सरकारी आदेश सिर्फ दिखावटी है। रैन बसेरे कहां है? कहीं भी दिखाई नहीं देते है। न कहीं अलाव का इंतजाम है और न कहीं गर्म कपड़े और कम्बल का वितरण हो रहा है। एक तरफ मौसम का सितम दूसरी तरफ सरकारी संवेदनहीनता गरीबों की जान पर भारी पड़ रही है।
समाजवादी पार्टी की सरकार में गरीबों और आम लोगों को कम्बल और गर्म कपड़ों का वितरण कराया जाता था। शहरों, गांवों, नुक्कड़ और चौराहों पर अलाव जलाया जाता था। लेकिन इस सरकार में सिर्फ जुबानी आदेश जारी करने के अलावा कहीं कोई काम नहीं हो रहा है।
कड़कड़ाती ठंड में दिल के मरीजों की तकलीफें बढ़ी हैं लेकिन अस्पतालों में उनके त्वरित इलाज की व्यवस्था नहीं हो पा रही है। अस्पतालों में आईसीयू में बेड सीमित होने से गंभीर मरीजों को भी इधर उधर भटकना पड़ता है। इन दिनों सांस के रोगियों को भी इलाज की ज्यादा जरूरत होती है।
इस भीषण ठंड में यात्रियों और परीक्षार्थियों की मुसीबतें खत्म होने का नाम नहीं ले रही हैं। तीन हजार से ज्यादा बसे निरस्त हो चुकी है। दर्जनों फ्लाइटें रद्द हो चुकी हैं। ट्रेनों का संचालन अस्तव्यस्त हो गया है।
शीत लहर में इन दिनों किसानों की जान आफत में है। आवारा पशुओं से फसल बचाने के लिए किसानों को खेतों की रखवाली करनी पड़ रही है। खुले खेतों में ठंड से कंपकपाते किसानों का दर्द इस भाजपा सरकार को महसूस नहीं हो रहा है।
भाजपा सरकार को गरीबों की कतई फिक्र नहीं है, उसे तो बस बड़े धनी लोगों की सुविधाओं की ही चिंता है। भाजपा सरकार ने जिस तरह कोरोना संक्रमण काल में लोगों को अनाथ छोड़ दिया था उसी तरह आज केवल रेड एलर्ट जारी कर सरकार हाथ पर हाथ धर कर गर्म एसी के कमरों में आराम कर रही है। यह दुभार्ग्यपूर्ण है कि भाजपा सरकार लोगों की मदद करने के बजाय उनकी अनदेखी कर रही है।