कैग की रिपोर्ट के मुताबिक, “डेटा गैप थे, जिसके कारण केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के साथ-साथ एमओईएफ और सीसी के पास 2015-20 की अवधि के दौरान पूरे देश में प्लास्टिक कचरे की पूरी और व्यापक तस्वीर नहीं थी। ऑडिट ने यह भी देखा कि प्राप्त डेटा एसपीसीबी और पीसीसी को एसपीसीबी द्वारा इसकी प्रामाणिकता और शुद्धता का आकलन करने के लिए मान्य नहीं किया गया था।”
कैग की रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि दिल्ली के सभी तीन सैंपल यूएलबी (शहरी स्थानीय निकाय) ने 2015-20 के दौरान हर साल डीपीसीसी को उत्पन्न होने वाले प्लास्टिक कचरे का डेटा नहीं दिया।
रिपोर्ट के मुताबिक, “पूर्वी दिल्ली नगर निगम (ईडीएमसी) ने 2015-20, उत्तरी दिल्ली नगर निगम (एनडीएमसी) ने 2015-16 और 2017-18 और दक्षिण दिल्ली नगर निगम (एसडीएमसी) ने 2015-16 के लिए डेटा प्रस्तुत नहीं किया। हालांकि, डीपीसीसी को उपलब्ध कराए गए आंकड़ों की लेखापरीक्षा को मुहैया कराए गए आंकड़ों से तुलना करने पर एनडीएमसी के आंकड़ों में 45.97 फीसदी का अंतर देखा गया, जबकि एसडीएमसी के मामले में आंकड़ों में 40 फीसदी का अंतर था।”
कैग ने सिफारिश की है कि मंत्रालय को अपनी एजेंसियों (सीपीसीबी, एसपीसीबी/पीसीसी) के माध्यम से प्लास्टिक कचरे के उत्पादन, संग्रह और निपटान के संबंध में प्रभावी डेटा संग्रह के लिए एक प्रणाली स्थापित करने और उनके कामकाज की निगरानी करने की जरूरत है।
कैग ने यह भी कहा कि स्थानीय निकायों के समन्वय में सीपीसीबी और राज्य पीसीबी/पीसीसी को समय-समय पर, उत्पन्न होने वाले प्लास्टिक कचरे की मात्रा का व्यापक मूल्यांकन करने और आबादी के आकार, क्षेत्र के भौगोलिक आकार जैसे मापदंडों के अनुसार डेटा एकत्र करने की जरूरत है।
उन्होंने सुझाव दिया कि स्थानीय निकाय प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियमों को शामिल करके अपने उपनियमों को अधिसूचित करने की प्रक्रिया में तेजी ला सकते हैं।
रिपोर्ट में एक परियोजना पर निष्फल खर्च को भी दर्शाया गया है और कहा गया है : “एमओईएफ और सीसी द्वारा अप्रभावी निगरानी और वित्तीय सहायता जारी करने में देरी के परिणामस्वरूप डिमोंस्ट्रेशन प्रोजेक्ट से पर्यावरणीय लाभ प्राप्त नहीं हुआ और 73.35 लाख रुपये का निष्फल व्यय हुआ।”