लखनऊ (मानवी मीडिया) उत्तर प्रदेश के उप मुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक ने कहा है कि पत्रकारिता प्रजातंत्र का चौथा स्तंभ है। सत्ता और पत्रकारिता के प्रतिष्ठितजनों को मिल कर दोनों के बीच की दूरी खत्म करके प्रजातंत्र को मजबूत करना होगा तभी देश और प्रदेश की प्रगति संभव है।
उप मुख्यमंत्री ने यह विचार अपने वीडियो संदेश के माध्यम से प्रेस क्लब आफ आगरा और उत्तर प्रदेश जर्नलिस्ट एसोसिएशन के तत्वावधान में बुधवार को आयोजित इंडो-नेपाल-बंगलादेश मीडिया कांक्लेव -2023 में व्यक्त किए। होटल क्लार्क शिराज में आयोजित इस सम्मेलन में भारत ,नेपाल और बंगलादेश से 70 से अधिक पत्रकार शामिल हुए। कांक्लेव का विषय था सामयिक परिदृश्य में मीडिया की चुनौतियां और समाधान।
समारोह के मुख्य अतिथि केंद्रीय विधि एवं न्याय राज्यमंत्री प्रो.एसपी सिंह बघेल ने कहा कि प्रतिस्पर्धा और टीआरपी के चक्कर में कुछ समाचार आधे-अधूरे या तथ्यहीन प्रसारित और प्रकाशित कर दिए जाते हैं, जिससे समाज पर उसका गलत असर पड़ता है। उन्होंने कहा कि जिस प्रकार गलत पत्रकारिता के लिए पहले पीत पत्रकारिता शब्द का उपयोग किया जाता था, उसी प्रकार प्रशासनिक अधिकारियों के भ्रष्टाचार को लालफीताशाही शब्द दिया गया। लेकिन अब समय है कि इन सबसे बचाव कर अपने छवि को स्वच्छ बनाए रखें। उन्होंने कहा कि चेहरे पर से धूल तो हटाएं, लेकिन दर्पण में लगी धूल से भ्रमित न हों। उन्होंने तुलसीदास के दोहे को वर्तमान युग के परिप्रेक्ष्य में संशोधित करते हुए कहा कि कवि, वैद्य और पत्रकार यदि भयवश प्रशंसा करता है तो देश का नाश होता है। उन्होंने यह भी कहा कि लोकतंत्र के चार खंभे में से यदि एक भी कमजोर होगा तो लोकतंत्र खतरे में आ जाएगा। इसलिए पत्रकार पारदर्शिता के साथ अपने कर्तव्यों का पालन करें। किसी भी हालत में लक्ष्मण रेखा पार न करें। उन्होंने कहा कि हम जानते हैं कि नारद जी की तरत्ह ही पत्रकार भी सूचना तो देते ही हैं, पीड़ितजनों को न्याय भी दिलवाते हैं।
नेपाल के पत्रकारों का स्वागत करते हुए उन्होंने कहा कि नेपाल देश नहीं, हमारा छोटा भाई है। भाषा, संस्कृति, सभ्यता सभी कुछ नेपाल से हमारा मिलता है।
प्रदेश के उच्च शिक्षा मंत्री योगेंद्र उपाध्याय ने कहा कि सत्ता और पत्रकार जब समाज के लिए सोचते हैं, तभी समाधान निकलता है। पत्रकार ही जनता को जागरूक करते हैं। पत्रकारिता की जागरूकता का असर हमने आपातकाल में देखा था। जब अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर रोक लगा दी गई थी तब समाचार पत्रों ने भी आवाज बुलंद करके उसका विरोध किया था। परिणाम स्वरूप तत्कालीन सत्ता को सिमटना पड़ा था। पत्रकार यदि अच्छे मन से काम करें तो वे ही समाज, प्रदेश और देश में परिवर्तन ला सकते हैं।
मुख्य वक्ता अमर उजाला, नई दिल्ली के सलाहकार संपादक विनोद अग्निहोत्री ने आगरा में हुई भारत-पाक शिखर वार्ता की याद को ताजा करते हुए कहा कि यदि वह वार्ता सफल हो जाती तो अभी तक भारत और पाकिस्तान का नक्शा ही बदल गया होता। पत्रकारिता की चुनौतियों की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि बहुत सतर्कता की जरूरत है। सतर्कता के साथ, तथ्यों को पऱखें और पारदर्शिता रखें, उसके बाद अपने समाचारों को आगे बढ़ाएं। हिंदी पत्रकारिता एक विरासत है, उसे संभालना होगा। उन्होंने कहा कि आज पत्रकारों को एकजुट होना चाहिए। यदि किसी शहर, प्रदेश या देश में किसी पत्रकार के साथ कुछ होता है तो सभी को उसकी आवाज बुलंद करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि पत्रकारिता एक गाय है, जिसका दूध तो सब पीना चाहते हैं, लेकिन पूंछ भी हिलाए तो कहते हैं सींग मार दिया। श्री अग्निहोत्री ने कहा कि किसी को कुर्सी हिलाने के लिए पत्रकारिता न करें। सोशल मीडिया ने अब एकाधिकार छीन लिया है, ऐसे में बहुत सावधानी की जरूरत है।
उपजा के प्रदेश अध्यक्ष शिव मनोहर पांडे का कहना था कि देहात के पत्रकारों पर कोई ध्यान नहीं देता। उनकी विषम परिस्थितियों पर भी सभी को संज्ञान लेना चाहिए, जिन्हे न उचित पारिश्रमिक संस्थान से मिलता है न समाज से उचित सम्मान। मीडिया पर अंकुश लगाया जा रहा है, पत्रकार औरों की पीड़ा तो लिख सकता है, अपनी नहीं। इसके लिए उचित है कि पत्रकार संगठन मजबूत हों और आपस में अपनी समस्याओं को सुलझाएं।
सार्क जर्नलिस्ट फोरम, काठमांडू-नेपाल के अध्यक्ष राजू लामा ने कहा कि भारत एक ऐसा देश है, जो प्रजातंत्र की जननी है। नेपाल और बांग्लादेश में भी प्रजातंत्र भारत से ही आया है। भारत की पत्रकारिता से भी विश्व के कई देश प्रभावित हैं। प्रेरणा लेते हैं, इससे हमें शिक्षा लेनी चाहिए। साउथ एशिया के पत्रकारों को चितंन करना चाहिए। अफगानिस्तान में पत्रकारों को काफी संकट का सामना करना पड़ सकता है। वहां आज भी टीवी पर महिला पत्रकार बुर्के में खबरे पढ़ती हैं। जबकि भारत में पत्रकारों ने लोकतंत्र की रक्षा के लिए हमेशा अग्रिम पंक्ति में आकर लड़ाई लड़ी है।
बांग्लादेश से आए अब्दुल रहमान ने कहा कि यह आयोजन गौरवशाली रहा है। भारत का प्रजातंत्र भी समृद्धशाली और प्रेरक है, मैं इसे सैल्यूट करता हूं।
वरिष्ठ पत्रकार अरुण त्रिपाठी ने पत्रकार और पत्रकारिता के संकट पर विशेष चिंतन प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि हर तरह के समाचार भी चाहिए और सुरक्षा भी नहीं मिलेगी, अतः नैतिकता ही पत्रकार का कवच है। उसी को अपनाएं। विख्यात पत्रकार पराड़कर जी ने अमर शहीद राजगुरु को पिस्तौल से निशाना लगाना सिखाया था, लेकिन पराड़कर जी ने कभी पिस्तौल का उपयोग नहीं किया। महात्मा गांधी, पं.नेहरू, अटल जी, आडवानी आदि भी पत्रकार रहे। सबके बारे में लिखने वाले पत्रकार ने कभी अपने बारे में नहीं लिखा। उन्होंने कहा कि पत्रकारिता तो आती जाती रहेगी, लेकिन समाज यहीं रहेगा। अतः समाज को समृद्ध, सुसंस्कृत करना होगा, तभी हमारी पत्रकारिता सार्थक होगी। क्लब के उपाध्यक्ष विनीत दुबे, उपसचिव शोभित चतुर्वेदी भी मंचासीन रहे।
प्रेस क्लब ऑफ आगरा के सचिव संजय तिवारी ने स्वागत भाषण में कहा कि पत्रकारिता के सामने चुनौतियां हैं, उनका सभी को सामना करना चाहिए। संचालन करते हुए कोषाध्यक्ष विवेक जैन आगरा की पत्रकारिता और उसकी इतिहास पर प्रकाश डाला।
समारोह में अतिथियों के अतिरिक्त वरिष्ठ पत्रकारों का भी सम्मान किया गया ।