उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के ट्रिपल टेस्ट र्फामूले के अनुसार राज्य में स्थानीय निकाय चुनाव में अन्य पिछड़ा वर्ग की आर्थिक, शैक्षणिक और राजनीतिक स्थिति क्या है? इसके लिए प्रकृति और प्रभाव का डेटा एकत्र करने के लिए एक विशेष आयोग का गठन किया जाना आवश्यक था। राज्य सरकार को इस विशेष आयोग की सिफारिशों के आधार पर ही नगर निगम और नगर पालिका चुनाव में अनुपातिक आधार पर आरक्षण देना था। राज्य सरकार को यह भी ध्यान देना था कि एस सी/एस टी /ओबीसी के लिए आरक्षित सीटों की संख्या 50 फीसद के कुल आरक्षण सीमा से बाहर नहीं जाये। तब प्रश्न यह उठता है कि सुप्रीम कोर्ट के द्वारा दिये गये इन सभी दिशा निर्देशों का अनुपालन न करना किसकी जवाबदेही तय करता है।
खाबरी ने सरकार से सवाल करते हुए पूछा कि क्या यह सरकार का कर्त्वय नहीं था कि देश के सुप्रीम कोर्ट का सम्मान उसके दिशा निर्देशों का पालन करते हुए पूरा किया जाये। माननीय उच्च न्यायालय ने ओबीसी आरक्षण के सम्बन्ध में दाखिल की गई 93 रिट याचिकाओं को एक साथ जोड़ते हुए निर्णय दिया है। अभी तक चुनाव में धार्मिक और क्षेत्रीय बंटवारे की राजनीति करती हुई भाजपा सरकार अब अतिरिक्त जातियों में बंटवारा करना चाहती है। यह सरकार 2024 तक इस मामले को गर्माये रखना चाहती है।
उन्होंने आगे कहा कि ओबीसी मतों के दम पर सत्ता में आयी भाजपा सरकार विगत 6 वर्षों में पिछड़ा वर्ग आयोग तक नहीं गठित नहीं कर पाई। भाजपा की रणनीति है ओबीसी र्वर्ग को प्राप्त आरक्षण को समाप्त करना सरकार को यदि आरक्षण देना ही होता तो पहले ही सुप्रीम कोर्ट के द्वारा दिये गये निर्देशों के अनुसार प्रक्रिया को पूरी कर लेती। निकाय चुनाव में पिछड़े वर्ग का प्रतिनिधित्व खत्म करने की सुनियोजित साजिश कर रही है योगी सरकार। पहले पिछडो के नौकरियों सहित अन्य संसाधनों पर डाका डाल चुकी है योगी सरकार। ट्रिपल टेस्ट न करा कर स्थानीय निकायों में पिछड़ो के हको पर डाका डालने का काम कर रही है योगी सरकार।
खाबरी ने आगे कहा कि सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का अनुपालन न करते हुए पिछडे वर्ग के लोगों का सिर्फ शैक्षिक एवं सामाजिक पिछडे पन का ध्यान रखकर सर्वे कराया। जो आरक्षण का खाका सर्वे के अनुसार दिया गया वह नियमानुसार नहीं था। इसीलिए कोर्ट ने कहा राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट की पहली की दी गई व्यवस्था को मानने के लिए बाध्य है। कोर्ट ने फिर कहा कि राज्य सरकार द्वारा कराया गया सर्वे सुझाये गये सर्वे से मेल नहीं खाता। इस कथन से सरकार की यह मंशा स्वतः स्पष्ट हो जाती है कि वह जनता के हित कार्य करने की पक्षधर ही नहीं है। अगर ऐसा नहीं होता तो सरकार सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पालन करती।
उन्होंने कहा कि जिस तरह वर्तमान सरकार अपनी कथनी और करनी के अंतर को प्रदर्शित करती रही है कोर्ट का यह फैसला उसके उसी चरित्र को उजागर कर रहा है। ओबीसी वर्ग की हितैषी बनकर कोर्ट के फैसले के बाद सुप्रीम कोर्ट में जाने की बात करने वाली योगी सरकार कहीं न कहीं अपने दोहरे चरित्र को दिखा रही है। अगर उसे कोर्ट की बात माननी ही होती तो पहले ही सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार ही कार्य करती। इस तरह देरी करके जनता को गुमराह करने की इनकी आदत लोगों और न्यायालयों के समय को मात्र खराब नहीं करती।
खाबरी ने कहा कि सरकार की मंशा अगर पिछड़ा वर्ग को आरक्षण देने की ही होती तो ट्रिपल टेस्ट कराकर आरक्षण की व्यवस्था लागू कराती ताकि कोर्ट में कोई विपरीत स्थिति उत्पन्न न हो। लेकिन समझने वाली बात यह है कि सरकार की मंशा क्या है, बस आम जनमानस के बीच में असमंजस की स्थिति को पैदा करना। भारतीय जनता पार्टी सामाजिक न्याय की अवधारणा और संविधान की मूल आत्मा को हमेशा से ही दरकिनार करती रही है। सिर्फ हार के डर से मौजूदा सरकार ऐन-केन प्रकारेण चुनाव को ऐसे ही मुद्दों में उलझा कर भटकाना चाहती है।
उक्त प्रेस वार्ता में उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के कोषाध्यक्ष शिव पाण्डेय, ओंमकारनाथ सिंह, मीडिया संयोजक अशोक सिंह, प्रदेश प्रवक्ता, पंकज तिवारी, सचिन रावत, डॉ0 सुधा मिश्रा, प्रियंका गुप्ता, रफत फातिमा, मनोज यादव, आदि प्रमुख रहें।