भुबनेश्वर : (मानवी मीडिया) पीरियड्स यानी मासिक धर्म के दौरान महिलाओं का संकोची स्वभाव हो जाना आम बात है, यही ओडिशा में रज पर्व के रूप तीन दिन तक मनाया जाता है जिसकी शुरुआत बुधवार से हो गयी है।
रज महोत्सव को भूमि की उर्वरा से भी जोड़ा जाता है। इस दौरान मॉनसून की शुरुआत और भूमि की विशेष पूजा की जाती है। ऐसी मान्यता है कि रजपर्व यानी तीन दिनों के बीच धरती जिन्हें हम मां भी कहते हैं, मासिक धर्म गुजरती हैं। अगला दिन शुद्धिकरण स्नान का होता है।
कुमारी कन्याओं के लिए यह रज महोत्सव की तरह पूरी मौज मस्ती के साथ मनाया जाता है।लोगों का कहना है कि इसकी शुरुआत दक्षिण ओडिशा से हुई जो अब पूरे ओडिशा का लोकपर्व बन चुका है। पहली रज हर्षोल्लास के साथ ओडिशा के घर-घर में मनाया जाता है।
कहते हैं कि जिस प्रकार महिलाओं के प्रतिमास मासिक धर्म होता है, जो उसके शरीर-विकास का प्रतीक होता है। ठीक उसी प्रकार कुमारी कन्याओं के रजोत्सव का यह महापर्व लगभग चार दिनों तक बड़े ही आन्नद-मौज के साथ ओडिशा में मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि उस दिन भगवान सूर्यदेव की पूजा का विशेष महत्त्व है। उससे भावी लोकजीवन में शांति तथा अमन-चैन आता है।
परम्परागत साड़ी और पहनावा, हाथों में मेंहदी रचाती हैं। यह भी मान्यता है कि जिस प्रकार धरती मां वर्षा के आगमन के लिए अपने आपको तैयार करती है, ठीक उसी प्रकार पहली रज को कुमारी कन्याएं, अविवाहिताएं अपने आपको तैयार करतीं हैं। सुबह में उठकर वे अपने शरीर पर हल्दी-चंदन का लेप लगातीं हैं।
और पवित्र स्नान के उपरांत महाप्रभु श्रीजगन्नाथ भगवान की पूजा व भावी सुखमय जीवन हेतु भगवान जगन्नाथ से प्रार्थना करतीं हैं। लगातार तीन दिनों तक घर के काम में किसी प्रकार काट-छिल भी नहीं करतीं हैं। सबसे रोचक बात यह है कि उन दिनों (चार दिनों तक) ओडिशा में धरती में कोई खुदाई भी नहीं होती है।