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Wednesday, May 3, 2023

वित्तीय प्रबंधन से बचेंगे 55 सौ करोड़, 3 बड़े सुधारों की तैयारी में यूपी सरकार


लखनऊ (मानवी मीडिया) वित्तीय प्रबंधन की मौजूदा व्यवस्था में बड़े सुधार की तैयारी कर रही है। इनसे हर साल करीब 55 सौ करोड़ रुपये बचाए जा सकेंगे। इसकी कार्ययोजना तैयार है। इसे जल्द ही कैबिनेट की मंजूरी मिल सकती है।

प्रदेश को 10 खरब डालर की अर्थव्यवस्था बनाने की दिशा में निर्माण कार्यों पर बड़ी राशि खर्च की जानी है। चालू वित्त वर्ष के बजट से ऐसा दिखना शुरू भी हो गया है। विशेषज्ञों ने सुझाव दिया है कि यदि निर्माण परियोजनाओं से संबंधित सेंटेज चार्ज, निर्माण लागत व वित्तीय स्वीकृति आदि से संबंधित वित्तीय प्रबंधन की व्यवस्था में बदलाव किया जाएं तो प्रतिवर्ष करीब 55 सौ करोड़ रुपये बच सकते हैं।

सूत्रों ने बताया कि वित्त विभाग ने सेंटेज चार्ज फ्लैट की जगह स्लैब में करने का प्रस्ताव तैयार किया है। इसी तरह परियोजनाओं की वित्तीय स्वीकृति की नई व्यवस्था का प्रस्ताव तैयार कर लिया गया है। निगम आधारित कार्यदायी संस्थाओं द्वारा उनको अवमुक्त की गई धनराशि पर होने वाले ब्याज को राजकोष में जमा किए जाने की व्यवस्था तीसरा सुधार है।

सेंटेज की एक समान दर होगा समाप्त
वर्तमान में विभागीय निर्माण विभागों और निगम आधारित कार्य संस्थाओं में सेंटेज की एक समान दर 12.50 प्रतिशत लागू है। इसे समाप्त किया जाएगा। लोक निर्माण विभाग और सिंचाई विभाग आदि के विभागीय कार्यों पर सेंटेंज 6.875 प्रतिशत को परियोजना की लागत पर जोड़ने की व्यवस्था समाप्त करने की तैयारी है।

सेंटेज की मौजूदा दर 12.5 प्रतिशत के स्थान पर प्रस्तावित नई स्लैब दरें

कार्य की लागत (रुपये में) सेंटेंज की दर
- 25 करोड़ तक 10%
- 25 करोड़ से अधिक और 50 करोड़ तक 8%
- 50 करोड़ से अधिक और 100 करोड़ तक 7%
- 100 करोड़ से अधिक 5%
 

वित्तीय स्वीकृति की भुगतान में बदलाव की तैयारी

विभागों द्वारा निर्माण परियोजनाओं की डीपीआर का गठन अपने शिड्यूल रेट पर किया जाता है। शिड्यूल रेट पर गठित डीपीआर की लागत वास्तविक बाजार दरों से अधिक होती है। वित्तीय स्वीकृतियां परियोजना की मूल्यांकित लागत पर जारी की जाती हैं। जबकि टेंडर में काम की लागत परियोजना की मूल्यांकित लागत से 10% तक कम होती है। यह अतिरिक्त धनराशि कार्यदायी संस्थाओं के पास बचत के रूप में रहती है। विसंगति को दूर करने के लिए वित्तीय स्वीकृति की पहली किस्त मूल्यांकित लागत पर जबकि इसके बाद का टेंडर के आधार पर भुगतान करने की योजना है।

ब्याज वापसी व वित्तीय क्लोजर भी होगा

निगम आधारित कार्यदायी संस्थाएं अवमुक्त हुई धनराशि को बैंकों में रखकर ब्याज लेती हैं। इस ब्याज को सरकारी खजाने में लौटाया नहीं जाता है। केवल यूपी प्रोजेक्ट कार्यदायी संस्था ही 70 करोड़ रुपये ब्याज प्रति वर्ष जमा कर रही है। इस समस्या के समाधान के लिए ब्याज की राशि को राजकोष में वापस करना जरूरी करने का प्रस्ताव है। ब्याज की धनराशि राजकोष में जमा करने का उल्लेख बैलेंस शीट में अनिवार्य रूप से करना होगा। परियोजना पूरी होने पर उनका वित्तीय क्लोजर किया जाएगा और अपने खातों में परियोजना के लिए प्राप्त धनराशि, खर्च धनराशि, बची धनराशि व अर्जित ब्याज का स्पष्ट उल्लेख करना होगा।

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