पर्सनल लॉ बोर्ड ज्ञानवापी मस्जिद मामले में वैसे ही पैरवी करेगा जैसे उसने तीन तलाक़ और बाबरी मस्जिद के मामले में किया था, बाबरी मस्जिद के मामले में पर्सनल लॉ बोर्ड का पूरा ध्यान मुक़दमे की रोज़ाना सुनवाई के खर्च 50,00,000=00, पचास लाख रूपये का इंतिज़ाम करने पर रहता था जबकि एक क़ाबिल वकील ज़फरयाब जीलानी बोर्ड के मिम्बर और मुख्य पैरोकार थे इनको यह मुक़दमा मुफ्त में लड़ना चाहिए था।
अनीस मंसूरी ने कहा कि तीन तलाक़ मामले में ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने माननीय सुप्रीम कोर्ट के सामने आधा अधूरा पक्ष रख्खा, शरीअत के मुताबिक तीन तलाक़ देने से तीन तलाक़ हो जाती है लेकिन तलाक़ देने वाले ब्यक्ति को 40 कोड़े मारे जाने का प्रावधान है, कोड़े मारने वाली बात कोर्ट को नहीं बताई अगर कोर्ट को यह बात बताई जाती तो कोर्ट 40 कोड़े की सज़ा का बदल निर्धारित करता। अनीस मंसूरी नेकहा कि हमने स्वयं और अपने प्रतिनिधियों के माध्यम से पर्सनल लॉ बोर्ड के ज़िम्मेदार उहदेदारान को 40 कोड़े मारे जाने की सज़ा के बारे में अवगत कराया था कि यह बात सुप्रीम कोर्ट को बतायें ताकि कोर्ट इसको ध्यान में रख कर फैसला दे।
अनीस मंसूरी ने
कहा कि ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड क़ुरआन और हदीस की बात करता है लेकिन तीन तलाक़ के मामले में जो की एक बिदअत है को क़ुरआन पर तरजीह दे रहा था।
अनीस मंसूरी ने कहा कि ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की इन्ही करतूतों की वजह से देश के मुसलमानो में अपनी साख खो चूका है इसलिए ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को ज्ञानवापी मस्जिद मामले में स्वयं को अलग कर लेना चाहिए।
देश के मुसलमानो को अदालत पर पूरा भरोसा है लेकिन पर्सनल लॉ बोर्ड पर ज़रा भी नहीं।