समारोह को सम्बोधित करते हुए राज्यपाल ने मातृभाषा में शिक्षण पर विशेष जोर दिया। उन्होेंने कहा कि भाषा विश्वविद्यालय मातृभाषा में सभी विषयों की पाठ्य पुस्तकें उपलब्ध कराने के कार्य के लिए आगे आएं। उन्होंने कहा कि ज्ञान का आधार अंग्रेजी भाषा नही है। अंग्रेजी माध्यम की शिखा सिर्फ एक सोच है और समाज को इस सोच से बाहर लाने के लिए मातृभाषा में पाठ्यक्रमों के विकास पर ध्यान दें।
साक्षरता और शैक्षिक गुणवत्ता के विकास पर चर्चा करते हुए राज्यपाल ने अपने सम्बोधन में कहा कि आंगनबाड़ी से विश्वविद्यालय तक की शिक्षा में एक तारतम्य होना चाहिए इसके लिए आंगनबाड़ी केन्द्रों का सुविधा-सम्पन्न होना भी जरूरी है, जिससे गाँवों के बच्चे केन्द्र पर आने और पढ़ने में रूचि लें। उन्होंने प्राथमिक विद्यालयों के विद्यार्थियों को उच्च शिक्षा केन्द्र पर समारोहों में बुलाने को भी महत्वपूर्ण बताया। उन्होंने कहा कि उच्च शिक्षा केन्द्र में आकर बच्चों को शिक्षा के प्रति आकर्षण और प्रगति की प्रेरणा प्राप्त होती है।
समारोह में उपाधि और पदक पाने वाले विद्यार्थियों को विशेष रूप से सम्बोधित करते हुए राज्यपाल ने कहा कि वे इसका महत्व समझें और अपनी प्रगति के साथ-साथ देश के लिए भी कार्य करें। इसी क्रम में राज्यपाल ने पर्यावरण संरक्षण, जल संरक्षण, धरती की क्षमता संवर्द्धन पर भी चर्चा की। उन्होंने कार्यक्रम का उद्घाटन मटकी में जलधारा प्रवाहित करके ‘जल संरक्षण‘ के संदेश के साथ किया। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय वर्ष भर में जितने जल का उपयोग करते हैं, उतने जल संरक्षण का प्रभावी प्रयास करें। राज्यपाल ने देश में मोटे अनाज के घटते उत्पादन और प्रयोग पर भी चिन्ता व्यक्त की। स्वास्थय की दृष्टि से इनके लाभाकारी होने पर चर्चा करते हुए उन्होंने विश्वविद्यालय स्तर पर इसका प्रचार-प्रसार करने को कहा। अपने सम्बोधन में राज्यपाल ने देश में हो रही जी-20 देशों की बैठकों की ओर भी ध्यानाकर्षित कराते हुए कहा कि पहली बार भारत को इन बैठकों का नेतृत्व मिला है। विश्वविद्यालयों को भी अपने प्रदेश में होने वाली इन बैठकों के दृष्टिगत अपनी प्रतिभागिता करनी चाहिए। उन्होंने विद्यार्थियों को भारतीय संस्कृति से जुड़कर रहने के लिए कहा। उन्होंने कहा कि सफलता प्राप्त करने के बाद जीवन में अपने माता-पिता को अकेला या वृद्धाश्रमों में न छोड़े। उनके योगदान को याद रखें और वृद्धावस्था में अपने साथ रखें।
समारोह में मुख्य अतिथि एवं अध्यक्ष भारतीय भाषा समिति, शिक्षा मंत्रालय भारत सरकार पद्मश्री चमू कृष्ण शास्त्री ने भाषाओं के विस्तृत महत्व पर चर्चा करते हुए सभी भारतीय भाषाओं को परस्पर सम्बद्ध बताया। उन्होंने कहा कि हमारी भाषाएं अनेकता में एकता के सूत्र से बंधी हैं। भाषाएं हमे परस्पर जोड़ती हैं। भारत की एकता, आत्मीयता का साधन भाषा ही है।
समारोह के विशिष्ट अतिथि, प्रदेश के उच्च शिक्षा मंत्री योगेन्द्र उपाध्याय ने उपाधि प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों को बधाई देते हुए कहा कि शिक्षा एक सतत् प्रक्रिया है, शिक्षा का कभी अंत नही होता। उन्होंने कहा कि माता-पिता और गुरू के साथ राष्ट्र भी देवता हैं। उन्होंने इस संदर्भ में विवेकानंद द्वारा दिए गए भाषण का अंश भी प्रस्तुत किया,जिसमें उन्होंने भारत को इष्ट देव कहा है। राज्यमंत्री श्रीमती रजनी तिवारी ने भी इस समारोह में सभी उपाधि प्राप्तकर्ताओं को बधाई दी।
इस अवसर पर कुलपति प्रो0 नरेन्द्र बहादुर सिं ने विश्वविद्यालय की प्रगति आख्या प्रस्तुत की और विद्यार्थियों को भावी जीवन में उत्कृष्ट योगदान के लिए प्रेरित किया।
दीक्षान्त समारोह में विविध संकायों के कुल 890 विद्यार्थियों को उपाधि प्रदान की गई, जिसमें 599 छात्रों तथा 291 छात्राओं नेे उपाधि प्राप्त की। विशेष योग्यता प्राप्त करने वाले 44 विद्यार्थियों को स्वर्ण पदक, 34 को रजत पदक तथा 32 को कांस्य पदक पदक प्रदान किया गया।
समारोह में राज्यपाल ने ‘दीक्षान्त स्मारिका‘ तथा ‘‘उत्तर प्रदेश के लोकगीतों का संग्रह‘‘ पुस्तक का विमोचन किया। उन्होंने विश्वविद्यालय के नवनिर्मित पार्किंग स्थल का लोकापर्ण भी किया। दीक्षान्त समारोह में विश्वविद्यालय द्वारा आमंत्रित किए गए प्राथमिक विद्यालय अल्लू नगर डिमुरिया के 30 छात्र-छात्राओं को राज्यपाल ने स्कूल बैग एवं पोषण सामग्री प्रदान की। उन्होंने इस अवसर पर 10 आंगनबाड़ी केन्द्रों से आयी आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को केन्द्रों हेतु सामग्री की प्रदान की।
समारोह में विश्वविद्यालय के विविध संकायों के शिक्षकगण, कार्यपरिषद एवं विद्यापरिषद के सदस्य,कर्मचारी तथा छात्र-छात्राएं उपस्थित थे।