(मानवी मीडिया) : हमारे सौरमंडल में कुल 9 ग्रह हैं जिनमें धरती रहने के योग्य है. यह बात अलग है कि हम सब इस तरह की घटनाओं के गवाह बन रहे हैं जो असामान्य है. बारिश के मौसम में सूखा जाड़े में गर्मी का अहसास, गर्मी में ग्लोब के किसी ना किसी हिस्से में ठंड, असामान्य तौर पर ग्लेशियरों का पिघलना बार बार भूकंप की दस्तक क्या ये सब धरती के अंत की तरफ इशारा कर रहे हैं
इसे सामान्य प्रक्रिया के तौर पर लेना चाहिए. इन सबके बीच वैज्ञानिकों ने जो अंदेशा जताया है अगर वो सच के करीब है तो चिंता की बात है. वैज्ञानिकों का कहना है कि जिस सिस्टम की वजह से धरती पर जिंदगी है उसमें तेजी से बदलाव हो चुका और उसकी वजह से इंसानी जिंदगी पर खतरा मंडरा रहा है.
वैज्ञानिकों के मुताबिक प्रदूषण और हद से अधिक इंसानी दखल के असर से ग्रहों की सीमाओं पर असर पड़ा है. ग्रहों की टूटी सीमा का अर्थ यह है कि संतुलन स्थापित करने वाली शक्तियों पर असर पड़ रहा है. करीब 10 हजार साल पहले जब हिमयुग था वहां से लेकर औद्योगिक क्रांति तक ग्रहों की सीमाएं सुरक्षित थीं लेकिन औद्योगिक क्रांति का असर यह हुआ है कि हम प्राकृतिक आपदाओं का शिकार अब तेजी से हो रहे हैं.
आधुनित सभ्यता का विकास होलोसीन युग से शुरू हुआ था. वैज्ञानिकों के मुताबिक हर एक ग्रह 9 सीमाओं के दायरे में है. 6 सीमाएं टूट चुकी हैं दो टूटने के करीब हैं यानी कि इशारा वायू प्रदूषण और ओसन में एसिड की मात्रा में लगातार इजाफा हो रहा है.वायू प्रदूषण की वजह से ओजोन की परत में छेद और उसका लगातार सिकुड़ते जाना बड़े खतरे का संकेत है.
जैसा कि हम सब जानते हैं कि ओजोन लेयर सूर्य की हानिकारक यूवी रे से बचाव करती है. इस स्थिति से निपटने के लिए कोशिश की जा रही है लेकिन उसे पर्याप्त नहीं कहा जा सकता. कार्बन डाइ ऑक्साइड को सोखने वाले पेड़ों पर ध्यान दिया जा रहा है हालांकि सवाल यह है कि जब प्रदूषण का स्तर ही अपने चरम स्तर पर पहुंचेगा तो ये पेड़ कितना मदद कर सकेंगे.