नई दिल्ली (मानवी मीडिया)- सुप्रीम कोर्ट ने अहम टिप्पणी करते हुए कहा कि रिश्वत मांगे जाने का सीधा सबूत न होने या शिकायतकर्ता की माैत हो जाने के बावजूद भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत दोष (लोकसेवक के खिलाफ) साबित हो सकता है। इस संबंध में 5 जजों की संविधान पीठ ने माना कि जांच एजेंसी की तरफ से जुटाए गए दूसरे सबूत भी मुकदमे को साबित कर सकते हैं।
संविधान पीठ ने कहा कि शिकायतकर्ता के साक्ष्य/अवैध संतुष्टि की मांग के प्रत्यक्ष या प्राथमिक साक्ष्य के अभाव में अभियोजन पक्ष की तरफ से प्रस्तुत अन्य साक्ष्यों के आधार पर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा 13(2, धारा 7 और धारा 13(1)(डी) के तहत लोक सेवक के अपराध का निष्कर्ष निकालने की अनुमति है। भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम संशोधित विधेयक- 2018 में रिश्वत देने वाले को भी इसके दायरे लाया गया है। इसमें भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने और ईमानदार कर्मचारियों को संरक्षण देने का प्रावधान है।