अयोध्या (मानवी मीडिया) जून 2021 में जब श्रीराम का मंदिर बनाने के लिए मंदिर ट्रस्ट जमीन खरीद रहा था तो जमीन की खरीद फरोख्त से जुड़े कई सनसनीखेज मामले सामने आए थे। नजूल की जमीन लाखों में खरीदकर करोड़ों में ट्रस्ट को बेचने, नियमों को दरकिनार किए जाने जैसे अनेक आरोप उछले थे। जिन्होंने पूरे देश में सनसनी फैला दी थी।इस मामले की जांच की मांग लेकर हाईकोर्ट में दाखिल याचिका भले ही खारिज हो गई हो लेकिन राज्य सरकार इस मामले की जांच करवा रही है। इसलिए आरोप जिंदा हैं क्योंकि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से लेकर ट्रस्ट के पदाधिकारियों ने न तो इसका कभी खंडन किया, न ही इस मामले में अब तक किसी को क्लीन चिट ही दी है।
सबसे पहले इस मामले में तत्कालीन मेयर ऋषिकेश उपाध्याय के भांजे दीप नारायण का नाम सामने आया था। उन्होंने अयोध्या में सदर तहसील के ग्राम सभा कोट रामचंदर, परगना हवेली अवध की गाटा संख्या 135 का रकबा 890 वर्ग मीटर ढाई करोड़ में रुपये में ट्रस्ट को बेची थी।
यह जमीन उन्होंने ढाई महीने पहले 22 फरवरी को 20 लाख रुपये में बड़ी पीठ दशरथ महल बड़ा स्थान के महंत देवेंद्र प्रसादाचार्य चेला स्व. महंत विश्वनाथ प्रसादाचार्य से खरीदी थी। जबकि यह जमीन नजूल के रूप में दर्ज है। जिसका स्वामित्व सरकार के पास है। तत्कालीन जिलाधिकारी अनुज कुमार झा ने भी उस समय स्पष्ट कहा था कि नजूल भूमि की रजिस्ट्री बगैर पर्या दर्ज हुए या फ्रीहोल्ड कराए बेचने का अधिकार किसी को नहीं है। इसी तरह जमीन के कई विवाद सामने आने के बाद आरएसएस के तत्कालीन सह सर कार्यवाह कृष्णगोपाल अयोध्या पहुंचे थे और उनकी ट्रस्ट के सहयोगियों के साथ लंबी मंत्रणा हुई थी।
संघ के सूत्रों के हवाले से खबरें आई थीं कि संघ और ट्रस्ट इस मामले की जांच भी करवा रहा है, लेकिन कोई आधिकारिक जानकारी आज तक नहीं दी गई। न ही इन आरोपों पर ही कोई सफाई आई। ऐसे में अब जब हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने याचिका खारिज करते हुए यह स्पष्ट कर दिया है कि राज्य सरकार इस मामले की जांच एक जांच कमेटी से करवा रही है तो उम्मीद है कि आने वाले दिनों में सच सामने आएगा।
दो घंटे में बढ़ गई थी कई गुना कीमत
जमीन के इन मामलों में 18 मार्च 2021 को हुई रजिस्ट्री भी विवादित रही थी। जिसमें 10,370 मीटर जमीन जो मुख्य मार्ग पर थी, उसे तो ट्रस्ट ने आठ करोड़ में खरीदा था। जिसमें तत्कालीन महापौर ऋषिकेश उपाध्याय और मंदिर के ट्रस्टी अनिल मिश्रा गवाह थे। जबकि उसी दिन इसी जमीन के पीछे जो जमीन सड़क से नहीं जुड़ी थी, उस 12,080 वर्ग मीटर जमीन को ट्रस्ट ने 18.50 करोड़ रुपये में खरीदा था। बताया गया था कि यह जमीन महज दस मिनट पहले ही सुल्तान अंसारी और रवि मोहन तिवारी ने दो करोड़ रुपये में रजिस्ट्री कराई थी।
यह जमीन उन्होंने ढाई महीने पहले 22 फरवरी को 20 लाख रुपये में बड़ी पीठ दशरथ महल बड़ा स्थान के महंत देवेंद्र प्रसादाचार्य चेला स्व. महंत विश्वनाथ प्रसादाचार्य से खरीदी थी। जबकि यह जमीन नजूल के रूप में दर्ज है। जिसका स्वामित्व सरकार के पास है। तत्कालीन जिलाधिकारी अनुज कुमार झा ने भी उस समय स्पष्ट कहा था कि नजूल भूमि की रजिस्ट्री बगैर पर्या दर्ज हुए या फ्रीहोल्ड कराए बेचने का अधिकार किसी को नहीं है। इसी तरह जमीन के कई विवाद सामने आने के बाद आरएसएस के तत्कालीन सह सर कार्यवाह कृष्णगोपाल अयोध्या पहुंचे थे और उनकी ट्रस्ट के सहयोगियों के साथ लंबी मंत्रणा हुई थी।
संघ के सूत्रों के हवाले से खबरें आई थीं कि संघ और ट्रस्ट इस मामले की जांच भी करवा रहा है, लेकिन कोई आधिकारिक जानकारी आज तक नहीं दी गई। न ही इन आरोपों पर ही कोई सफाई आई। ऐसे में अब जब हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने याचिका खारिज करते हुए यह स्पष्ट कर दिया है कि राज्य सरकार इस मामले की जांच एक जांच कमेटी से करवा रही है तो उम्मीद है कि आने वाले दिनों में सच सामने आएगा।
दो घंटे में बढ़ गई थी कई गुना कीमत
जमीन के इन मामलों में 18 मार्च 2021 को हुई रजिस्ट्री भी विवादित रही थी। जिसमें 10,370 मीटर जमीन जो मुख्य मार्ग पर थी, उसे तो ट्रस्ट ने आठ करोड़ में खरीदा था। जिसमें तत्कालीन महापौर ऋषिकेश उपाध्याय और मंदिर के ट्रस्टी अनिल मिश्रा गवाह थे। जबकि उसी दिन इसी जमीन के पीछे जो जमीन सड़क से नहीं जुड़ी थी, उस 12,080 वर्ग मीटर जमीन को ट्रस्ट ने 18.50 करोड़ रुपये में खरीदा था। बताया गया था कि यह जमीन महज दस मिनट पहले ही सुल्तान अंसारी और रवि मोहन तिवारी ने दो करोड़ रुपये में रजिस्ट्री कराई थी।