थंका मुख्य रूप से पवित्र पट्ट चित्रकारी होती है, जो महात्मा बुद्ध, बौद्ध देवताओं, साधुओं और स्वामियों के जीवन में होने वाली आध्यात्मिक महत्व की घटनाओं को प्रतिपादित करती हैं। ये उन मण्डल रचनाओं को भी दर्शाती है, जो ध्यान लगाने की प्रक्रिया के साथ, प्रतीकात्मक रूप से भी महत्वपूर्ण है। ये चित्रकारी बौद्ध समुदायों के रहन-सहन और प्रचलित परंपराओं का एक भाग है, जिसके कारण ये उनके समय एक गहरी श्रद्धा का स्त्रोत भी मानी जाती है। इन चित्रकारियों की बुनियादी रचनाएँ और छवि चित्रणों का प्रयोग, दोनों ही इन्हें दिव्य बनाने में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
इसमें ऐसे कई तत्व है जिन्हें निपुणता और सटीकता से निष्पादित किए जाने की आवश्यकता होती है। प्रारंभ में बौद्ध लामा और साधु चित्रित किया करते थे। सामान्य कलाकारों के हाथों में यह कला काफी समय बीतने के बाद ही सौंपी जाती थी। हालांकि, इन सामान्य कलाकारों को भी, इनमें महारत हासिल करने के लिए बहुत कड़े प्रशिक्षण से गुजरना पड़ता था।
बांका चित्रकारी बनाने के आरंभिक चरणों में बाँस या लकड़ी के फ्रेम पर एक कपड़ा लटकाकर उसे तानते थे ताकि एक समतल आधार प्रदान किया जा सके और कपड़ा कहीं से भी ढीला न हो। इसका आधार गोंद और चॉक से बनाया जाता है। कभी-कभी इन