लखनऊ (मानवी मीडिया) पुलिस द्वारा एक लावारिस मरीज 26 February 2023 को केजीएमयू के ट्रामा सेंटर में भर्ती कराया गया था। यह बेहोशी की हालत में लखनऊ रेलवे स्टेशन पर पड़ा हुआ मिला था। पुलिस इसे हमारे यहां भर्ती करा गई तब यह बहुत गंभीर स्थिति में और कोमा में था। इलाज से धीरे-धीरे सुधार आया और वह खाने-पीने बोलने चलने लायक हो गया । होश में आने के बाद उसने अपना नाम जीत बहादुर भूजल बताया ।
वह गांव - छपरा मैदान , जिला - गोरखा, नेपाल का रहने वाला है।
उसकी पत्नी का नाम दीमिनी है जो अब इसे छोड़ कर चली गई है और दूसरी शादी कर ली है।
इसका एक बेटा है जिसका नाम किस्मत है और वह शक्ति स्कूल की किसी शाखा में हॉस्टल में रहकर पढ़ रहा है।
यह अपनी मां के साथ गांव में रहता है।
इसकी दो भाई थे जो शादी करके अब अलग रहते हैं और 2 बहनें थी जिनकी शादी हो चुकी है।
यह अपने गांव से सोनौली और फिर सोनौली से गोरखपुर आया था और गोरखपुर में ट्रेन पर बैठकर केरल जा रहा था जहां इसके कुछ साथी लोग कैंटीन का बिजनेस करते हैं यह वही जा रहा था।
संभवतः इसके साथ ट्रेन में कुछ धोखा हुआ होगा । यह बेहोशी की हालत में लखनऊ रेलवे स्टेशन पर पड़ा हुआ मिला था। होश में आने के बाद इसने अपनी मां से फोन पर बात की। मां ने किसी को इसके पास भेजने का इंतजाम करने का प्रयास किया परंतु असफल रही । पैसे की व्यवस्था करके उन्होंने एक आदमी को जीत बहादुर को लेने के लिए लखनऊ भेजा लेकिन वह आदमी पैसा पाकर लखनऊ आने की जगह शायद दिल्ली चला गया नौकरी वगैरह करने के लिए।इसके बाद हम लोगों ने इनकी मां से बात करी लेकिन वह हिंदी नहीं समझ पाती थी। फिर उनके ग्राम प्रधान से बात करी जो हिंदी तो समझते थे लेकिन किसी को लखनऊ भेजने में असमर्थता व्यक्त कर रहे थे। बीते रविवार को हम लोगों ने अपने विभाग के कर्मचारियों अतुल उपाध्याय मित्रेश एवं गौतम के साथ मरीज को अपने खर्चे पर कार से नेपाल के लिए रवाना किया। सोनौली बॉर्डर पर नेपाल के एक पुलिस अधिकारी Shri Anil Thapa को सारी बातें बताई गई तो उन्होंने बहुत सहयोग किया। उन्होंने मरीज के गांव के समीप थाने में फोन किया और यह पता चला कि वहां से ग्राम प्रधान और मरीज की मां ने किसी को मरीज को लेने के लिए सुनौली बॉर्डर भेजा है। उसका फोन नंबर लेकर पुलिस ने उसको फोन किया तो पता चला कि वह बॉर्डर के पास के बस स्टेशन पर बैठकर मरीज के आने का इंतजार कर रहा है। फिर नेपाल की पुलिस उसे ढूंढ कर बॉर्डर तक ले आई और वहां मरीज को आए हुए परिजन को सौंपा और मरीज के गांव के थाने के पुलिस वालों को बोला कि जब यह मरीज थाने पहुंच जाए तो वह लोग स्वयं मरीज को उसकी मां को सौंप दें।
उन लोगों के पास सुनौली बॉर्डर से अपने घर तक जाने के भी पैसे नहीं थे उसे भी हम लोगों ने अपने पैसों से मदद करके भेजा। अंततः मरीज अपनी मां के पास पहुंच गया।
सिस्टर शशी सिंह की टीम ने और हमारी रेजिडेंट्स की टीम ने मरीज की खूब मेहनत से देखभाल करी जिससे मरीज ठीक हो गया।कुलपति लेफ्टिनेंट जनरल डा बिपिन पुरी ने न्यूरोसर्जरी विभाग के सफल प्रयास हेतु पूरे विभाग की प्रशंसा करते हुए उन्हें बधाई दी।