लखनऊ: (मानवी मीडिया) इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने एक बड़ा फैसला दिया है। इस पर चर्चा तेज हो गई है। हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने चकबंदी के एक मुकदमे में उसके सामने 67 साल पुराने आदेश की 32 साल पुरानी प्रति पेश होने पर उस पर संदेह करते हुए इसकी फरेंसिक जांच के आदेश दिए हैं। इसके साथ ही कोर्ट ने जिलाधिकारी, उन्नाव को आदेशित किया है कि वह पता लगाएं कि क्या कथित आदेश की प्रति चकबंदी कार्यालय से जारी की गई है। क्या वर्ष 1987 व इसके पूर्व उन्नाव के चकबंदी कार्यालय में टाइप राइटर का प्रयोग किया जाता था? यह आदेश जस्टिस जसप्रीत सिंह की बेंच ने ओम पाल की याचिका पर सुनवाई के दौरान पारित किया। अब फॉरेंसिक साइंस लैबोरेटरी की ओर इस इस आदेश की कॉपी की जांच होगी। देखा जाएगा कि इसमें प्रयोग होने वाले इंक और लिखावट की तकनीक कॉपी जारी किए जाने के संबंधित है या नहीं?
याची की ओर से 22 जुलाई 1955 के उप संचालक चकबंदी, उन्नाव के कथित आदेश को कानून के खिलाफ बताते हुए, इसकी एक प्रति याचिका के साथ दाखिल की। वहीं राज्य सरकार व ग्राम सभा के अधिवक्ताओं ने बहस के दौरान कथित आदेश की प्रति को कूटरचित बताया। इस पर याची की ओर से कथित आदेश की सर्टिफाइड प्रति प्रस्तुत की गई और बताया गया कि उक्त सर्टिफाइड प्रति वर्ष 1987 में जारी की गई थी। इस पर सरकार व ग्राम सभा की ओर से कहा गया कि वर्ष 1955 में चकबंदी कार्यवाही के लिए टाइप राइटर प्रचलन में नहीं थे। यह भी कहा गया कि 1955 के आदेश की सर्टिफाइड प्रति 32 साल बाद 1987 में जारी ही नहीं की जा सकती, क्योंकि चकबंदी के रेग्युलेशन्स के तहत 12 साल बाद अनावश्यक रेकॉर्ड नष्ट कर दिया जाता है। 31 जनवरी को मामले की अगली सुनवाई से पहले इस जांच को पूरा कराया जा सकता है।
क्या है पूरा मामला?
चकबंदी कार्यालय के 22 जुलाई 1955 के एक आदेश पर आपत्ति जताई गई है। कोर्ट में कथित आदेश पर संदेह होने पर इसकी फॉरेंसिक जांच के आदेश दिए हैं। इसके साथ ही कोर्ट ने डीएम उन्नाव को भी आदेश जारी किया है कि वह पता लगाएं, क्या कथित आदेश की प्रति चकबंदी कार्यालय की ओर से जारी की गई थी? क्या वर्ष 1987 या इसके पहले उन्नाव के चकबंदी कार्यालय में टाइपराइटर का प्रयोग किया जाता था? यह आदेश न्यायमूर्ति जसप्रीत सिंह की एकल पीठ की ओर से जारी की गई।
ओम पाल की याचिका पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने इससे सबंधित आदेश जारी किए हैं। दरअसल, 22 जुलाई 1955 के उप संचालक चकबंदी उन्नाव के कथित आदेश को कानून के खिलाफ बताते हुए इसकी एक प्रति याचिका के साथ दाखिल की। वहीं, राज्य सरकार और ग्राम सभा के अधिवक्ताओं ने बहस के दौरान कथित आदेश की प्रति को कूटरचित बताया। इस पर याची की ओर से कथित आदेश की सर्टिफाइड प्रति प्रस्तुत की गई और बताया गया कि उस सर्टिफाइड कॉपी को वर्ष 1987 में जारी किया गया था।
आदेश की कॉपी पर जताई गई आपत्ति
सर्टिफाइड कॉपी पर सरकार और ग्राम सभा की ओर से कहा गया कि वर्ष 1955 में चकबंदी कार्यवाही के लिए टाइपराइटर प्रचालन में नहीं था। यह भी कहा गया कि 1955 के आदेश की सर्टिफाइड कॉपी 32 साल बाद यानी 1987 में जारी ही नहीं की जा सकती है, क्योंकि चकबंदी रेगुलेशन के तहत 12 साल बाद अनावश्यक रिकॉर्ड नष्ट कर दिया जाता है। हाई कोर्ट ने कथित आदेश की सर्टिफाइड कॉपी को फॉरेंसिक जांच लैबोरेट्री में भेजने का आदेश दिया है। आदेश के कॉपी की कागज और स्याही कितनी पुरानी है? इसकी जांच होगी। टाइपराइटर का टाइप फेस क्या था? इसका भी पता लगाया जाएगा। मामले की अगली सुनवाई 31 जनवरी को तय की गई है।