नई दिल्ली (मानवी मीडिया): दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि किसी महिला के किसी पुरुष के साथ रहने के सहमति का यह मतलब नहीं निकाला जा सकता कि वह उसके साथ यौन संबंध बनाने के लिए तैयार है। अदालत ने कहा, अभियोजिका के किसी पुरुष के साथ रहने के लिए सहमति और यौन संबंध के लिए सहमति के बीच के अंतर को स्पष्ट करने की आवश्यकता है। केवल इसलिए कि एक महिला किसी पुरुष के साथ रहने के लिए सहमति देती है, ‘चाहे कितने समय के लिए’, यह तथ्य इस बात का अनुमान लगाने का आधार नहीं हो सकता है कि उसने उसके साथ यौन संबंध के लिए भी सहमति दी थी।
जस्टिस अनूप जयराम भंभानी की बेंच संत सेवक दास के नाम से मशहूर संजय मलिक की जमानत याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसे खारिज कर दिया गया है।
मलिक पर 12 अक्टूबर, 2019 को एक चेक नागरिक के साथ दिल्ली के एक छात्रावास में बलात्कार करने का आरोप है, 31 जनवरी 2020 और 7 फरवरी 2020 में प्रयागराज और बिहार के गया में उसके साथ यौन शोषण किया।
अभियुक्त के अनुसार, अभियोजिका ने न तो कोई शिकायत की और न ही किसी अन्य स्थान पर कोई एफआईआर दर्ज करवाने का प्रयास किया, जहां उसका कथित रूप से यौन उत्पीड़न किया गया था, और बहुत बाद में, 6 मार्च, 2022 को दिल्ली में एफआईआर दर्ज की गई। दूसरी ओर, अभियोजन पक्ष ने दावा किया कि आरोपी ने आध्यात्मिक गुरु के रूप में उसका यौन शोषण किया।
न्यायमूर्ति भंभानी ने मामले की समीक्षा करने के बाद उल्लेख किया कि पीड़िता ने अपने मृत पति के अंतिम संस्कार और रिवाजों को पूरा करने के लिए याचिकाकर्ता के साथ प्रयागराज से वाराणसी से गया तक की यात्रा की, जो सभी हिंदू भक्ति और सभा के केंद्र हैं,।
अदालत ने कहा कि वह अंतिम संस्कार और अनुष्ठानों को पूरा करने के लिए याचिकाकर्ता पर निर्भर हो गई थी, क्योंकि वह एक विदेशी नागरिक थी और हिंदू रिवाजों से अनजान थी।
कोर्ट ने कहा, उपरोक्त स्थानों की यात्रा लगभग चार महीने की अवधि में हुई, और यह कहीं भी विशेष रूप से आरोप नहीं लगाया गया है कि याचिकाकर्ता ने पीड़िता को बंधक बना लिया था या कि उसे शारीरिक बल या कठोरता के उपयोग से उसके साथ यात्रा करने के लिए मजबूर किया गया था, लेकिन यह तथ्य अकेले ही पीड़िता के मन की इस स्थिति का निर्धारक नहीं होगा कि कथित यौन संबंध सहमति से बने थे।
इसमें आगे कहा गया है कि अगर शारीरिक संबंध बनाने की पहली घटना कथित तौर पर दिल्ली के एक छात्रावास में हुई थी, उस घटना में कथित कृत्य की प्रकृति बलात्कार नहीं थी और किसी भी तरह से उस कृत्य के संबंध में पीड़िता की चुप्पी को अधिक संगीन यौन संबंध बनाने की सहमति नहीं मानी जा सकती है, जैसा कि आरोप लगाया गया है।
न्यायमूर्ति भंभानी ने कहा कि याचिकाकर्ता ने आध्यात्मिक गुरु होने का नाटक कर एक विदेशी नागरिक की उसके पति के अंतिम संस्कार और अनुष्ठान में मदद करना की आड़ में छल किया। मामले का यह पहलू विशेष रूप से चिंताजनक है।
कोर्ट ने आगे कहा, मामले में अभियुक्त मृतक पति के अंतिम संस्कार और अनुष्ठान के लिए पीड़िता को प्रयागराज, बनारस और गया ले गया। इस दौरान उसने यौन शोषण को अनुष्ठान का हिस्सा बताया। इसलिए, अदालत ने अभियोजन पक्ष के सभी गवाहों के बयान पूरे होने के बाद ट्रायल कोर्ट के समक्ष उसी राहत के लिए नए सिरे से आवेदन करने की छूट देते हुए जमानत याचिका खारिज कर दी।