सम्मेलन की शुरुआत मौलवी अली रज़ा छात्र जामिया इमामिया ने पवित्र कुरआन से की।
उसके बाद देश के प्रसिद्ध शोआरा ने बरगाहे इमामत में अपने कलाम पेश किए।
मौलाना मोहम्मद जाबिर जौरासी ने कहा कि एक कार्यक्रम में खतीबे आज़म ने कहा कि हमें संदेश को इस तरह से व्यक्त करना चाहिए कि इस पर प्रतिक्रिया न हो सके और उन्होंने सभी प्रचारकों से उसी तरह से प्रचार करने की अपील की और खुद खतीबे आज़म मौलाना सय्यद गुलाम अस्करी ने दिल सोज़ी दिखाई और उनके दिल के अंदर कौम का दर्द है।
मौलाना एहतेशाम अब्बास ज़ैदी ने कहा कि मजालिस मिंबरों से जुड़ी हैं जो आज हमारे यहां राएज हैं उनमें राएज मजालिस में ईसाले सवाब का तसव्वुर है और यह ईसाले सवाब का तसव्वुर खत्म हो गया है अभिव्यक्ति और रीति-रिवाजों का रूप ले लिया है और हमने उस लक्ष्य को हासिल नहीं किया है जो मजलिस का उद्देश्य है।
उन्होंने कहा कि वो लोग जो बनियाने मजलिस हैं उन्होंने इस चीज़ को अपने दिमाग से खुरच कर निकाल दिया है कि हम अपने मृतक के लिए जो ईसाले सवाब कर रहे हैं वह उस तक पहुंच भी रहा है या नहीं या हम इसे अपनी प्रसिद्धि के लिए या अपनी गरिमा के लिए कर रहे हैं।
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के शिया दीनयात विभाग के अध्यक्ष मौलाना सय्यद तय्यब रज़ा ने कहा कि मुझे अपने बचपन से याद है कि गुलदस्ते खिताबत या इसी तरह की किताबें मिंबर की शान होती थीं जो मिंबर ने हमे दिया है वो कुरआन और हदीस से बहार नहीं होता पहले के खतीब जो भी कहते थे वो पहलू भी कुरआन और हदीस से होता था।
मौलाना सय्यद हैदर अब्बास ने कहा कि मिंबर की पवित्रता और गुणवत्ता को बाक़ी रखना बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि जो काम मिंबर कर सकता है वह काम और किसी भी तरह से नहीं किया जा सकता है।
संस्था तनज़ीमुल मकातिब के सचिव मौलाना सय्यद सफी हैदर ने कहा कि हमारे पास धर्म को मान्यता देने का कोई साधन नहीं है धर्म हमेशा मेहराब और मिंबर से पहुंचाया गया है इसलिए हम भी बुज़ुर्गो के आमाल देखकर अमल करें।
सम्मेलन का संचालन मौलाना एजाज़ हुसैन ने किया ।
सम्मेलन में बड़ी संख्या में विद्वानों, बुद्धिजीवियों और मोमिनीन ने शिरकत की।