि 60 प्रतिशत लोगों ने गुस्से में आकर खुदकुशी का प्रयास किया.