व्याख्यान में विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर दिनेश कुमार द्वारा विशिष्ट अतिथि का स्वागत किया गया और कृत्रिम बुद्धि (ए०आई०) के क्षेत्र में अपनी गहन अंतर्दृष्टि और ज्ञान से इस अवसर की शोभा बढ़ाने के लिए प्रोफेसर मोनिका श्रीवास्तव के प्रति आभार भी व्यक्त किया। प्रो श्रीवास्तव ने शिक्षा और मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन के भविष्य को आकार देने में अंतःविषय सहयोग के महत्व और प्रौद्योगिकी की भूमिका पर प्रकाश डाला।
कृत्रिम बुद्धि और शिक्षा के क्षेत्र में उन्होंने कृत्रिम बुद्धि में तेजी से हो रही प्रगति और मनोवैज्ञानिक परीक्षण में क्रांति लाने की इसकी क्षमता पर चर्चा करके शुरुआत की। प्रोफेसर श्रीवास्तव ने विभिन्न ए० आईं ० संचालित उपकरणों और तकनीकों की खोज की जिनका उपयोग मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन की सटीकता और दक्षता बढ़ाने के लिए किया जा रहा है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि ए० आईं ० कैसे बड़े डेटासेट के विश्लेषण में सहायता कर सकता है और किसी व्यक्ति के संज्ञानात्मक और भावनात्मक कल्याण में व्यक्तिगत अंतर्दृष्टि प्रदान कर सकता है।
व्याख्यान में मनोवैज्ञानिक परीक्षण में ए०आई० के एकीकरण से जुड़े नैतिक विचारों और चुनौतियों पर भी चर्चा हुई। प्रो. श्रीवास्तव ने जिम्मेदार ए०आई० विकास, डेटा गोपनीयता और ए०आई० सहायता प्राप्त मूल्यांकन में मानव पर्यवेक्षण के महत्व की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने शिक्षकों एवं विद्यार्थियों को ए०आई० संचालित मनोवैज्ञानिक परीक्षणों से उत्पन्न होने वाले नैतिक निहितार्थों और संभावित पूर्वाग्रहों का गंभीर मूल्यांकन करने के लिए प्रोत्साहित किया।
प्रो. मुनेश कुमार ने प्रो. मोनिका श्रीवास्तव के ज्ञानवर्धक व्याख्यान और क्षेत्र में उनके योगदान के लिए आभार व्यक्त किया।
कार्यक्रम में डॉ. किरण लता डंगवाल और डॉ. सूर्य नारायण गुप्ता और विभाग के अन्य शिक्षक भी उपस्थित रहे।