लखनऊ( मानवी मीडिया) एक बिच्छू नदी में बहा जा हुआ रहा था एक साधु ने उसे बचाने की चेष्ठा से हाथ बढ़ा कर खींच लिया और बिच्छू ने तुरंत साधु के हाथ पर डंक मार दिया। परिणामस्वरूप बिच्छू फिर पानी में गिर गया। साधु ने फिर हाथ बढ़ा कर उसे खींच लिया और बिच्छू ने फिर डंक मार दिया, वह फिर दूसरी बार पानी में गिर गया। एक राही जाते आदमी ने साधु से कहा कि जब बिच्छू आप को बार-बार काट रहा तो आप फिर उसे बार बार बाहर क्यों निकालते हैं। साधु बोला डंक मारना बिच्छू का धर्म है और इसे बचाना मेरा धर्म है वह अपना धर्म नहीं छोड़ता, तो मैं अपना धर्म क्यों छोड़ू। प्रसंग से स्पष्ट है कि हर प्राणी का अपना अपना धर्म है।
धर्म को देखने को लेकर हाथी वाले प्रसंग अनुसार आंखों पर पट्टियां बंधे हुए जिस जिस व्यक्ति ने हाथी के जिस-जिस भाग को छुआ उसे हाथी वैसा ही लगा जबकि ऐसी बात नहीं थी। सनातन धर्म को लेकर जो विचार तमिलनाडू के मंत्री उदयनिधि स्टालिन ने प्रकट किए उससे सनातन धर्म के अनुयायियों की भावनाएं अवश्य आहत हुई हैं लेकिन सनातन धर्म को तो कुछ नहीं होने वाला क्योंकि वह सत्य पर खड़ा है और उसे समाप्त करने के लिए विश्व में सदियों पहले साम, दाम, दंड भेद सभी प्रकार की नीतियां अपनाई गई हैं, लेकिन सनातन धर्म आज भी विश्वनुमा फुलवाड़ी को अपनी महक से प्रभावित कर रहा है और मानव को प्रकृति से प्रवृत्ति का संतुलन बनाकर चलने की प्रेरणा दे रहा है। प्रकृति प्रति सनातन धर्म का समर्पण ही उसकी सबसे बड़ी शक्ति है।
मनोज सिंह ‘वैदिक सनातन हिंदुत्व’ में लिखते हैं ‘सनातन प्रकृति उपासना का धर्म है। सूर्य उपासना का धर्म है। मंत्रों का धर्म है। यज्ञ का धर्म है। योग का धर्म है। ज्ञान का धर्म है। मंत्रों के साक्षात्कार के लिए योग में जाना जरूरी है, यह ध्यान का धर्म है। सनातन मजहब , रिलीजन भी नहीं, सनातन धर्म है। यहां धर्म को समझने और परिभाषित करने की आवश्यकता है और जो इस तरह से समझा जा सकता है कि धर्म का सही शब्द अंग्रेजी और अरबी-फारसी में है ही नहीं। इस तरह से जब हम सनातन को धर्म के रूप में देखते हैं तो हमें उसे उदाहरण से समझाना होगा, वरना भ्रम हो जाता है। यहां धर्म कर्तव्य से है, कर्म से है, चेतना से है, भाव से है। सनातन में चार वेद, अठारह पुराण, एक सौ आठ उपनिषद्, गीता, रामायण, श्रीमद्भागवत, महाभारत, मानस आदि अनगिनत पवित्र पुस्तकें हैं। साथ ही त्रिदेव, तैंतीस कोटि देवता, सैकड़ों रूप लिये देवियां हैं तो पितृ, गुरु, माता-पिता आदि भी देवता तुल्य ही माने जाते हैं, जहां अनेक रूप में ईश्वर और फिर निर्गुण निराकार ईश्वर भी हो, जिसके कि दस अवतार और हजारों अंश अवतार हों, कण-कण में भगवान् हों, ऐसी स्थिति में सनातन एक किताब या एक सन ऑफ गॉड आदि-आदि वाली थ्योरी के मजहब-पंथ और रिलीजन की परिभाषा में कहां समा पाएगा? सागर क्या कभी गागर में समा सकता है भला! यह व्यावहारिक रूप से अपेक्षित भी नहीं। सनातन किसी एक की गुलामी या किसी एक से नियंत्रित होना नहीं सिखाता। यह प्राकृतिक रूप से नियमित होने में विश्वास करता है। यह किसी एक किताब या मैसेंजर को न मानने पर नरक का खौफ पैदा भी नहीं करता। सनातन धर्म मानवीय जीवन जीने के लिए श्रेष्ठतम मार्गों का विकल्प देता है। साथ ही अमानवीय कार्यों के दुष्परिणाम की ओर सचेत करता है। यह एक अकेला मानव धर्म है। यह वह धर्म है, जो अपने समूह को श्रेष्ठ और दूसरों को निकृष्ट या काफिर कहने की जगह वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना का प्रचार करता है। यह वह धर्म है, जो सर्वे भवन्तु सुखिन: की प्रार्थना सिखाता है। सनातन धर्म को किसी एक देश और काल की सीमा से नहीं बांधा जा सकता। सनातन की सीख सिर्फ हिंदू के लिए नहीं बल्कि समस्त मानवजाति के लिए है। वैसे भी हिंदू शबद तो बाद में आया, जब दूसरे नाम आने लगे होंगे तभी इस नाम की भी उत्पत्ति हुई होगी। वरना सनातन तो तब से है, जब से मानव ने सभ्यता-संस्कृति का पहला बीज बोया। यह मानव के विचार का आदि है। यह मानव सभ्यता का प्रारंभ है।’
उदयनिधि स्टालिन क्या कह रहा है उससे उसके व्यक्तित्व व विचारों तथा संस्कारों का पता चलता है। सनातन में आस्था रखने वालों को उदयनिधि स्टालिन के विरुद्ध कानूनी कार्रवाई करनी चाहिए। उदयनिधि ने एक धर्म विशेष के लोगों की आस्था को तो आहत किया ही है तथा साथ ही साथ देश में नफरत फैलाने व साम्प्रदायिक तनाव पैदा करने की कोशिश की है। उदयनिधि स्टालिन अभी भी अपनी कही बात को उचित ठहरा रहा है। यह दुर्भाग्यपूर्ण और चिंता की बात है। हिंदू संगठनों, मंदिर प्रबंधक कमेटियों और संत समाज को स्टालिन विरुद्ध तत्काल कानूनी कार्रवाई करनी चाहिए, कानून के अनुसार सजा मिले। यह बात भी सुनिश्चित की जानी चाहिए।